जानिए पश्चिम-तिब्बत-मानसरोवर में स्थित शक्तिपीठ के बारे में,Jaanie Pashchim-Tibbat-Maanasarovar Mein Sthit Shaktipeeth Ke Baare Mein
पश्चिम-तिब्बत-मानसरोवर में स्थित शक्तिपीठ
कैलास सर्वश्रेष्ठ हिमशिवलिङ्ग है जो साक्षात् शिव सदूश है और मानससरोवर उत्कृष्ट शक्तिपीठ है, यहाँपर सतीके दाहिने हाथकी हथेली गिरी थी। यहाँक शक्तिपीठकी देवीका नाम 'कुमुदा' है- 'मानसे कुमुदा प्रोक्ता।' यह स्थान अत्यन्त रम्य एवं साधनानुकूल है। मानससरोवरकी यात्रामें उत्तराञ्चलके काठगोदाम रेलवे स्टेशनसे बसद्वारा अल्मोड़ा तथा वहाँसे पिथौरागढ़ पहुँचा जा सकता है। काठगोदामसे दूसरा बसमार्ग बैजनाथ, बागेश्वर, डीडीहाट होकर पिथौरागढ़ जाता है या सीधे टनकपुर रेलवे स्टेशनसे पिथौरागढ़ जाया जा सकता है। पिथौरागढ़से अस्कोट, धारचूला, तवाघाट होते हुए व्यानीधार (पांगु), सोसा, नारायण आश्रम होकर सिरदंग सिरखा, जिप्ती, मालपा, बुट्टी होकर गरब्यांगसे गुंजी जाना होता है। गुंजीसे कालापानी, नवीडांग होकर हिमाच्छादित लिपु-ला (१७,९०० फुट ऊँचाई) पार करके पश्चिम-तिब्बत होते हुए तकलाकोट नामक मण्डी पहुँचा जाता है। वहाँसे टोयो, रिंगुंग, बलइक होकर पवित्रतम मानससर (मानसरोवर) के दर्शन होते हैं।

शक्तिपीठोंक प्रादुर्भावके विषयमें देवीपुराण, ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, कूर्मपुराण तथा तन्त्रग्रन्थोंमें विस्तारसे कथा प्राप्त होती है, तद्नुसार भगवान् विष्णुद्वारा सुदर्शनच्चक्रसे सतीके मृतदेहको काटनेपर जहाँ-जहाँ वे खण्ड गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठका निर्माण हुआ। देवीपुराणमें ऐसा उल्लेख है कि शिवकी अनेकानेक मूर्तियाँ इन स्थानोंपर आविर्भूत हो गयीं। सतीके अङ्ग पृथ्वीपर ५१ स्थानोंमें गिरे, अतः वहाँ-वहाँपर शक्तिपीठका निर्माण हुआ (कुछ ग्रन्थोंमें १०८ शक्तिपीठोंकी संख्या लिखी है)। प्रत्येक शक्तिपीठमें एक 'शक्ति' और एक 'भैरव' विभित्र रूप और विभिन्न नाम धारणकर निवास करते हैं। इन स्थानोंको महाशक्तिपीठ भी कहा गया है। देवीभागवत, शिवचरित्र (मराठी), तन्त्रचूड़ामणि इत्यादि ग्रन्थोंमें इन शक्तिपीठोंका विस्तृत बर्णन है। ये शक्तिपीठ परम पवित्र पूर्व त्वरित फलदायक माने गये हैं। शाकसम्प्रदायके साधक इन शक्तिपीठोंकी यात्रा, देव-देवीके दर्शन एवं वहाँपर साधना कर शक्तिके दर्शन और कृपा प्राप्त करते हैं- '
तेषां मन्त्राः प्रसिध्यन्ति मायाबीजविशेषतः ॥'
- (देवीपुराण)
हिन्दू, बौद्ध एवं जैनधर्मग्रन्थोंमें कैलास शक्तिपीठ मानसरोवरका गौरवमय वर्णन पाया जाता है। हिन्दूधर्मग्रन्थ मानसरोवरका मानससर, बिन्दुसर, मानससरोवर इत्यादि नामोंसे वर्णन करते हैं तथा उसके प्रति अटूट श्रद्धा-भक्ति रखते हैं। सृष्टिकर्ता ब्रह्माके मनद्वारा निर्मित होनेसे इस सरोवरका नाम 'मानससर' किंवा 'मानसरोवर' पड़ा। इस बातका समर्थन करते हुए महर्षि विश्वामित्र अयोध्यापति रामभद्र से कहते हैं कि-
कैलासपर्वते राम मनसा निर्मितं परम् ॥
ब्रह्मणा नरशार्दूल तेनेदं मानर्स सरः।
इसी ग्रन्थमें अन्यत्र कहा गया है कि राजा मान्धाताने इस सरोवरके तटपर दीर्घकालपर्यन्त उत्कट तपस्या की थी, अतः इसका नाम मान्धाताके नामसे 'मानसरोवर' पड़ा। तन्त्रचूड़ामणि, दाक्षायणीतन्त्र, योगिनीतन्त्र, देवीभागवत इत्यादि ग्रन्थोंमें मानससरका महाशक्तिपीठके रूपमें उल्लेख है। उसमें देवी कुमुदाका निवास कहा गया है। 'तन्त्रचूड़ामणि' नामक ग्रन्थमें कहा है कि-
