जानिए श्री माता त्रिपुरेश्वरी (त्रिपुर सुंदरी) शक्तिपीठ के बारे में,Jaanie Shree Maata Tripureshvaree (Tripur Sundaree) Shaktipeeth - Ke Baare Mein

श्री माता त्रिपुरेश्वरी (त्रिपुर सुंदरी) शक्तिपीठ - त्रिपुरा

पौराणिक कथाके अनुसार विष्णुभगवान्‌ने अपने सुदर्शन चक्रसे माता सतीके शवके ५१ टुकड़े किये थे, जो ५१ स्थानोंपर गिरे। माताका दाहिना पैर जिस स्थानपर गिरा, वह स्थान त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ कहलाता है। इस स्थानपर मन्दिरका निर्माण किया गया। यह भव्य मन्दिर उदयपुर शहरसे लगभग तीन किलोमीटरको दूरीपर स्थित है। भारतवर्षके ५१ पीठस्थानोंमें यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पीठ माना गया है। सीमान्त प्रदेश त्रिपुरा का यह पीठस्थान भारतके पूर्वोत्तर क्षेत्रमें स्थित है। इस पीठस्थानको कुर्मापीठके नामसे भी जाना जाता है, इस मन्दिरका प्राङ्गण 'कुरमा' कछुवेकी तरह है। इस पवित्र मन्दिरमें माता कालीकी लाल-काली कास्टीक पत्थरकी मूर्ति बनी हुई है। इस मूर्तिके अतिरिक्त एक छोटी मूर्ति भी मन्दिरमें है, जिसे 'छोटो माँ' के नामसे जाना जाता है। उनकी भी महिमा कालीमाताकी तरह ही है, जिसे त्रिपुराके राजा शिकार करने या युद्धके समय अपने साथ रखते थे।


एक प्राचीन कथाके अनुसार सन् १५०१ ई० में त्रिपुरा राज्यमें महाराजा धन्यमाणिक्य राज्य करते थे। एक दिन रातको माता त्रिपुरेश्वरी राजाके सपनेमें आयीं और बोलीं कि चित्तागाँवके पहाड़‌पर (जो कि वर्तमान समयमें बंगलादेशमें स्थित है) मेरी मूर्ति विराजमान है, उसको यहाँ आजकी रातमें ही लाना होगा। इस सपनेको देखनेके तुरंत बाद राजाने अपने सैनिकोंको चित्तागाँवके पहाड़‌पर भेज दिया और आदेश दिया कि माता त्रिपुरेश्वरीकी मूर्ति आजकी रातमें ही ले आनो। जन सैनिक मूर्तिको लेकर माताबाड़ीतक पहुँचे, उसी दौरान सूर्योदय हो गया और माताके आदेशानुसार वहींपर उनका मन्दिर स्थापित कर दिया गया, जो बादमें माता त्रिपुरासुन्दरीके नामसे प्रख्यात हो गया। महाराजा धन्यमाणिक्यने इस स्थानपर विष्णुमन्दिर बनानेके बारेमें सोचा था, किंतु माता त्रिपुरेश्वरीको मूर्ति स्थापित होनेके कारण राजा यह निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि मैं किसके मन्दिरका निर्माण करूँ। उसी समय आकाशवाणी हुई कि 'आपने जहाँपर विष्णुभगवान्‌का मन्दिर बनानेके बारेमें सोचा था, उस स्थानपर आप माता त्रिपुरासुन्दरीके मन्दिरका निर्माण करें।' तदनुसार मन्दिरका निर्माण हुआ।

मन्दिरके पीछे पूर्वकी तरफ ६.४० एकड़‌के इलाकेमें एक तालाब है, जो कि झीलकी तरह है, वह कल्पाणसागरके नामसे प्रख्यात है। यह झील बड़ी-बड़ी मछलियों एवं कछुओंके लिये प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यताके अनुसार इन मछलियों और कछुओंको मारना अथवा पकड़‌ना अपराध है। प्राकृतिक कारणोंसे मछलियों एवं कछुओंके मर जानेपर उनको दफनानेके लिये एक अलग स्थान बनाया गया है। उसी स्थानपर मन्दिरके पुजारियोंके लिये भी समाधि-स्थल बनाया गया है। वर्तमान समयमें स्थानीय प्रशासन बड़े पैमानेपर कल्याणसागर झीलकी देखभालका कार्य कर रहा है एवं इसे चारों तरफसे पक्का करा दिया गया है। मन्दिरके रख रखाव एवं श्रद्धालुओंके रहने, खाने तथा अन्य मौलिक आवश्यकताओंकी निगरानी त्रिपुरा सरकारके राजस्व विभाग एवं जिलाधिकारीके अधीन की जाती है। इसके लिये त्रिपुरा सरकारद्वारा एक समितिका गठन किया गया है, 

