जानिए वैद्यनाथधाम शक्तिपीठ ( हार्दपीठ ) के बारे में,Jaanie Vaidyanaathadhaam Shaktipeeth ( Haardapeeth ) Ke Baare Mein
वैद्यनाथधाम शक्तिपीठ ( हार्दपीठ )
व्याकरणके अनुसार' शक्' धातुमें 'क्तिन्' प्रत्यय जोड़नेसे 'शक्ति' शब्द निष्पन्न हुआ है, यह शब्द बल, योग्यता, धारिता, सामर्थ्य, ऊर्जा एवं पराक्रमके अर्थको अभिद्योतित करता है। शास्त्रने शक्तिके तीन भेदोंको स्वीकार किया है, जो प्रभुशकि, मन्त्रशक्ति एवं उत्साह शक्तिके रूपमें वर्णित हैं। शिवपुराणमें ऐसा प्रसंग आया है कि दाक्षायणी भगवती सती अपने पिता राजा दक्षके द्वारा अनुष्ठित यज्ञमें जाना चाहती चीं। बहुत अनुनय-विनय करनेके बाद भगवान् शिवने जानेकी आज्ञा दे दी। तदनन्तर यज्ञ मण्डपमें पहुँचनेके बाद सभी देवताओंके लिये स्थान एवं भगवान् शिवके लिये स्थान न देखकर सतीने अपने पितासे कहा कि मेरे स्वामीके लिये इस यज्ञ-मण्डपमें स्थान क्यों नहीं? तब राजा दक्षने कहा-
मया कृतो देवयागः प्रेतयागो न चैव हि।
देवानां गमर्न यत्र तत्र प्रेतविवर्जितः ॥
अर्थात् मैंने देवयज्ञ किया है, प्रेतपत्त नहीं। जहाँ देवताओंका आवागमन हो वहाँ प्रेत नहीं जा सकते। तुम्हारे पति भूतादिकोंके स्वामी हैं, अतः मैंने उन्हें नहीं बुलाया। यह सुनकर भगवती सतीने अपनी देहको यज्ञ-कुण्डमें आहुत कर दिया। तत्पश्चात् वीरभद्र और भद्रकालीने यज्ञका विध्वंस कर दिया तथा भगवान् शंकर सतीके अवशिष्ट शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड-मण्डलमें घूमने लगे। सभी लोकोंमें हाहाकार मच गया। तब भगवान् विष्णुने अपने सुदर्शन चक्रसे भगवती सतीके शरीरको ५१ टुकड़ोंमें विभक्त कर दिया। सतीका हृदयदेश वैद्यनाथधामकी पावन नगरीमें गिरा था, अतः यहाँक शक्तिपीठको 'हार्दपीठ' या 'हृदयपीठ' भी कहा जाता है- हृदयपीठके समान शक्तिपीठ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड-मण्डलमें कहीं नहीं है, ऐसा पद्मपुराणका कथन है-
हार्दपीठस्थ सदृशो नास्ति भूगोलमण्डले।
सतीको यहाँ 'जयदुर्गा' के नामसे अभिहित किया गया है। भगवान् वैद्यनाथ ही उनके भैरव हैं-हृद्यापीठं वैद्यनाथस्तु भैरवः। देवता जयदुर्गास्या॥
मत्स्यपुराण आदिमें 'आरोग्या वैद्यनाचे तु'- ऐसा भी प्रमाण मिलता है। देवीभागवत महापुराणमें बगलामुखी का सर्वोत्कृष्ट स्थान वैद्यनाथधाममें बताया गया है तथा यहाँ की शक्ति को 'आरोग्या' नामसे अभिहित किया है। ज्योतिर्लिङ्ग कि स्वरूप-वर्णन में वैद्यनाथ को शक्तियुक्त सिद्ध किया है-
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपयां श्रीवैद्यनाथं तमई नमामि ।।
बैद्यनाथ जयदुर्गा शक्तिपीठ
झारखंड के देवगढ़ में स्थित बैद्यनाथ जय दुर्गा शक्ति पीठ भारत के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। यह मंदिर है जहाँ देवी सती का हृदय गिरा था और उन्हें जय दुर्गा के रूप में पूजा जाता है।
जय दुर्गा शक्तिपीठ को बैद्यनाथ धाम शक्तिपीठ कहा जाता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार सती का हृदय इसी स्थान पर गिरा था इसीलिए इसे हृदय पीठ या हृदयम शक्तिपीठ भी कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक झारखंड के देवघर(गिरिडीह जिला) में बैधनाथ ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। यही पर जय दुर्गा शक्तिपीठ अवस्थित है। यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह विश्व का इकलौता शिवालय है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। जय दुर्गा शक्ति पीठ को चिताभूमि के नाम से जाना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब सती का हृदय इस स्थान पर गिरा था। उस समय भगवान शिव ने उनके हृदय का दाह संस्कार किया था। इसलिए इस स्थान को चिता भूमि कहा जाता है। यह मंदिर 72 फीट लंबा सफेद सादा पुराना ढांचा है जिसमें विभिन्न देवताओं को समर्पित छोटे-छोटे मंदिर फैले हुए हैं। मंदिर के भीतर एक चट्टानी मंच पर दुर्गा और पार्वती की मूर्तियाँ मौजूद हैं। लोग आमतौर पर इस पर चढ़ते हैं और देवी-देवताओं को फूल और दूध चढ़ाते हैं। कई तांत्रिकों ने जयदुर्गा की पूजा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। यहां जगन्माता की दो रूपों में पूजा की जाती है। पहली है त्रिपुर सुंदरी/त्रिपुर भैरवी और दूसरी है छिन्नमस्ता। त्रिपुर सुंदरी की पूजा गणेश के साथ ऋषि के रूप में की जाती है और छिन्नमस्ता की पूजा रावणासुर ऋषि के रूप में की जाती है।

