वामन पुराण के सुनने, पढ़ने तथा दान करने का महत्त्व,Vaaman Puraan Ke Sunane, Padhane Tatha Daan Karane Ka Mahattv
वामन पुराण के सुनने, पढ़ने तथा दान करने का महत्त्व,
ब्रह्माजी कहते हैं- वत्स ! सुनो, अब मैं त्रिविक्रमचरित्रसे युक्त वामनपुराणका वर्णन करता हूँ। इसकी श्लोक-संख्या दस हजार है। इसमें कूर्म कल्पके वृत्तान्तका वर्णन है और त्रिवर्णकी कथा है। यह पुराण दो भागोंसे युक्त है और वक्ता-श्रोता दोनोंके लिये शुभकारक है। इसमें पहले पुराणके विषयमें प्रश्न है। फिर ब्रह्माजीके शिरश्छेदकी कथा, कपालमोचनका आख्यान और दक्ष-यज्ञ-विध्वंसका वर्णन है। तत्पश्चात् भगवान् हरकी कालरूप संज्ञा, मदनदहन, प्रह्लादनारायणयुद्ध, देवासुर-संग्राम, सुकेशी और सूर्यकी कथा, काम्यव्रतका वर्णन, श्रीदुर्गाचरित्र, तपतीचरित्र, कुरुक्षेत्रवर्णन, अनुपम सत्या-माहात्म्य, पार्वती जन्मकी कथा, तपतीका विवाह, गौरी-उपाख्यान कौशिकी-उपाख्यान, कुमारचरित, अन्धकवधकी कथा, साध्योपाख्यान, जाबालिचरित, अरजाकी अद्भुत कथा, अन्धकासुर और भगवान् शङ्करका युद्ध, अन्धकको गणत्वकी प्राप्ति, मरुद्रणोंके जन्मकी कथा, राजा बलिका चरित्र, लक्ष्मी चरित्र, त्रिविक्रम- चरित्र, प्रह्लादकी तीर्थयात्रा और उसमें अनेक मङ्गलमयी कथाएँ, धुन्धु-चरित, प्रेतोपाख्यान, नक्षत्र पुरुषकी कथा, श्रीदामाका चरित्र, त्रिविक्रमचरित्रके अन्तमें ब्रह्माजीके द्वारा कहा हुआ उत्तम स्तोत्र तथा प्रह्लाद और बलिके संवादमें सुतललोकमें श्रीहरिकी प्रशंसाका उल्लेख है। ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें इस पुराणका पूर्वभाग बताया है। अब इस वामनपुराणके उत्तरभागका श्रवण करो। उत्तरभागमें चार संहिताएँ हैं।
वे पृथक् पृथक् एक-एक सहस्र श्लोकोंसे युक्त हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- माहेश्वरी, भागवती, सौरी और गाणेश्वरी। माहेश्वरी संहितामें श्रीकृष्ण तथा उनके भक्तोंका वर्णन है। भागवती संहितामें जगदम्बाके अवतारकी अद्भुत कथा दी गयी है। 'सौरीसंहिता 'में भगवान् सूर्यकी पाप-नाशक महिमाका वर्णन है। 'गाणेश्वरीसंहिता 'में भगवान् शिव तथा गणेशजीके चरित्रका वर्णन किया गया है। यह वामन नामका अत्यन्त विचित्र पुराण महर्षि पुलस्त्यने महात्मा नारदजीसे कहा है। फिर नारदजीसे महात्मा व्यासको प्राप्त हुआ है और व्यासजीसे उनके शिष्य रोमहर्षणको मिला है। रोमहर्षणजी नैमिषारण्यनिवासी शौनकादि ब्रह्मर्षियोंसे यह पुराण कहेंगे। इस प्रकार यह मङ्गलमय वामनपुराण परम्परासे प्राप्त हुआ है। जो इसका पाठ और श्रवण करते हैं, वे भी परम गतिको प्राप्त होते हैं। जो इस पुराणको लिखकर शरत्कालके विषुव योगमें वेदवेत्ता ब्राह्मणको घृतधेनुके साथ इसका दान करता है, वह अपने पितरोंको नरकसे निकालकर स्वर्गमें पहुँचा देता है और स्वयं भी अनेक प्रकारके भोगोंका उपभोग करके देह त्यागके पश्चात् वह भगवान् विष्णुके परम पदको प्राप्त कर लेता है।
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