शनि की साढ़ेसा, शनि प्रदत्त रोग और उपाय
शनि की साढ़ेसा
शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनकर ही जातक हृदय भय से कांप उठता है। जिस पर शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप हो उसे दुःखों से भगवान ही बचाये। मेरे लिखने का यह तात्पर्य.नहीं है कि शनि की साढ़ेसाती निवारण का कोई उपाय नहीं है बल्कि कथन का अर्थ यह है कि शनि की साढ़ेसाती महान कष्ट दायक होती है।
शनि की साढ़ेसाती क्या है
शनि गोचर में परश्रिमण करता हुआ जन्मराशि से बारहवें भाव में आता है तब वह वहां पर ढाई वर्ष तक निवास करता है बाद में वह जन्मराशि में ढाई वर्ष रहता है और पुन: जन्म राशि से दूसरे भाव में ढ़ाई वर्ष की अवधि तक रहता है। इस तरह तीनों भावों में ढाई-ढ़ाई वर्ष रंहता है ढ़ाई वर्ष-ढ़ाई वर्ष तीन भावों का योग साढ़े सात वर्ष बनता है । यही शनि की साढ़े साती है।
शनि के साढ़ेसाती की स्थितियां
कब और किन स्थितियों में जातक पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव होता है। जातक की जन्म कुण्डली देखकर कैसे ज्ञात करें कि जातक पर शनि की साढ़ेसाती प्रभावी है अथवा नहीं । जातक की जन्म राशि से द्वादश, प्रथम एवम् द्वितीय भाव में गोचर वश जब शनि आता है उस समय शनि की साढ़े साती होती है । अब पाठकों को यह बताते हैं कि किस राशि पर शनि आए तो किस जन्म राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव होगा ?
- गोचरवश शनि जब मीन, मेष और वृष राशि पर रहता है तब मेष राशि वालों पर साढ़ेसाती का प्रभाव रहता है।
- मेष, वृष और मिथुन राशि पर शनि गोचरवश हो तो वृष राशि वालों की साढ़ेसाती रहती है।
- वृष, मिथुन एवम् कर्क राशि पर शनि जब गोचरवश रहता है तब मिथुन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहता है।
- मिथुन, कर्क और सिंह राशि पर जब शनि गोचर वश हो तो कर्क राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती रहती है।
- गोचरवश शनि जब कर्क, सिंह और कन्या राशि पर रहता है तब सिंह राशि वालों की साढ़ेसाती रहती है।
- सिंह, कन्या और तुला राशि पर शनि गोचरवश हो तो कन्या राशि वाले जातकों को साढ़ेसाती के प्रभाव में जाने।
- जब कन्या, तुला और वृश्चिक राशि पर शनि गोचर वश रहता है तब तुला राशि वालों की साढ़ेसाती रहती है।
- शनि गोचर वश तुला, वृश्चिक और धनु राशि पर रहता है तब वृश्चिक राशि वालों की साढ़ेसाती रहती है ।
- वृश्चिक, धनु तथा मकर राशि पर शनि जब गोचर वश परिभ्रमण करता है तब धनु राशि वालों की साढ़ेसाती रहती है।
- जब मकर, कुम्भ और मीन राशि पर शनि गोचर वश भ्रमण करता है तब कुम्भ राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती होती है।
- कुम्भ, मीन और मेष राशि पर जब शनि भ्रमण करता है तब मीन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती जाने ।
शनि प्रदत्त रोंग और उपाय
- अब मैं शनि के रोग प्रदान करने वाले भावों का वर्णन कर रहा हूं। कुण्डली के किन भावों का शनि जातक को कौन से रोग से ग्रस्त करता है ? स्वयं पढ़े और यदि कोई जातक ऐसे शनि से पीड़ित है तो दिये गये उपाय एवम् टोटकों को व्यवहार में लाकर शुभत्व प्राप्त करे। रोग मुक्त होने का साधन करें। लाभ हो सकता है।
- कुण्डली के प्रथम भाव (लग्न), चतुर्थ, अष्टम आदि भावों में से किसी भी भाव में सूर्य हो और शनि दशम भाव में विराजमान हो तो जातक को ' क्षय रोग' हो सकता है। उक्त ग्रह पीड़ा निवारण हेतु ' आदित्य-हृदय-स्तोत्र' का नित्य पाठ करें
- यदि शनि, चन्द्र और गुरु की युति कुण्डली के छठे भाव में हो तो जातक को ' कुष्ट-रोग ' होने का भय है | या हो चुका हो ऐसे जातक हल्दी, मोर पंख और मूंग की दाल के छिलके घिसकर दागों पर लगावें, लाभ हो सकता है। औषधियां भी प्रयोग करते रहें ।
- पंचम, सप्तम अथवा नवम भाव में शनि के साथ जिस जातक की कुण्डली में मंगल विराजित हो उस जातक के लिए, 'मतिम्रम ' का योग बनता है अतः समय रहते उचित उपाय करें।
- लग्न भाव में शनि के साथ सूर्य और मंगल शुभ-ग्रह हो तो भी जातक को रक्त विकार होने की ज्यादा सम्भावना होती है। इसके लिए जातक प्रतिदिन प्रातः काल स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें गुड़ मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दे।
- सिंह लग्नस्थ जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव का शनि जातक को हृदय रोग प्रदान करता है।
- कुण्डली के द्वितीय भाव का शनि जातक के दायें नेत्र का कारक है। ऐसे जातक ' सूर्य यंत्र' धारण करें।
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