दर्शन मात्र से मिलती है बीमारियों से छुटकारा:
बैद्यनाथ शक्ति पीठ न केवल एक शक्ति पीठ है, बल्कि एक पवित्र स्थान भी है जहां व्यक्ति को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है, उसे सभी प्रकार की बीमारियों और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। व्यक्ति के मस्तिष्क से बुरे या नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं। व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
शिव और शक्ति एक साथ विराजमान:
बाबा बैद्यनाथ मंदिर विश्व का एकमात्र शिवालय है जहां पर शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं। यही कारण है कि इसे शक्ति पीठ और हृदय पीठ भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस नगरी में आने से शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद मिलता है। पुरोहित बताते हैं कि यहां पहले शक्ति स्थापित हुई उसके बाद शिवलिंग की स्थापना हुई है। भगवान भोले का शिवलिंग सती के ऊपर स्थित है। इसलिए इसे शिव और शक्ति के मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
- शक्ति और शिव का संगम: वैद्यनाथ धाम का मुख्य मंदिर भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है। इसके साथ ही यह स्थान शक्तिपीठ भी है, जहां माता सती का हृदय गिरा था। इसे 'हार्दपीठ' के नाम से भी जाना जाता है।
- शक्ति की शक्ति: इस शक्तिपीठ की देवी का नाम जयदुर्गा है और शिव को यहां वैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है।
- मंदिर की संरचना: मंदिर 72 फीट लंबा सफेद सादा पुराना ढांचा है, जिसमें विभिन्न देवताओं को समर्पित छोटे-छोटे मंदिर भी शामिल हैं। मंदिर के शीर्ष पर कई सोने के बर्तन हैं, जो गिद्धौर के महाराजा द्वारा दिए गए थे।
- परिवारिक जीवन: मान्यता है कि जो दम्पति मंदिर के शीर्ष को रेशमी धागों से बांधते हैं, उनका पारिवारिक जीवन भगवान शिव और पार्वती के आशीर्वाद से सुखी होता है।
- तांत्रिक महत्व: देवघर की शक्ति साधना में भैरव की प्रधानता है और वैद्यनाथ स्वयं यहां भैरव हैं। तांत्रिक ग्रंथों में इस स्थल की चर्चा है और कई तांत्रिकों ने जयदुर्गा की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया है।
- पौराणिक कथा: पद्मपुराण के पातालखंड में देवघर के काली और महाकाल के महत्व की चर्चा की गयी है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर के साथ ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब इस स्थान पर सती का हृदय गिरा था और भगवान शिव ने यहाँ उनके हृदय का अंतिम संस्कार किया था। इसलिए इसे 'चिताभूमि' कहा जाता है।
- रोगों से मुक्ति: वैद्यनाथ शक्ति पीठ एक ऐसा शुभ स्थान है जहां व्यक्ति को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि इस स्थान पर जाने से सभी प्रकार के रोग और पापों से मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है।
- अन्य देवी रूप: यहां त्रिपुरा सुंदरी / त्रिपुरा भैरवी और छिन्नमस्ता के रूप में जगनमाता की पूजा की जाती है।
- अनुष्ठान और पूजा: मंदिर के भीतर दुर्गा और पार्वती की मूर्तियाँ एक चट्टानी मंच पर मौजूद हैं। भक्त लोग आमतौर पर इस पर चढ़ते हैं और देवी-देवताओं को फूल और दूध चढ़ाते हैं।
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