मधु-केटभ का वध तथा सृष्टि-परम्पराका वर्णन
पुलस्त्यजी कहते हें तदनन्तर अनेक योजन के विस्तार वाले उस सुवर्णमय कमल में, जो सब प्रकार के तेजोमय गुणों से युक्त और पार्थिव लक्षणों सें सम्पन्न था, भगवान् श्रीविष्णुने योगियोंमें श्रेष्ठ, महान् तेजस्वी एवं समस्त लोकोंकी सृष्टि करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्माजीको उत्पन्न किया। महर्षिगण उस कमलको श्रीनारायणकी नाभिसे उत्पन्न बतलाते हैं। उस कमलका जो सारभाग है, उसे पृथ्वी कहते हैं तथा उस सारभागमें भी जो अधिक भारी अंश हैं, उन्हें दिव्य पर्वत माना जाता है। कमलके भीतर एक और कमल है, जिसके भीतर एकार्णवके जलमें पृथ्वीकी स्थिति मानी गयी है। इस कमल के चारों ओर चार समुद्र हैं। विश्वमें जिनके प्रभावकी कहीं तुलना नहीं है, जिनकी सूर्यके समान प्रभा और वरुण के समान अपार कान्ति है तथा यह जगत् जिनका स्वरूप है, वे स्वयम्भू महात्मा ब्रह्माजी उस एकार्णवके जल में धीरे-धीरे पद्मरूप निधिकी रचना करने लगे।
इसी समय तमोगुणसे उत्पन्न मधुनामका महान् असुर तथा रजोगुणसे प्रकट हुआ कैटभ नामधारी असुर ये दोनों ब्रह्माजीके कार्यमें विप्नरूप होकर उपस्थित हुए यद्यपि वे क्रमशः तमोगुण और रजोगुणसे उत्पन्न हुए थे, तथापि तमोगुणका विशेष प्रभाव पड़नेके कारण दोनोंका स्वभाव तामस हो गया था। महान् बली तो वे थे ही, एकार्णवमें स्थित सम्पूर्ण जगतको क्षुब्ध करने लगे। उन दोनोंके सब ओर मुख थे। एकार्णवके जलमें विचरते हुए जब वे पुष्करमें गये, तब वहाँ उन्हें अत्यन्त तेजस्वी ब्रह्माजीका दर्शन हुआ तब. वे दोनों असुर ब्रह्माजीसे पूछने ऊगे 'तुमः कौन हो ? जिसने तुम्हें सृष्टिकार्यमें नियुक्त किया है,
वह तुम्हाश कौन है ? कौन तुम्हारा सन्ष्टा है और कौन रक्षक ? तथा वह किस नामसे पुकारा जाता है ?' ब्रह्माजी बोले असुरो! तुमलोग जिनके विषयमें पूछते हो, वे इस लोकमें एक ही कहे जाते हैं । जगतमें जितनी भी वस्तुएँ हैं उन सबसे उनका संयोग है वे सबमें व्याप्त हैं। [उनका कोई एक नाम नहीं है,] उनके अलौकिक करमोके अनुसार अनेक नाम हैं। यह सुनकर वे दोनों असुर सनातन देवता भगवान् श्रीविष्णुके समीप गये, जिनकी नाभिसे कमल प्रकट हुआ था तथा जो इन्द्रियोंके स्वामी हैं। वहाँ जा उन दोनोंने उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए कहा हम जानते हैं, आप विश्वकी उत्पत्तिके स्थान, अद्वितीय तथा पुरुषोत्तम हैं। हमारे जन्मदाता भी आप ही हैं। हम आपको ही बुद्धिका भी कारण समझते हैं। देव । हम आपसे हितकारी वरदान चाहते हैं। शत्रुदमन ! आपका "दर्शन अमोघ है। समर-विजयी वीर ।" हम आपको नमस्कार करते हैं।'
श्रीभगवान् बोले असुरो ! तुमलोग वर किसलिये माँगते हो ? तुम्हारी आयु समाप्त हो चुकी है, फिर भी तुम दोनों जीवित रहना चाहते हो ! यह बड़े आश्चर्यकी बात है। मधु कैटभने कहा प्रभो! जिस स्थानमें किसीकी मृत्यु न हुई हो; वहीं हमारा वध हो हमें इसी वरदानकी इच्छा है। श्री भगवान् खोले 'ठीक है' इस प्रकार उन महान् असुरोंको वरदान देकर देवताओंके प्रभु सनातन श्री विष्णु ने अक्नके समान काले शरीरवाले मधु और कैटभको अपनी जाँघोंपर गिराकर मसल डाला। तदनन्तर ब्रह्माजी अपनी बाहें ऊपर उठाये घोर तपस्यामें संलग्म हुए। भगवान् भास्करकी भाँति अन्धकारका नाश कर रहे थे ओर सत्यधर्मके परायण होकर अपनी किरणोंसे सूर्यके समान चमक रहे थे। किन्तु अकेले होने के कारण उनका मन नहीं लगा; अतः उन्होंने अपने शरीरके आधे भागसे शुभलक्षणा भार्याको उत्पन्न किया ।
