शनि और बुध,बृहस्पति,शुक्र के योग का फल
शनि और बुध के योग का फल
कुण्डली के प्रथम भाव में शनि और बुध का योग हो तो जातक परोपकारी तथा सरल हृदय वाला होगा। सत्यभाषी होने के कारण उसे सम्मान तो मिलेगा किन्तु यदा-कदा अपयश भी प्राप्त होगा। द्वितीय भाव में शनि के साथ बुध विराजमान हो तो इन ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से जातक क्रोधी होगा तृतीय भाव योग जातक को शिक्षा के क्षेत्र में बाधा उत्पन्न करेगा अर्थात् जातक की शिक्षा अधूरी होगी। सुख से हीन हो चतुर्थ भाव में यह योग हो तो सामान्य शिक्षित होगा किन्तु उदार स्वभाव के कारण सम्मान प्राप्त करेगा । ऐसे जातक लेखन-प्रिय होते हैं।
पंचम भाव में शनि-बुध योग का जातक सामान्य शिक्षित होगा किन्तु अनुचित साधनों से धनार्जन करेगा | षष्ठम भाव में यदि शनि के साथ बुध विराजमान है तो इन ग्रहों के प्रभाव से जातक कठिन परिश्रमी होगा। सप्तम भाव में शनि-बुध योग जिस जातक की कुण्डली में हो। ऐसे जातक को सुन्दर पत्नी प्राप्त होगी। जातक लेखक या अध्यापक होगा व्यापारी भी हो सकता है। व्यापार से लाभ होगा। शनि और बुध का योग अष्टम भाव में पूर्ण रूप से अशुभ है । नवम भाव में योग हो तो जातक आलसी तथा चंचल मानसिकता वाला होगा दशम भाव में भी यह योग अशुभ ही है।
शनि बुध का योग एकादश भाव में हो तो जातक गलत कार्यों से धनार्जन करेगा। अनेक विघ्न-बाधाओं से जूझते हुए शिक्षा प्राप्त करेगा । जातक की कुण्डली के द्वादश भाव में शनि के साथ बुध का योग जातक को धन-सम्पत्ति से पूर्ण करता है अर्थात् जातक धनवान होगा।
शनि और वृहस्पति के योग का फल
कुण्डली के प्रथम भाव (लग्न) में शनि के साथ गुरु का योग हो तो जातक सामान्य धन-सम्पत्ति वाला होगा । द्वितीय भाव में शनि+गुरु के प्रभाव का योग हो तो जातक को स्थायी धन लाभ होगा किन्तु ऐसे जातक अधिक व्यय करते हैं। सनन््तान से क्लेश रहेगा। तृतीय भाव में शनि-गुरु के प्रभाव से जातक के जीवनकाल का अधिक समय परिश्रम करते हुए व्यतीत होगा। चतुर्थ भाव में शनि के साथ गुरु विराजमान हो तो भौतिक सुख की कमी, पारिवारिक कलह, माता या पिता की मृत्यु जल्दी हो आदि विषयों पर विचार किया जाता है। कुण्डली के पंचम भाव में शनि-गुरु की युति हो तो जातक का जीवन सामान्य होगा। जातक लेखन, व्यापार आदि से जीवन यापन करेगा।
षष्ठम भाव में उक्त ग्रहों का योग होने पर भी जातक को सामान्य फल ही प्राप्त होंगे तथा सप्तम भाव में शनि-वृहस्पति हो तो जातक को पारिवारिक कलहक्लेश, धन की अल्पता अथवा दरिद्रता आदि पर विचार करें | अष्टम भाव में उक्त ग्रहों का योग जातक को सामान्य सुख देता है। जातक की आयु लम्बी होगी। धनार्जन का सदैव प्रयास करेगा। नवम् भाव में यदि शनि-गुरु विराजमान हैं तो जातक को सामान्य फल ही प्राप्त होंगे। ग्रहों का जातक पर विशेष प्रभाव नहीं होगा। दशम भाव में शनि-वृहस्पति कौ युति जातक को माता-पिता का सुख प्रदान करता है। जातक सामान्य शिक्षित होगा किन्तु पारिवारिक दायित्व का निर्वाह करेगा। एकादश भाव में शनि-गुरु की युति का प्रभाव जातक के जीवन का प्रथम सोपान कष्टप्रद् किन्तु बाद का समय सुखमय होगा। द्वादश भाव में स्थित शनि-गुरु का योग जातक को मान-सम्मान तथा धन सम्पत्ति प्रदायक है।
शनि और शुक्र के योंग का फल
कुण्डली के प्रथम भाव में शनि और शुक्र की युति हो तो द्विभार्या योग बनता है। सामान्य सुख प्राप्त होगा। द्वितीय भाव में शनि-शुक्र योग का जातक उदार स्वभाव का होगा, परिवार सुखी होगा । कुण्डली के तृतीय भाव में स्थित शनि-शुक्र युति के जातक को सामान्य पारिवारिक सुख प्राप्त होगा। अपने भाइयों से अलग होकर जीवन व्यतीत करेगा। चतुर्थ भाव में यह योग हो तो जातक मानसिक तनाव से ग्रस्त, परस्त्री गामी होगा। ऐसे जातकों का धन नाश हो जाता है। पंचम भाव में शनि-शुक्र का योग जातक को मातृ सुख, सन्तान सुख तो प्रदान करता ही है जातक उच्च शिक्षा भी प्राप्त करेगा। षष्ठम भाव में उक्त योग हो तो जातक रोगी होगा।
सप्तम भाव का जातक पराधीन होगा और पराधीन को स्वण में भी सुख नहीं मिलता । जिस जातक की कुण्डली के अष्टम् भाव में शनि के साथ शुक्र की युति होती है वह जातक भाग्यशाली होता है। अपनों से उसे धन लाभ होता है। नवम भाव में जातक के व्यभिचारी होने के योग बनते हैं। कुण्डली के दशम भाव में शनि और शुक्र की स्थिति से जातक को कारावास होने की संभावना होती है। सन्तान सुख, धन-सम्पत्ति प्राप्त हो । जातक संगीत सुनने का शौकीन होगा । एकादश भाव विराजित उक्त ग्रह जातक को कष्ट-क्लेश प्रदान करते हैं । ऐसे जातक शनि का उपाय करें तथा द्वादश भाव में यदि शनि के साथ शुक्र विराजमान है तो भी अशुभ फल ही जातक को प्राप्त होगा।
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