फरकिया क्षेत्र स्थित मां कात्यायनी के दरबार की महिमा एवं इतिहास,Farkiya Kshetr Sthit Maa Katyayani Ke Darabaar Kee Mahima Evan Itihaas

फरकिया क्षेत्र स्थित मां कात्यायनी के दरबार की महिमा एवं इतिहास

देवी पुराण में दुर्गा के जिन नौ रूपों का वर्णन है. उनमें कात्यायनी दुर्गा का छठा रूप है. ऐसा प्रतीत होता है की बिहार के आस्था पर्व छठ में जिस छठी मईया की आराधना की जाती है. उसी तरह दुर्गा की छठी कात्यायनी हीं है।

माँ कात्यायनी शक्तिपीठ

कात्यायनी मंदिर दिल्ली गुड़गांव छतरपुर में स्थित यह दिल्ली का ही नहीं बल्कि पूरे भारत का एक प्रमुख मंदिर माना जाता है। बिहार के खगड़िया जिले में मां का प्राचीन और सिद्ध पीठ स्थल है। यहीं ऋषि कात्यायन की तपस्थली भी रही है। नदियों के बीच सुदूर फरकिया इलाके में बसे मां कात्यायनी के दरबार की महिमा अपार है।

मां कात्यायनी के दरबार की महिमा और इतिहास

यह मिथक सुविख्यात है. कि दक्ष-यज्ञ में शंकर के अपमान से मर्माहत सती ने आत्मदाह कर लिया था शोकाकुल महादेव विक्षुप्त हो गये. सती के शव को कंधो पर लिए उन्होने रूद्ररूप में तांडव शुरु कर दिया था. सृष्टी को अवश्यम्भावी विनाश से बचाने के लिए तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती का अंग भंग किया था. सती की दिव्य देह के विविध अंग अलग-अलग क्षेत्रों में जा गिरे थे. जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ बन गये. भारत में ऐसे शक्ति पीठों की कुल संख्या 52 मानी गयी है  शक्ति पीठ लोक वन्दित उर्जा के केंद्र है. सदा नीरा कोशी के पुण्य तट पर अवस्थित पुण्य भूमि पर सती का दाहिना हाथ गिरा। यह हाथ अपने साथ अपार उर्जा और वरदान लेकर गिरा।

कात्यायनी शक्ति पीठ अनेक कारणों से सभी शक्तिपीठों में अद्वितीय है. भगवती कात्यायनी चौथम राज की कुल देवी है. लोकास्था, लोकगीत (अहिरायन) में विद्यमान इस सत्य का उल्लेख करना जरुरी है कि चौथम के राजा मंगल सिंह (मुरार साह) की मित्र श्रीपत महाराज के पास शताब्दिक गायें थी. जिनमें से एक गाय एक खास स्थान पर खड़ी होकर प्रतिदिन अपने थन से दुध गिराती थी. जब इस चमत्कार की जानकारी राजा मंगल सिंह को मिली तब उनके आदेश से उस स्थान की खुदाई की गई. जिसमें कात्यायनी माता का पिंड (दाहिना हाथ) मिला. राजा ने 1595 ई० के आस-पास वहाँ उस पिण्ड की खोज कर मंदिर का निर्माण कराया. (भिट का मंदिर) इस ऐतिहासिक सत्य का उल्लेख ब्रिटिश सरकार मुंगेर जिला गजिएटियर 1926 में है. इसी वंश में तत्कालीन राजा सुरेन्द्र नारायण सिंह के द्वारा मंदिर के आस-पास की जमीन उन्होनें दान में दिया. वे चौथम राज के अंतिम शासक थे।

कात्यायनी शक्ति पीठ में सती का दाहिना हाथ पूजित होता है और वे स्व्यंभ् हैं. कात्यायनी मंदिर धमहरा घाट रेलवे स्टेशन से दक्षिण की ओर पाश्वर में अवस्थित है. माँ कात्यायनी फरकिया क्षेत्र की पूजनीय देवी है. इस मंदिर में न केवल खगड़िया जिला के बल्कि अगल- अगल के सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, पूर्णियां, समस्तीपुर, दरभंगा इत्यादि जिलो से भक्त लाखों की संख्या में पूजा करने आते है. पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी तायदाद में यहाँ भक्त आते हैं. यह मंदिर बिहार धार्मिक न्यास परिषद् से पंजीकृत है. वर्त्तमान में इसका माँ कात्यायनी न्यास समिति द्वारा संचालित किया जाता है. पिछले वर्ष लगभग 50 लाख रूपये का सलाना राजस्व प्राप्ति हुई. न्यास समिति के द्वारा इस मंदिर के विकास की दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा है।