मानसे दक्षहस्तो में देवी दाक्षायणी हर।
अमरो भैरवस्तत्र सर्वसिद्धिविधायकः ।।
अर्थात् मानसरोवरकी पवित्र भूमिपर सतीके देहकी दाहिने हाथकी हथेली गिरी थी, अतः वहाँ सर्वसिद्धिप्रदा भगवती 'दाक्षायणी' एवं भैरव 'अमर' विराजमान है। ऐसी भी जनश्रुति है कि द्वापरयुगमें एक चक्रवर्ती राजाने कैलासके समीप महायज्ञका भव्य आयोजन करवाया था। मानसरोवरकी भूमिमें यज्ञकुण्ड था। उसमें पूर्णाहुतिके बाद जलका फव्वारा फूटा और कुछ दिनोंमें वहाँपर विशाल जलभण्डार 'मानसरोवर' बन गया। महाभारत (वनपर्व)में ऐसा कहा गया है कि मानसरोवर उत्तम तीर्थ है और उसमें अवगाहन करनेवाला रुद्रलोकमें जाता है-
ततो गच्छेत राजेन्द्र मानसं तीर्थमुत्तमम् ।
तन्त्र खात्वा नरो राजन् रुद्रलोके महीयते ॥
रामायणमें भी कहा गया है कि मानसरोवरमें शिव हंसरूपसे बिहार करते रहते हैं। पुराणोंमें ऐसा उल्लेख है कि ब्रह्माके मनसे निर्मित मानसरोवरके दर्शनमात्रसे दर्शनार्थीके पापोंका क्षालन हो जाता है तथा उसमें खान एवं उसके पवित्र जलका पान करनेसे ब्रह्मलोककी प्राप्ति होती है। उसके सुरम्य तटपर निवास कर मन्त्रसाधना करनेपर मन्त्रसिद्धि होती है तथा भगवती महाशक्ति कुमुदाकी असीम अनुकम्पा प्राप्त होती है और उसका आवागमन मिट जाता है।
यहाँ निवास करनेवाले साधकको युगके अन्तमें पार्षदों तथा पार्वतीसहित इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले भगवान् शंकरका प्रत्यक्ष दर्शन होता है। इस सरोवरके हटपर चैत्रमासमें कल्याणकामी याजक पुरुष अनेक प्रकारके यज्ञोंद्वारा परिवारसहित पिनाकधारी भगवान् शिवकी आराधना करते हैं। इस सरोवरमें श्रद्धापूर्वक ज्ञान एवं आचमन करके पापमुक्त हुआ जितेन्द्रिय पुरुष शुभ लोकोंमें जाता है; इसमें संशय नहीं है-
क्षीणे युगे तु कौन्तेय शर्वस्य सह पार्थदैः ॥
सहोमया च भवति दर्शनं कामरूपिणः।
अस्मिन् सरसि सत्रैर्वै चैत्रे मासि पिनाकिनम् ।।
यजन्ते याजकाः सम्यक् परिवारं शुभार्थिनः।
अत्रोपस्पृश्य सरसि श्रद्दधानो जितेन्द्रियः ।।
क्षीणपापः शुभौल्लोकान् प्राप्नुते नात्र संशयः ।
मानसरोवरकी पवित्रतम भूमि शक्तिशाली सूक्ष्म आन्दोलनोंसे सतत विकम्पित रहती है, जो प्रतीति कराती है कि इस स्थानपर अवश्य महाशक्तिपीठ है। मानसरोवर अत्यन्त सुन्दर, शान्त एवं आनन्दसे परिपूर्ण है। उसका जल स्फटिक-सा स्वच्छ, मधुरतर, खिग्ध और सुपाच्य है। मानसरोवर विषयक एक कथा इस प्रकार है कि जब तारकासुर देवों और मानवोंको अत्यन्त त्रास देने लगा, तब उसका वध करनेके लिये देवोंने भगवान् शिवसे महापराक्रमी सुपुत्र उत्पन्न करनेहेतु प्रार्थना की। शिवने 'तथास्तु' कहा। उसी दिन जब भगवती शिवा (पार्वती) मानसरोवरके तटपर भ्रमण करनेके लिये गर्मी, तब उन्होंने देखा कि ब्रः दिव्य स्त्रियाँ कमलपत्रके द्रोणमें मानसरोवरका पवित्रतम जल भरकर ले जा रही थीं।
पार्वतीने उनका परिचय और जल ले जानेका प्रयोजन पूछा। उनसे प्रत्युत्तर मिला कि आज शुभ दिनमें जो कोई पतिव्रता स्वी इस पवित्रतम जलका पान करेगी, उसके उदरसे देवसेनानायक-जैसा महापराक्रमी पुत्र उत्पन होगा। यह सुनकर पार्वतीने उस द्रोणमें भरा पवित्रतम जल पीनेकी इच्छा व्यक्त की। उन स्त्रियों (कृत्तिकाओं) ने कहा कि हम यह पवित्रतम जल आपको देंगी, किंतु इस जलके प्रभावसे होनेवाले आपके महापराक्रमी सुपुत्रका नाम हमारे (कृत्तिकाओंक) नामपर ही 'कार्तिकेय' रहेगा। पार्वतीने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर उस दिव्य जलका पान किया; फलतः भगवान् कार्तिकेयका जन्म हुआ। देवसेनानायक बनकर युद्धमें उन्होंने तारकासुरका वध किया और देव-मानवोंको त्रासमुक्त कर दिया। बौद्ध धर्मग्रन्थोंने भी मानसरोवरका अत्यन्त महत्त्व दर्शाया है। भगवान् बुद्धके जन्मके साथ मानसरोवरका घनिष्ठ सम्बन्ध कहा गया है।
