पढ़िए देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसों की उत्पत्ति का वर्णन,Padhie Devata, Daanav, Gandharv, Naag Aur Raakshason Kee Utpatti Ka Varnan

पढ़िए देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसों की उत्पत्ति का वर्णन

भीष्मजीने कहा - गुरुदेव! देवताओं, दानवों, गन्धौँ, नागों और राक्षसोंकी उत्पत्तिका आप विस्तारके साथ वर्णन कीजिये ।
पुलस्त्यजी बोले- कुरुनन्दन । कहते हैं पहले के प्रजा-वर्गकी सृष्टि संकल्पसे, दर्शनसे तथा स्पर्श करनेसे होती थी; किन्तु प्रचेताओं के पुत्र दक्ष प्रजापतिके बाद मैथुनसे प्रजाकी उत्पत्ति होने लगी। दक्षने आदिमें जिस प्रकार प्रजाकी सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो। जब वे पहले के नियमानुसार सङ्कल्प आदिसे देवता, ऋषि और नागोंकी सृष्टि करने लगे किन्तु प्रजाकी वृद्धि नहीं हुई, तब उन्होंने मैथुनके द्वारा अपनी पत्नी वीरिणी के गर्भसे साठ कन्याओं को जन्म दिया। उनमेंसे उन्होंने दस धर्मको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस चन्द्रमाको, चार अरिष्टनेमिको, दो भृगुपुत्रको, दो बुद्धिमान् कृशाश्वको तथा दो महर्षि अङ्गिराको ब्याह दीं। वे सब देवताओंकी जननी हुई। उनके वंश-विस्तारका आरम्भसे ही वर्णन करता हूँ, सुनो। अरुन्धती, वसु, जामी, लंबा, भानु, मरुत्वती, सङ्कल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा- ये दस धर्मकी पलियाँ बतायी गयी हैं। इनके पुत्रोंके नाम सुनो। विश्वाके गर्भसे विश्वेदेव हुए। साध्याने साध्य नामक देवताओं को जन्म दिया। मरुत्वती से मरुत्वान् नामक देवताओं की उत्पत्ति हुई। वसुके पुत्र आठ वसु कहलाये।


भानुसे भानु और मुहूर्तासे मुहूर्ताभिमानी देवता उत्पन्न हुए। लंबासे घोष, जामीसे नागवीथी नामकी कन्या तथा अरुन्धती के गर्भ से पृथ्वीपर होनेवाले समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। सङ्कल्पासे सङ्कल्पोंका जन्म हुआ। अब वसुकी सृष्टिका वर्णन सुनो। जो देवगण अत्यन्त प्रकाशमान और सम्पूर्ण दिशाओंमें व्यापक है, वे वसु कहलाते हैं; उनके नाम सुनो। आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास- ये आठ वसु हैं। 'आप' के चार पुत्र हैं- शान्त, वैतण्ड, साम्ब और मुनिबध्रु। ये सब यज्ञरक्षाके अधिकारी हैं। ध्रुवके पुत्र काल और सोमके पुत्र वर्चा हुए। धरके दो पुत्र हुए- द्रविण और हव्यवाह। अनिलके पुत्र प्राण, रमण और  शिशिर थे। अनलके कई पुत्र हुए, जो प्रायः अग्निके समान गुणवाले थे। अग्निपुत्र कुमारका जन्म सरकंडोंमें हुआ। उनके शाख, उपशाख और नैगमेय- ये तीन पुत्र हुए। कृत्तिकाओंकी सन्तान होनेके कारण कुमारको कार्तिकेय भी कहते हैं। प्रत्यूषके पुत्र देवल नामके मुनि हुए। प्रभाससे प्रजापति विश्वकर्माका जन्म हुआ, जो शिल्पकलाके ज्ञाता है। वे महल, घर, उद्यान, प्रतिमा, आभूषण, तालाब, उपवन और कूप आदिका निर्माण करनेवाले हैं। देवताओंके कारीगर वे ही हैं।

अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, सावित्र, जयन्त, पिनाकी और अपराजित- ये ग्यारह रुद्र कहे गये हैं; ये गणोंके स्वामी हैं। इनके मानस सङ्कल्पसे उत्पन्न चौरासी करोड़ पुत्र हैं, जो रुद्रगण कहलाते हैं। वे श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये रहते हैं। उन सबको अविनाशी माना गया है। जो गणेश्वर सम्पूर्ण दिशाओंमें रहकर सबकी रक्षा करते हैं, वे सब सुरभिके गर्भसे उत्पन्न उन्हींक पुत्र-पौत्रादि हैं। अब मैं कश्यपजीकी स्त्रियोंसे उत्पन्न पुत्र-पौत्रोंका वर्णन करूँगा। अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कडू, खसा और मुनि-ये कश्यपजीकी पत्नियोंके नाम हैं। इनके पुत्रों का वर्णन सुनो। चाक्षुष मन्वन्तर में जो तुषित नामसे प्रसिद्ध देवता थे, वे ही वैवस्वत मन्वन्तरमें बारह आदित्य हुए। उनके नाम हैं- इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, अर्यमा, विवस्वान्, सविता, पूषा, अंशुमान् और विष्णु। ये सहस्रों किरणोंसे सुशोभित बारह आदित्य माने गये हैं। इन श्रेष्ठ पुत्रोंको देवी अदितिने मरीचिनन्दन कश्यपके अंशसे उत्पन्न किया था।

कृशाश्व नामक ऋषिसे जो पुत्र हुए, उन्हें देव-प्रहरण कहते हैं। ये देवगण प्रत्येक मन्वन्तर और प्रत्येक कल्पमें उत्पन्न एवं विलीन होते रहते हैं। भीष्म ! हमारे सुननेमें आया है कि दितिने कश्यपजीसे दो पुत्र प्राप्त किये, जिनके नाम थे- हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। हिरण्यकशिपुसे चार पुत्र उत्पन्न हुए- प्रह्लाद, अनुहाद, संहाद और हाद। प्रह्लादके चार पुत्र हुए- आयुष्मान्, शिबि, वाष्कलि और चौथा विरोचन। विरोचनको बलि नामक पुत्रकी प्राप्ति हुई। बलिके सौ पुत्र हुए। उनमें बाण जेठा था। गुणोंमें भी वह सबसे बढ़ा-चढ़ा था। बाणके एक हजार बाँहें थीं तथा वह सब प्रकारके अस्त्र चलानेकी कलामें भी पूरा प्रवीण था। त्रिशूलधारी भगवान् शङ्कर उसकी तपस्यासे सन्तुष्ट होकर उसके नगरमें निवास करते थे। बाणासुरको 'महाकाल'की पदवी तथा साक्षात् पिनाकपाणि भगवान् शिवकी समानता प्राप्त हुई- वह महादेवजीका सहचर हुआ। हिरण्याक्षके उलूक, शकुनि, भूतसन्तापन और महाभीम- ये चार पुत्र थे। इनसे सत्ताईस करोड़ पुत्र-पौत्रोंका विस्तार हुआ। वे सभी महाबली, अनेक रूपधारी तथा अत्यन्त तेजस्वी थे। दनुने कश्यपजीसे सौ पुत्र प्राप्त किये। वे सभी वरदान पाकर उन्मत्त थे।

उनमें सबसे ज्येष्ठ और अधिक बलवान् विप्रचित्ति था। दनुके शेष पुत्रोंके नाम स्वर्भानु और वृषपर्वा आदि थे। स्वर्भानुसे सुप्रभा और पुलोमा नामक दानवसे शची नामकी कन्या हुई। मयके तीन कन्याएँ हुई- उपदानवी, मन्दोदरी और कुहू। वृषपर्वाके दो कन्याएँ थीं- सुन्दरी शर्मिष्ठा और चन्द्रा। वैश्वानरके भी दो पुत्रियाँ थीं- पुलोमा और कालका। ये दोनों ही बड़ी शक्तिशालिनी तथा अधिक सन्तानोंकी जननी हुई। इन दोनोंसे साठ हजार दानवोंकी उत्पत्ति हुई। पुलोमाके पुत्र पौलोम और कालकाके कालखञ्ज (या कालकेय) कहलाये। ब्रह्माजीसे वरदान पाकर ये मनुष्योंके लिये अवध्य हो गये थे और हिरण्यपुरमें निवास करते थे; फिर भी ये अर्जुनके हाथसे मारे गये । प्रचित्तिने सिंहिकाके गर्भसे एक भयङ्कर पुत्रको जन्म दिया, जो सैहिकेय (राहु) के नामसे प्रसिद्ध था। हिरण्यकशिपुकी बहिन सिंहिकाके कुल तेरह पुत्र थे, जिनके नाम ये हैं- कंस, शङ्ख, नल, वातापि, इल्वल, नमुचि, खसृम, अञ्जन, नरक, कालनाभ, परमाणु,  कल्पवीर्य तथा दनुवंशविवर्धन। संहाद दैत्यके वंशमें निवातकवचोंका जन्म हुआ। 