तत्पश्चात् पितामहने अपने ही समान पुत्रों की सृष्टि की, जो सब के सब प्रजापति और लोकविख्यात योगी हुए । ब्रह्माजीनी [दस प्रजापतियोंके अतिरिक्त] लक्ष्मी, साध्या, शुभलक्षणा विश्वेशा, देवी तथा सरस्वती इन पाँच कन्याओको भी उत्पन्न किया। ये देवताओंसे भी श्रेष्ठ ओर आदरणीय मानी जाती हैं। कमेकि साक्षी ब्रह्माजीने ये पाँचों कन्याएँ धर्मको अर्पण कर दीं। ब्रह्माजीके आधे शरीरसे जो पत्नी प्रकट हुई थी, वह इच्छानुसार रूप धारण कर लेती थी। वह सुरभिके रूपमें ब्रह्माजीकी सेवामें उपस्थित हुई। लोकपूजित ब्रह्माजीनी उसके साथ समागम किया, जिससे ग्यारह पुत्र उत्पन्न हुए। पितामहसे जन्म ग्रहण करनेवाले वे सभी बालक रोदन करते हुए दौड़े। अतः रोने ओर दोड़नेके कारण उनकी “'रुद्र” संज्ञा हुई। इसी प्रकार सुरभिके गर्भसे गो, यज्ञ तथा देवताओंकी भी उत्पत्ति हुई बकरा, हंस और श्रेष्ठ ओषधियाँ (अन्न आदि) भी सुरभिसे ही उत्पन्न हुई हैं।
धर्म से लक्ष्मी ने सोमको और साध्याने साध्य नामक देवताओंको जन्म दिया। उनके नाम इस प्रकार हैं भव, प्रभव, कुशाश्च, सुबह, अरुण, वरुण, विश्वामित्र,, चल, ध्रुव, हविष्मानू, तनूज, विधान,अभिमत, वत्सर, भूति, सर्वासुरनिषृदन, सुपर्वा, बहत्कान्तत ओर महालोकनमस्कृत देवी (बसु) ने वसुसंज्ञक देवताओं को उत्पन्न किया, जो इन्द्रका अनुसरण करनेवाले थे। धर्मकी चोथी पत्नी विश्वा (विश्वेशा) के गर्भसे विश्वेदेव नामक देवता उत्पन्न हुए। इस प्रकार यह धर्मकी सनन्तानोंका वर्णन हुआ। विश्वेदेवोंके नाम इस प्रकार हैं महाबाहु दक्ष, नरेश्वर पुष्कर, चाक्षुष मनु, महोरग, विश्वानुग, वसु, बाल, महायशस्वी निष्कल, अति सत्यपराक्रमी रुरुद तथा परम कान्तिमान् भास्कर इन विश्वेदेव-संज्ञक पुत्रोंको देवमाता विश्वेशाने जन्म दिया है।
मरुत्त्वतीने मरुत्त्वान् नामके देवबताओंको उत्पन्न किया, जिनके नाम ये हैं अम्नि, चक्षु, ज्योति, सावित्र, मित्र, अमर, शरवृष्टि, सुवर्ष, महाभुज, विराज, राज, विश्वायु, सुमति, अश्वगन्ध, चित्ररश्मि, निषध, आत्मविधि, चारित्र, पादमात्रग, ब॒हत्, बहद्रूप तथा विष्णुसनाभिग ये सब मरुत्त्वतीके पुत्र मरुद्ण कहलाते हैं। अदितिने कश्यपके अंशसे बारह आदित्योंको जन्म दिया।इस प्रकार महर्षियोंद्वारा प्रशंसित सृष्टि-परम्पराका क्रमशः वर्णन किया गया । जो मनुष्य इस श्रेष्ठ पुराणको सदा सुनेगा और पर्वेकि अवसरपर इसका पाठ करेगा, वह इस लोकमें वैराग्यवान् होकर परलोकमें उत्तम फलोंका उपभोग करेगा। जो इस पोष्कर पर्वका महात्मा ब्रह्माजीके प्रादुर्भावकी कथाका पाठ करता है, उसका कभी अमड्रल नहीं होता। महाराज ! श्रीव्यासदेवसे जेसे मैंने सुना है, उसी प्रकार तुम्हारे सामने मैंने इस प्रसड्रका वर्णन किया है।
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