पालि भाषामें लिखे हुए बौद्ध ग्रन्थोंमें मानसरोवरको ' अनो-ताता-सर' अर्थात् पवित्रताका सरोवर कहा है। बुद्धदेवके सममसे ही बौद्धलोग पश्चिम-तिब्बतस्थित महातीर्थ कैलास एवं मानसरोवरकी यात्रा तथा परिक्रमा करते आये हैं। वैदिक कालमें भी ऋषि-मुनिलोग कैलास एवं मानसरोवरकी यात्रा और प्रदक्षिणा करते थे, ऐसा प्रमाण प्राचीन धर्मग्रन्थोंसे प्रास होता है। तिब्बती धर्मग्रन्थ कंगरीकरछकमें मानसरोवरको देवी दोर्जे फांग्मो (बज्रवाराही) का निवासस्थान माना है। इस पवित्र सरोवरमें भगवान् देमचोग (दे-सुख, मचोग-महा) भगवती दोर्जे फांग्मोके साथ पर्वदिनमें विहार करते हैं। इस धर्म-ग्रन्थमें मानसरोवरको 'त्सो-मफम' कहा है और बताया है कि भारतदेशसे एक बड़ी मछलीने आकर मानसरोवरमें मफम (छब आवाज) करते हुए प्रवेश किया था, अतः इस मधुर जलके महासरोवरका नाम 'त्सो-मफम' पड़ गया।
जैन-धर्म-ग्रन्थोंमें कैलासको अष्टापद कहा गया है और मानसरोवरको 'पद्महृद' बताया है। इस पवित्रतम सरोवरमें कतिपय तीर्थंकरोंने ज्ञान किया था और उसके सुरम्य तटपर निवास कर तपस्या की थी। एक जैन-ग्रन्थमें ऐसा लिखा है कि लङ्कापति रावण लङ्कासे अपने पुष्पक विमानमें बैठकर एक दिन अष्टापद (कैलास) एवं पद्महृद मानसरोवरकी यात्रा और दोनों ही तीथाँकी प्रदक्षिणा करनेके लिये आया था। लङ्केश रावण शतिका भी उपासक था, अतः उसने महाशक्तिपीठ मानसरोवरमें खान करना चाहा, किंतु देवताओंने स्नान करनेसे रोका। यह देखकर महाबली रावणने अपनी सामर्थ्यसे मानसरोवरके समीप ही एक बड़े सरोवरका निर्माण किया और उसमें खान किया। उस सरोवरका नाम 'रावणहृद' पड़ा। पवित्रतम मानसरोवरका जल जिस छोटी-सी नदीद्वारा 'रावणहृद' (राक्षसताल) में जाता है, उस नदीको लंगक-त्यु (लंगक-राक्षस, लघु- नदी) गङ्गा-छु कहते हैं। राक्षसतालसे पवित्र 'सरयूगङ्गा' निकलती है। यह दिव्य शक्तिपीठ मानसरोवर समुद्रतलसे १४,९५० फुटकी ऊँचाईपर है।
मानसा शक्तिपीठ (Manasa Shakti Peeth)
- शरीर का अंग – दाहिना हाथ
मानस शक्तिपीठ मानसरोवर तिब्बत
मानस शक्तिपीठ हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध ५१ शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किये हुए वस्त्र और आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। इन शक्तिपीठों का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्त्व है। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में ५१ शक्तिपीठों का वर्णन है। हिंदुओं के लिए कैलास पर्वत 'भगवान शिव का सिंहासन' है। बौद्धों के लिए विशाल प्राकृतिक मण्डप और जैनियों के लिए ऋषभदेव का निर्वाण स्थल है। हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही इसे तांत्रिक शक्तियों का भण्डार मानते हैं। भले ही भौगोलिक दृष्टि से यह चीन के अधीन है तथापि यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और तिब्बतियों के लिए अति-पुरातन तीर्थस्थान है। तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव देव अमर हैं। मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं ७ नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। आदि शक्तिपीठों की संख्या ४ मानी जाती है।कालिकापुराण में शक्तिपीठों की संख्या २६ बताई गई है। शिव चरित्र के अनुसार शक्ति पीठों की संख्या ५१ हैं। तंत्र चूड़ामणि, मार्कण्डेय पुराण के अनुसार शक्ति-पीठ ५२ हैं। भागवत में शक्तिपीठों की संख्या १०८ बताई गई है।
