जानिए (विरजाक्षेत्र) उत्कल का शक्तिपीठ के बारे में,Jaanie (Virajaakshetr) Utkal Ka Shaktipeeth Ke Baare Mein
उत्कल का शक्तिपीठ- विरजा और विमला
महाभागवतपुराण या देवीपुराण (२।९) में ५१ शक्तिपीठोंके विषयमें लिखा है- 'पीठानि चैकपञ्चाशद भवन्मुनिपुङ्गव।' इन ५१ पीठोंमें से कामरूपको श्रेष्ठतम पीठकी मान्यता दी गयी है और उस पीठ का विशेष वर्णन भी किया गया है।
ऐसे तो भिन्न-भिन्न पुराणों और तन्त्रग्रन्थोंमें देवीपीठ, शक्तिपीठ, तन्त्रपीठ, सिद्धपीठ आदि नामोंसे पीठोंको संख्या अलग-अलग बतायी गयी है परंतु ५१ पौठों की परम्पराका प्रसार तन्त्रचूड़ामणि और ज्ञानार्णवतन्त्र-इन दोनों ग्रन्थोंद्वारा विशेषरूपसे हुआ है। तन्त्रचूड़ामणि में सती जी के भिन्न-भिन्न अङ्ग किन-किन स्थानों पर गिरे थे और इन स्थानोंमें सतीजी किस नामसे भैरवीके रूपमें और भगवान् शिव किस नामसे भैरवके रूपमें निवास करने लगे, उनका विवरण उपलब्ध है। तन्त्रचूड़ामणिके अन्तर्गत पीठनिर्णय अध्यायमें यह श्लोक प्राप्त होता है-
उत्कले नाभिदेशस्तु विरजाक्षेत्रमुच्यते।
विमला सा महादेवी जगत्रावस्तु भैरवः॥
आशय यह है कि सतीजीका नाभिदेश उत्कलमें गिरा था। समग्र उत्कल-देश ही सतीका नाभिक्षेत्र है और इसे ही विरजाक्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्रमें विमलाके नामसे महादेवी और जगन्नाथके नामसे भैरव निवास करते हैं। उत्कल (आधुनिक उड़ीसा) एक नगर या ग्रामका नाम नहीं है, यह एक देश या राज्यका नाम है। कपिलपुराण (१।८) में उल्लेख है-
वर्षाणां भारतं श्रेष्ठं देशानामुत्कलः स्मृतः।
उत्कलेन समों देशो देशो नास्ति महीतले॥
'विरजा' शब्दको 'क्षेत्र' शब्दका विशेषणके रूपमें लेनेपर 'विगतानि रजांसि यस्य तत्' इस व्युत्पत्तिके अनुसार समग्र उत्कलदेशको ही मलविमुख क्षेत्र कहा जा सकता है। इस देशकी महादेवी विमला है, जो समग्र उत्कलदेशकी आराध्या हैं। उनके भैरव जगन्नाथ या पुरुषोत्तम समग्र उत्कलदेशके परमाराध्य देव है। कालिकापुराणमें चार दिशाओंमें चार पीठोंका उल्लेख है और उनमें औडू नामक पीठको प्रथम पीठके रूपमें ग्रहण किया गया है। यह औड्पीठ ही उड़ीसा है। इस पीठके बारेमें कहा गया है-
ओड्राख्यं प्रथमं पीठं द्वितीयं जालशैलकम्।
तृतीयं पूर्णपीठं तु कामरूपं चतुर्थकम् ॥
ओडूपीठं पश्चिमे तु तथैवोड्रेश्वरी शिवाम्।
कात्यायनी जगन्नाथमोड्रेशं च प्रपूजयेत् ॥
सम्प्रति श्रीजगन्नाथपुरीमें विराजमान महाप्रभु पुरुषोत्तम जगन्नाथ ही निःसंदेह तन्त्रचूड़ामणिमें उल्लिखित जगन्नाथ हैं और श्रीजगन्नाथमन्दिरके भीतरी आँगनमें विराजमान विमला ही तन्त्रोक्त विमला हैं। उत्कलदेशके बाजपुर नगरमें विरजादेवी विराजमान हैं और यह देवी उत्कलदेशकी सर्वप्राचीन देवी हैं। इनका वर्णन ब्रह्मपुराण (४२।१) में आया है। यथा-
विरजे विरजा माता ब्रह्माणी सम्प्रतिष्ठिता।
यस्याः संदर्शनान्मर्त्यः पुनात्यासप्तमं कुलम्॥
कुब्जिकातन्त्र, ज्ञानार्णवतन्त्र तथा अष्टादशपीठनिर्णय आदि ग्रन्थोंमें भी विरजापीठका उल्लेख पाया जाता है। कपिल पुराण में इस उत्कलदेशको 'कृष्णार्क-पार्वतीहराः' कहा गया है अर्थात् भगवान् विष्णु,सूर्यदेव, पार्वतीदेवी और भगवान् शिव-ये चार देव-देवी यहाँ नित्य निवास करते हैं। पार्वतीक्षेत्रके प्रसंगमें याजपुर नगरस्थित विरजादेवीकी ही महिमाका वर्णन किया गया है। महाभारत, वनपर्व (८५।८६) में पाण्डवोंके वनवास प्रसंगमें वैतरणीतीरस्थित विरजातीर्थका उल्लेख है। वर्तमान याजपुर नगर पूर्वकालमें विरजा नामसे प्रसिद्ध था, यह पुरातात्त्विक प्रमाणोंसे स्पष्ट है। अतः याजपुरस्थित विरजादेवी उत्कलकी अधीश्वरी देवी हैं, यह सर्वमान्य है।
दूसरे पक्ष में सिद्धपीठों की संख्या १०८ बतायी गयी है, इनमें विरजापीठका नाम नहीं मिलता। उसके स्थानपर पीठका नाम पुरुषोत्तम और पीठाधीश्वरीका नाम विमला बताया गया है। उदाहरणार्थ- 'गङ्गायां मङ्गला नाम विमला पुरुषोत्तमे' (मत्स्यपुराण १३।३५) तथा 'गयायां मङ्गला प्रोक्ता विमला पुरुषोत्तमे' (देवीभागवत ७।३०।६४)। पुरीके श्रीजगन्नाथजीके मन्दिरमें अभी भी यह व्यवस्था है कि पुरुषोत्तम जगन्नाथके प्रत्येक भोगके उपरान्त वह भोग विमलादेवीको पुनः समर्पित किया जाता है और तब वह भोग महाप्रसाद बन जाता है। पुरीके अन्नभोगकी यही विशेषता है। शब्दार्थकी दृष्टिसे विरजा और विमला एक ही देवी हैं। इन दोनों देवियोंका स्थानभेद और मूर्तिभेद केवल उपासना-निमित्तक है। कृपामयी परमेश्वरी दुर्गा या कात्यायनी विरजा और विमला उभय नामोंसे यथाक्रम याजपुर और पुरीमें अवस्थान करती हुई समग्र उत्कलदेशको पावन करती हैं और जीवोंके रज या मल (पाप)-का नाश करती हैं।
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