जो कि स्थानीय प्रशासनको इसमें मदद करती है। इस दौरान प्रतिदिन होनेवाले खर्चको भी त्रिपुरा सरकारके राजस्व विभागद्वारा वहन किया जाता है। प्रतिवर्ष दीपावली पर्वके उपलक्ष्यमें माता त्रिपुरेश्वरी- मन्दिरपर दो दिनके लिये एक बड़े मेलेका आयोजन किया जाता है। इस पर्वमें भारतवर्षके विभिन्न प्रान्तों एवं विदेशोंसे श्रद्धालुओंका समूह माता त्रिपुरेश्वरीके दर्शनके लिये आता है। इन श्रद्धालुओंकी संख्या प्रतिवर्ष लगभग ३ से ५ लाखतककी होती है। उदयपुर-सबरम पक्की सड़‌कके किनारे स्थित इस मन्दिरका क्षेत्रफल २४ फीट २४ फीट ७५ फीट है। यहाँपर श्रद्धालुओंके आवागमनके लिये उदयपुरसे माताबाड़ीके लिये लगातार बस, ऑटोरिक्शा आदि चलते रहते हैं। मन्दिरके समीप अनेक धर्मशालाएँ तथा रेस्ट हाउस भी हैं।

त्रिपुरा शक्तिपीठ – ( Tripura Shakti Peeth )

  • शरीर का अंग – दायां पैर
राधा किशोरपुर गाँव में स्थित, उदयपुर शहर से कुछ किलोमीटर दूर, त्रिपुर वैरावी शक्ति पीठ है, जहाँ सती का दाहिना पैर गिरा था। देवी देवी त्रिपुर सुंदरी के रूप में हैं।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, जिसे स्थानीय रूप से देवी त्रिपुरेश्वरी के नाम से जाना जाता है, त्रिपुरा के प्राचीन शहर उदयपुर में स्थित है। यह मंदिर त्रिपुरा के अगरतला से लगभग 55 किमी दूर है और वहाँ ट्रेन और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। इसे देश के सबसे पवित्र हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है और यह असम के कामाख्या मंदिर के बाद, पूर्वोत्तर भारत में सबसे अधिक आगंतुकों वाले मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के नाम पर त्रिपुरा राज्य का नाम रखा गया है। माताबारी के नाम से लोकप्रिय यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है जो कछुए (कूर्म) के कूबड़ जैसा दिखता है और इस आकार को शक्ति मंदिर के लिए सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, जिसे कूर्म पीठ कहा जाता है।

मंदिर का इतिहास:-

त्रिपुर सुंदरी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। किंवदंती के अनुसार, सती के दाहिने पैर (दक्षिण चरण) का एक हिस्सा, जिसमें बड़ा पैर का अंगूठा भी शामिल है, यहाँ गिरा था। यहाँ शक्ति की पूजा त्रिपुरसुंदरी के रूप में की जाती है और साथ में भैरव को त्रिपुरेश के रूप में पूजा जाता है। मुख्य मंदिर त्रिपुरा के महाराजा धन्य माणिक्य ने 1501 ई. में बनवाया था। मंदिर की वास्तुकला बंगाली एक-रत्न शैली में है और इसमें एक घनाकार इमारत है जिसमें तीन-स्तरीय छत और एक कलश है। मंदिर के गर्भगृह में देवी की दो मूर्तियाँ हैं, जो काले पत्थर से बनी हैं। 5 फीट ऊँची बड़ी मूर्ति देवी त्रिपुरा सुंदरी की है और छोटी मूर्ति, जिसे छोटो-माँ कहा जाता है, 2 फीट ऊँची है और देवी चंडी की मूर्ति है। कहा जाता है कि छोटी मूर्ति को त्रिपुरा के राजा युद्ध के मैदान और शिकार अभियानों में भी ले जाते थे।

किंवदंती:-

राजा धन्य माणिक्य को एक रात सपने में देवी त्रिपुर सुंदरी ने अपनी पूजा करने का निर्देश दिया था। पहाड़ी पर पहले से ही भगवान विष्णु का एक मंदिर था, जिससे राजा दुविधा में थे। अगली रात फिर से दिव्य दृष्टि के माध्यम से, उन्होंने समझा कि विष्णु और शक्ति एक ही सर्वोच्च देवता के विभिन्न रूप हैं। इस प्रकार, त्रिपुर सुंदरी का मंदिर 1501 ई. में अस्तित्व में आया।

पर्यटकों का आकर्षण:-

उदयपुर में देवी की पूजा त्रिपुरसुंदरी, त्रिपुरेश्वरी या सोदाशी के नाम से की जाती है। मंदिर का आधार 24 वर्ग फीट और ऊंचाई 75 फीट है। मंदिर की यात्रा करने वाले भक्त आमतौर पर फूल और प्रसाद के रूप में पेड़ा और लाल गुड़हल का फूल देवी को चढ़ाते हैं।

सती और शक्तिपीठ:-

सती देवी के शरीर के अंग गिरने के कारण शक्तिपीठों की स्थापना हुई। यह घटनाएँ भारतीय संस्कृति और शैव धर्म के विकास में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। 51 शक्तिपीठों में प्रत्येक मंदिर में शक्ति और कालभैरव के लिए मंदिर होते हैं, जिनके अलग-अलग नाम होते हैं।

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