क्यों मनाई जाती है वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) | का महत्व | पूजा विधि |कथा,Why is Vaishakh Purnima (Buddha Purnima) Ka Mahatv | Pooja Vidhi | Katha

क्यों मनाई जाती है वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) | का महत्व | पूजा विधि | कथा

शास्त्रों में निहित है कि वैशाख पूर्णिमा तिथि पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था. इसलिए हर साल वैशाख पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध जयंती मनाई जाती है. इस दिन भगवान बुद्ध की पूजा-उपासना की जाती है. वैशाख पूर्णिमा के दिन का हिंदू धर्म में बेहद महत्व है वैशाख पूर्णिमा, जिसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, सिद्धार्थ गौतम के जन्म का प्रतीक है, जो बाद में बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध बने। 

Why is Vaishakh Purnima (Buddha Purnima)  Ka Mahatv | Pooja Vidhi | Katha

इस दिन जल से भरा नया घड़ा दान करने से स्वर्ण कलश दान के समान फल मिलता है। इस व्रत से धर्मराज की प्रसन्नता प्राप्त होती है। और अकाल मृत्यु का भय नहीं कहता। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को इसी सत्य विनायक व्रत को करने का विधान बताया था, जिसके प्रभाव से सुदामा की दरिद्रता दूर होकर वह अत्यन्त वैभवशाली हो गये थे।  वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु का नौवां अवतार भगवान् बुद्ध के रूप में हुआ था। भगवान् बुद्ध ने लोगों को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया था। वैशाख की पूर्णिमा को ही बुद्ध का निर्वाण हुआ था। भगवान् बुद्ध के अनुयायी इस दिवस को बहुत धूम-धाम से मनाते हैं।

वैशाख पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?

वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima), जिसे बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू और बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व वैशाख महीने (अप्रैल/मई) की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भगवान बुद्ध (Lord Buddha) का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुआ था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने अपना नौवां अवतार बुद्ध के रूप में इसी दिन लिया था। वैशाख पूर्णिमा को पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है। लोग भगवान सत्यनारायण (विष्णु का एक रूप) की पूजा भी करते हैं। इस दिन बौद्ध मंदिरों में विशेष प्रार्थनाएं और आयोजन होते हैं। वैशाख पूर्णिमा मानव मूल्यों, करुणा और अहिंसा का प्रतीक है

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है। इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं। बौद्ध धर्म के लोग इस दिन को उत्‍सव के रूप में मनाते हैं। उनके धार्मिक स्‍थलों पर सभी लोग एकत्र होगर सामूहिक उपासना करते हैं और दान देते हैं। बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व सभी को शांति का संदेश देता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन बोधगया जाकर पूजापाठ करते हैं। लोग बोधिवृक्ष की पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष पीपल का पेड़ होता है और इस दिन इसकी पूजा करने का विशेष धार्मिक महत्‍व (religious importance) माना गया है। वृक्ष पर दूध और इत्र मिला हुआ जल चढ़ाया जाता है। सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ पर जलाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा की पूजा विध

  • इस दिन सूर्योदय से पहले जगकर घर की साफ-सफाई करके इस स्नान के बाद पूजा स्थल पर बैठना चाहिए.
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए.
  • इसके लिए आप भगवान विष्णु शिव माता पार्वती को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्र हल्दी, चंदन, रोली, अक्षत, अबीर, गुलाल, पुष्प, फल, फूल, मिष्ठान इत्यादि अर्पित करके प्रार्थना करें.
  • इसके बाद माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान की आरती उतारे.

वैशाख पूर्णिमा कथा

द्वापुर युग के समय की बात है, एक बार मां यशोदा भगवान श्री कृष्ण से कहती है कि हे कृष्ण तुम सारे संसार के पालनहार हो, मुझे तुम कोई ऐसा विधान बताओ जिससे किसी भी स्त्री को विधवा होने का कोई भी डर नहीं रहे और वह व्रत सारे मनुष्यों की इच्छा को पूरा करने का फल देता हो । माता की बात सुनकर श्रीकृष्ण जी कहते है कि मां आपने मुझसे बहुत अच्छा प्रश्न किया है। मैं आपको ऐसे व्रत के बारे मे विस्तार से  बताता हूं। अपने सौभाग्य प्राप्ति के लिये सभी महिलाओँ  को 32 पूर्ण मासी का व्रत करने चाहिए । इससे सोयभाग्य की प्राप्ति और संतान की रक्षा होती है ।
एक बहुत ही प्रसिद्ध राजा चंद्रहास्य के शासन में रत्नों से परिपूर्ण  कांतिका नामक नगर था । जिसमे धनेश्वर नाम का ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम सुशीला था, वह बहुत ही सुंदर थी। उनके घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी । लेकिन, ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। एक दिन उस नगर में एक साधु आता है, वहधु सभी के घरों से भिक्षा लेकर जाता है, लेकिन ब्राह्मण के घर से भिक्षा नहीं लेता है । हर रोज अब वह साधु ऐसा ही करता है। नगर में सभी के घर से भिक्षा लेकर गंगा नदी के किनारे जाकर भोजन ग्रहण करता है। यह सब देखकर ब्राह्मण बहुत दुखी हो जाता है और साधु से जाकर पूछता है कि आप नगर में सभी के घर से भिक्षा लेते हें, लेकिन मेरे घर से नहीं, इसका कारण क्या है। तभी साधु कहता है कि तुम निःसंतान हो, ऐसे घर से भिक्षा लेना पतितो के अन्न के समान हो जाती है। इसलिए मैं पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता हुं। धनेश्वर यह सुनकर बहुत ही ज्यादा दुखी हो जाता है और साधु को हाथ जोड़कर कहने लगता है कि मुनिवर आप मुझे ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे मुझे संतान प्राप्ति हो। तब साधु ने उससे सोलह दिन तक मां चंडी की पूजा करने को कहा। उसके बाद साधु के कहे अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया। 
उनकी आराधना से प्रसन्न होकर सोलह दिन बाद मां काली प्रकट हुई। मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाती जाना, जब तक कम से कम बत्तीस  दीपक न हो जाएं। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया। उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई। प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही। मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा। देवदास जब बड़ा हुआ, तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया। काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी, जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। देवदास ने कहा कि वह अल्पायु में है, लेकिन फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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