श्रीमद्भागवत का परिचय, माहात्म्य तथा दानजनित फल,Shreemadbhaagavat Ka Parichay, Maahaatmy Tatha Daanajanit Phal
श्रीमद्भागवत का परिचय, माहात्म्य तथा दानजनित फल
ब्रह्माजी कहते हैं- मरीचे! सुनो, वेदव्यासजी ने जो वेदतुल्य श्रीमद्भागवत नामक महापुराणका सम्पादन किया है, वह अठारह हजार श्लोकोंका बतलाया गया है। यह पुराण सब पापोंका नाश करनेवाला है। यह बारह शाखाओंसे युक्त कल्पवृक्षस्वरूप है। विप्रवर! इसमें विश्वरूप भगवान्का ही प्रतिपादन किया गया है। इसके पहले स्कन्धमें सूत और शौनकादि ऋषियोंके समागमका प्रसंग उठाकर व्यासजी तथा पाण्डवोंके पवित्र चरित्रका वर्णन किया गया है। इसके बाद परीक्षित्के जन्मसे लेकर प्रायोपवेशनतककी कथा कही गयी है। यहींतक प्रथम स्कन्धका विषय है। फिर परीक्षित्-शुकसंवादमें स्थूल और सूक्ष्म दो प्रकारकी धारणाओंका निरूपण है। तदनन्तर ब्रह्म-नारद-संवादमें भगवान्के अवतारसम्बन्धी अमृतोपम चरित्रोंका वर्णन है। फिर पुराणका लक्षण कहा गया है। बुद्धिमान् व्यासजीने यह द्वितीय स्कन्धका विषय बताया है, जो सृष्टिके कारणतत्त्वोंकी उत्पत्तिका प्रतिपादक है। तत्पश्चात् विदुरका चरित्र, मैत्रेयजीके साथ विदुरका समागम, परमात्मा ब्रह्मसे सृष्टिक्रमका निरूपण और महर्षि कपिलद्वारा कहा हुआ सांख्य-यह सब विषय तृतीय स्कन्धके अन्तर्गत बताया गया है।
तदनन्तर पहले सतीचरित्र, फिर ध्रुवका चरित्र, तत्पश्चात् राजा पृथुका पवित्र उपाख्यान, फिर राजा प्राचीनबर्हिष्की कथा-यह सब विसर्गविषयक परम उत्तम चौथा स्कन्ध कहा गया है। राजा प्रियव्रत और उनके पुत्रोंका पुण्यदायक चरित्र, ब्रह्माण्डके अन्तर्गत विभिन्न लोकोंका वर्णन तथा नरकोंकी स्थिति यह संस्थानविषयक पाँचवाँ स्कन्ध है। अजामिलका चरित्र, दक्ष प्रजापतिद्वारा की हुई सृष्टिका निरूपण, वृत्रासुरकी कथा और मरुदृणोंका पुण्यदायक जन्म-यह सब व्यासजीके द्वारा छठा स्कन्ध कहा गया है। वत्स! प्रह्लादका पुण्यचरित्र और वर्णाश्रमधर्मका निरूपण यह सातवाँ स्कन्ध बताया गया है। यह 'ऊति' अथवा कर्मवासना विषयक स्कन्ध है। इसमें उसीका प्रतिपादन किया गया है। तत्पश्चात् मन्वन्तरनिरूपणके प्रसंगमें गजेन्द्रमोक्षकी कथा, समुद्रमन्थन, बलिके ऐश्वर्यकी वृद्धि और उनका बन्धन तथा मत्स्यावतारचरित्र- यह आठवाँ स्कन्ध कहा गया है। महामते। सूर्यवंशका वर्णन और चन्द्रवंशका निरूपण- यह वंशानुचरितविषयक नवाँ स्कन्ध बताया गया है।
श्रीकृष्णका बालचरित, कुमारावस्थाकी लीलाएँ, व्रजमें निवास, किशोरावस्थाकी लीलाएँ, मथुरामें निवास, युवावस्था, द्वारकामें निवास और भूभारहरण- यह निरोधविषयक दसवाँ स्कन्ध है। नारद-वसुदेव-संवाद, यदु- दत्तात्रेय-संवाद और श्रीकृष्णके साथ उद्धवका संवाद, आपसके कलहसे यादवोंका संहार-यह सब मुक्तिविषयक ग्यारहवाँ स्कन्ध है। भविष्य राजाओंका वर्णन, कलिधर्मका निर्देश, राजा परीक्षित्के मोक्षका प्रसङ्ग, वेदोंकी शाखाओंका विभाजन, मार्कण्डेयजीकी तपस्या, सूर्यदेवकी विभूतियोंका वर्णन, तत्पश्चात् भागवती विभूतिका वर्णन और अन्तमें पुराणोंकी श्लोक संख्याका प्रतिपादन- यह सब आश्रयविषयक बारहवाँ स्कन्ध है। वत्स! इस प्रकार तुम्हें श्रीमद्भागवतका परिचय दिया गया है। वह वक्ता, श्रोता, उपदेशक, अनुमोदक और सहायक-सबको भक्ति, भोग और मोक्ष देनेवाला है। जो भगवान्की भक्ति चाहता हो, वह भाद्रपदकी पूर्णिमाको सोनेके सिंहासनके साथ इस भागवतका भगवद्भक्त ब्राह्मणको प्रेमपूर्वक दान करे। उसके पहले वस्त्र और सुवर्ण आदिके द्वारा ब्राह्मणकी पूजा कर लेनी चाहिये। जो मनुष्य भागवतकी इस विषयानुक्रमणिकाका दूसरेको श्रवण कराता अथवा स्वयं सुनता है, वह समस्त पुराणके श्रवणका उत्तम फल प्राप्त कर लेता है।
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