जानिए माता हरसिद्धि मंदिर-उज्जैन शक्तिपीठ के बारे में,Jaanie Maata Harasiddhi Mandir-Ujjain Shaktipeeth Ke Baare Mein

माता हरसिद्धिमन्दिर - उज्जैन शक्तिपीठ

'स्कन्दपुराण' में उल्लेख है कि कैलास पर्वतपर चण्ड-प्रचण्ड नामक दो असुरोंने जब प्रवेश करनेकी अनधिकार चेष्टां की, तब नन्दीने उन्हें रोका। कुद्ध असुरोंने नन्दीको घायल कर दिया। भगवान् शिवने जब उनका यह आसुरी- कृत्य देखा तो भगवती चण्डीका स्मरण किया, देवी प्रकट हुई और शिवजीने चण्ड-प्रचण्डका वध करनेका उन्हें आदेश दिया। चण्डीने क्षणमात्रमें ही उन दोनों असुरोंका संहार कर दिया, महादेवजी प्रसभ हुए और बोले- 'है चण्डि। तुमने इन दृष्ट दानवोंका वध किया है अतः समस्त लोकोंमें तुम्हारा 'हरसिद्धि' नाम प्रसिद्ध होगा।' बृहत्तर देवभूमि भारतमें ५१ शक्तिपीठ हैं। उचैनमें स्थित माँ हरसिद्धिमन्दिर सतीकी कोहनीके पतनस्थलपर विद्यमान है। यहाँकी शक्ति माङ्गल्य चण्डिका और भैरव माङ्गल्य कपिलाम्बर है-

उज्जयिन्यां कूर्परं च माङ्गल्यकपिलाम्बरः ।
भैरवः सिद्धिदः साक्षाद् देवी मङ्गलचण्डिका ॥

हरसिद्धिमन्दिर कमल पुष्पोंसे सुशोभित रुद्रसागरसे लगा हुआ है, समीप ही ज्योतिर्लिङ्ग श्रीमहाकालेश्वर मन्दिर है। माँका मन्दिर मराठाकालीन है। पूर्वाभिमुख श्रीमन्दिरकी शोभा अवर्णनीय है। विशाल परकोटा, चार द्वार, दो दीपस्तम्भ, प्राचीन जलाशय (बावड़ी) जिसके द्वारस्तम्भपर संवत् १४४७ अङ्कित है। चिन्ताहरणविनायकमन्दिर, हनुमान्मन्दिर और ८४ महादेवमन्दिरोंमेंसे एक श्रीककोटेश्वर महादेवमन्दिर भी यहाँ स्थापित है। मन्दिरपरिसरमें आदिशति महामायाका मन्दिर है, जहाँ अखण्डज्योति जलती रहती है। सर्वकामार्थसिद्धिदा माँ हरसिद्धिके आस-पास महालक्ष्मी और महासरस्वतीदेवी विराजमान हैं। मध्यमें श्रीयन्त्र प्रतिष्ठित है, ये ही देवी माँ हरसिद्धि हैं। श्रीयन्त्रपर हो देवी माँकी मूरत गढ़ी गयी है, जिन्हें सिन्दूर चढ़ाया जाता है। नवरात्र आदि पर्वोपर स्वर्ण-रजत मुखौटा भी धराया जाता है। नित्य देवोंके नव श्रृंगार होते हैं। प्रातः और सायंकालीन आरतीके समय दर्शक दर्शन कर आह्वादित हो जाते हैं। हरसिद्धि माँकी वेदीके नीचेकी और भगवती भद्रकाली और भैरवको प्रतिमा है, जिन्हें सिन्दूर नहीं चढ़ाया जाता। श्रीमन्दिरमें पीठेश्वरी माँ हरसिद्धिके अतिरिक्त महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों विराजित हैं।

'नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया।'

नवरात्रमें ९ दिन माताजीकी भहापूजा होती है। दोनों दीपस्तम्भोंपर दीपक जलाये जाते हैं जो दूरसे आकाशमें चमकते हुए सितारों-जैसे लगते हैं। इतिहासप्रसिद्ध शकारि सम्राट् विक्रमादित्यकी देवी माँ सदा आराध्य रही हैं। मन्दिरके दायीं ओर स्थित चित्रशालामें विक्रमादित्य और उनकी राज्यसभाके नौ रनों, धन्वन्तरि, क्षपणक,, अमरसिंह, शंकु, बेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर तथा वररुचिके सुन्दर चित्र लगे हुए हैं।

इसी प्रकार श्री मन्दिर के सभामण्डप में नौ देवियों के चित्रोंको महुत खूबीके साथ चित्रित किया गया है। मन्दिरकी सीढ़ियाँ चढ़ते ही माँके वाहन सिंहके दर्शन होते हैं। प्रवेशद्वार के दायों ओर दो बड़े नगाड़े रखे हुए हैं, जो आरती के समय बजाये जाते हैं। हरसिद्धि मन्दिर से माँके आशीषों का निर्झर सतत बहता रहता है। यहाँ प्रतिदिन बड़ी संख्यामें भक्तगण आते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्तके समय पक्षियोंका कलरव यहाँके भक्तिमय वातावरणको हजार गुना बढ़ा देता है। ऐसा आभास होता है मानो विप्रमण्डली श्रीदुर्गासप्तशतीका समवेत पाठ कर रही हो। माता हरसिद्धि सकल सिद्धिकी दात्री है। शुद्ध मन और भक्तिभावनासे की गयी प्रार्थना माँ अवश्य स्वीकार करती हैं। भक्तजन उनका नामस्मरण करते हैं, जिससे जीवन का मार्ग निष्कण्टक एवं सुगम बन जाता है।

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