वे गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये अवध्य थे। परन्तु वीरवर अर्जुनने संग्राम-भूमिमें उन्हें भी बलपूर्वक मार डाला। ताम्राने कश्यपजीके वीर्यसे छः कन्याओंको जन्म दिया, जिनके नाम हैं- शुकी, श्येनी, भासी, सुगृधी, गृधिका और शुचि। शुकीने शुक और उल्लू नामवाले पक्षियोंको उत्पन्न किया। श्येनीने श्येनों (बाजों) को तथा भासीने कुरर नामक पक्षियोंको जन्म दिया। गृधीसे गृध और सुगृधीसे कबूतर उत्पन्न हुए तथा शुचिने हंस, सारस, कारण्ड एवं प्लव नामके पक्षियोंको जन्म दिया। यह ताम्राके वंशका वर्णन हुआ। अब विनताकी सन्तानोंका वर्णन सुनो। पक्षियोंमें श्रेष्ठ गरुड और अरुण विनताके पुत्र हैं तथा उनके एक सौदामनी नामकी कन्या भी है, जो यह आकाशमें चमकती दिखायी देती है। अरुणके दो पुत्र हुए- सम्पाति और जटायु। सम्पातिके पुत्रोंका नाम बभ्रु और शीघ्रग हैं। इनमें शीघ्रग विख्यात हैं। जटायुके भी दो पुत्र हुए- कर्णिकार और शतगामी। वे दोनों ही प्रसिद्ध थे। इन पक्षियोंके असंख्य पुत्र- पौत्र हुए।

सुरसाके गर्भसे एक हजार सर्पोंकी उत्पत्ति हुई तथा उत्तम व्रतका पालन करनेवाली कद्रूने हजार मस्तकवाले एक सहस्त्र नागोंको पुत्रके रूपमें प्राप्त किया। उनमें छब्बीस नाग प्रधान एवं विख्यात हैं- शेष, वासुकि, कर्कोटक, शङ्ख, ऐरावत, कम्बल, धनञ्जय, महानील, पद्म, अश्वतर, तक्षक, एलापत्र, महापद्म, धृतराष्ट्र, बलाहक, शङ्खपाल, महाशङ्ख, पुष्पदन्त, सुभावन, शङ्खरोमा, नहुष, रमण, पाणिनि, कपिल, दुर्मुख तथा पतञ्जलिमुख। इन सबके पुत्र-पौत्रोंकी संख्याका अन्त नहीं है। इनमेंसे अधिकांश नाग पूर्वकालमें राजा जनमेजयके यज्ञ-मण्डपमें जला दिये गये। क्रोधवशाने अपने ही नामके क्रोधवशसंज्ञक राक्षससमूहको उत्पन्न किया। उनकी बड़ी-बड़ी दाढ़ें थीं। उनमेंसे दस लाख क्रोधवश भीमसेनके हाथसे मारे गये। सुरभिने कश्यपजीके अंशसे रुद्रगण, गाय, भैंस तथा सुन्दरी स्त्रियोंको जन्म दिया। मुनिसे मुनियोंका समुदाय तथा अप्सराएँ प्रकट हुईं। अरिष्टाने बहुत-से किन्नरों और गन्धर्वोको जन्म दिया। इरासे तृण, वृक्ष, लताएँ और झाड़ियाँ इन सबकी उत्पत्ति हुई। खसाने करोड़ों राक्षसों और यक्षोंको जन्म दिया। भीष्म । ये सैकड़ों और हजारों कोटियाँ कश्यपजीकी सन्तानोंकी हैं। यह स्वारोचिष मन्वन्तरकी सृष्टि बतायी गयी है। सबसे पीछे दितिने कश्यपजीसे उनचास मरुद्गणोंको उत्पन्न किया, जो सब-के-सब धर्मके ज्ञाता और देवताओंके प्रिय हैं।

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