धार्मिक महत्ता और मान्यताएँ
मानसरोवर तिब्बत में स्थित एक पवित्र स्थल है, जिसे हिन्दू, बौद्ध, जैन और तिब्बती धर्मावलंबियों द्वारा अत्यधिक मान्यता प्राप्त है। यह कैलास पर्वत के निकट स्थित है और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- शक्तिपीठ: हिन्दू धर्म में मानसरोवर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहाँ माता सती की दाहिनी हथेली गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'दाक्षायणी' और भैरव 'अमर' हैं।
- शिव और पार्वती का निवास: यह स्थान भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान माना जाता है। कैलास पर्वत को शिवजी का सिंहासन कहा जाता है।
- बौद्ध और जैन धर्म में महत्व: बौद्ध धर्म में यह स्थान तांत्रिक शक्तियों का भण्डार माना जाता है। जैन धर्म में इसे ऋषभदेव का निर्वाण स्थल माना जाता है और कैलास पर्वत को 'अष्टपद' कहा जाता है।
- वाल्मीकि रामायण: वाल्मीकि रामायण में इसे ब्रह्मा के मन से निर्मित 'मानसरोवर' कहा गया है। यहाँ स्वयं शिव हंस रूप में विहार करते हैं।
- तिब्बती मान्यताएँ: तिब्बती धर्मग्रंथ 'कंगरी करछक' में मानसरोवर की देवी 'दोर्जे फांग्मो' यहाँ निवास करती हैं और भगवान देमचोर्ग देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं।
भौगोलिक और प्राकृतिक विशेषताएँ
मानसरोवर झील: यह झील प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्ता के कारण प्रसिद्ध है। इसके निकट ही राक्षस ताल है, जिसे 'रावण हृद' भी कहा जाता है।कैलास पर्वत: कैलास पर्वत 22,028 फीट ऊँचा है और पूरे साल बर्फ की सफेद चादर में लिपटा रहता है। यह पर्वत अपने अद्वितीय आकार और पौराणिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथा
सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ किया और सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। सती ने यज्ञ में बिना बुलाए प्रवेश किया और अपमानित होकर यज्ञाग्नि में कूद गईं। भगवान शिव ने क्रोध में आकर सती के शरीर को उठाकर तांडव नृत्य शुरू किया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ बन गए।
धार्मिक यात्राएँ और तीर्थाटन
हिंदू, बौद्ध, जैन और तिब्बती तीर्थयात्री: मानसरोवर और कैलास पर्वत की यात्रा हिंदू, बौद्ध, जैन और तिब्बती धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। तीर्थयात्री यहाँ आकर तपस्या और ध्यान करते हैं।- विशिष्टता
धार्मिक और पौराणिक महत्ता: यह स्थान विभिन्न धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है, जिससे इसकी धार्मिक महत्ता और बढ़ जाती है।
मानसरोवर तिब्बत में स्थित एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है, जो विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्ता के कारण विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
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