माँ कात्यायनी के प्राप्ति जन-जन में असीम आस्था है. कहा जाता है की कात्यायनी ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेकर वे कात्यायनी कहलायी. और पुण्य शलीला कोशी के तट पर उन्होनें बाल लीला की इसी स्थान पर जन-जन को हर्षाता, किसानों ओर पशुपालको को कृपा का अमृत पिलाता, जन मानस को हुलसाता जिलाता हुआ कात्यायनी का महिमा मंदिर स्थित है. देवी पुराण में दुर्गा के जिन नौ रूपों का वर्णन है. उनमें कात्यायनी दुर्गा का छठा रूप है. ऐसा प्रतीत होता है की बिहार के आस्था पर्व छठ में जिस छठी मईया की आराधना की जाती है. उसी तरह दुर्गा की छठी कात्यायनी हीं है. ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक, संस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, शास्त्रीय और आध्यात्मिक सन्दर्भो में कात्यायनी शक्ति पीठ की महिमा विशिष्ट है. हमने यह निवेदित किया है की भारत के शक्ति पीठ में कात्यायनी शक्ति पीठ है अपने इस निवेदन के संतुष्टि के लिये हम निम्नांकित बाते समर्पित करना चाहेंगे. कात्यायनी मंदिर भारत का एक ऐसे शक्ति पीठ है जहाँ गर्भ गृह में तने के चंदोवे के ऊपर पक्षी आनन्द विहवल होकर चहचहाते रहते है. मानो वे भगवती की महिमा का जयगान कर रहे हैं. उनकी सुरीली परिवेग चहक से मन्दिर के परिवेश में आस्था की महक और उर्जा की लहक बनी रहती है. इस शक्ति पीठ में भगवती सती का दाहिना हाथ गिरा था. हाथ का महत्व मनुष्य के लिये ब्रह्म सर्वाधिक है. इस सन्दर्भ में हम एक प्रसंग प्रस्तुत करना चाहेंगे. कहा जाता है मनुष्य को बनाकर जब ब्रह्मा ने पृथ्वी लोक पर भेजने लगे. तब मनुष्य कातर होकर रोने लगा "हे प्रभु हम पृथ्वी पर कैसे रहेगें, कैसे जियेंगे, वहाँ पर कुछ भी नहीं हैं"

तब ब्रह्मा ने मनुष्य को छूते हुए कहा की ये हाथ तुम्हारे लिए कल्प वृक्ष है, कामधेनु है, चिंतामणि है इनकी सहायता से तुम सब कुछ प्राप्त करोगे साक्षी है इतिहास. प्रागैताहिसक काल से लेकर अब तक मनुष्य का जीवन रथ जिस प्रगतिपथ रहा है. वह मनुष्य के हाथो से ही तैयार हुआ है कात्यायनी शक्ति पीठ कर्म पीठ है. इसी के वरदान से बाढ़ की विभीषिका राज्य की उदासीनता अनेक दुविधा से पीड़ित रहने के बाबजूद इस क्षेत्र की जिजीविषा जागृत रही है. यहाँ के निवासी महाप्राण है. वे आशावादी और जयवादी है इस शक्ति पीठ से सकारात्मक उर्जा का उत्सर्जन होती है. यह सुखद आश्चर्य है. आजतक इस क्षेत्र में किसी किसान ने अवसादी होकर आत्म हत्या नहीं की. और ज्योति अखंड रही उन्होंने अपने अथक पुरुषार्थ से हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, क्रांति, और नील क्रांति के सपने को साकार किया कात्यायनी शक्ति पीठ इस लिहाज से अनुपम है की यहाँ पण्डों पुरोहितों का वर्चस्व नहीं है. शास्त्रीय कर्मकांडों का दबदबा नहीं है. यहाँ भगवती से भक्तो की सीधी मुलाकात एवं बातचीत होती है. भक्त अपनी भाषा में माँ से संवाद करते है. मंदिर के समक्ष पीपल के वृक्षों के नीचे बैठकर जब भक्तों की टोली भाव-विभोर होकर अहिरायण गाती. तब मन्दिर का पूरा पर्यावरण भक्ति के रस में डूब जाता है. परिवेश पावन हो जाता है।

माँ कात्यायनी शक्ति पीठ बिल्कुल नैसर्गिक,आस-पास कोई बस्ती नहीं होने के कारण यहाँ शान्ति व्याप्त रहती है. मंदिर के प्रांगन में हरीतिमा है कुछ हीं दूरी पर कोशी की कलकल धारा बहती रहती है. आस-पास की श्यामला भूमि शक्ति पीठ को बहुत मन भावन बना देती है कोशी के तट पर अनेक मंदिर है. जिनमें कात्यायनी शक्ति पीठ एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ की न्यास समिति ने भक्तो को आकर्षित कर और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कोशी महाआरती के आयोजन का अनुष्ठान शुरू किया. राजा मंगल सिंह (मुरार साह) के ही समय में बादशाह अकबर के वजीर-ए- खजाना राजा टोडरमल ने वर्ष के अधिकांश महीनों में जल मग्न रहने के कारण एवं दलदली मिट्टी क्षेत्र की वजह से इस इलाके को इसलिए फर्क कर दिया था, कि वे यहाँ भूमि की पैमाईस नहीं कर पाये. और इस इलाके फरकिया के नाम से जाना जाने लगा. ब्रटिश काल में भी इस इलाके पर ध्यान नहीं दिया गया आजादी के बाद के वर्ष में भी विकास क्षेत्र में यह इलाका सम्यक न्याय नहीं पा सका।
 
कात्यायनी शक्ति पीठ बहुत जागृत है, माँ कात्यायनी वर दायिनी है. अपार ममता है उनमें, सोमवार और शुक्रवार के दिन यहाँ वैरागन की विशिष्ट पूजा होती है. जिसमें पशु पालक नवजात गायों, भैसों का दुध भगवती को चढ़ाकर श्रद्धा के साथ लोगों को भोजन कराते है. यह अकेला ऐसा शक्ति पीठ है जहाँ भगवती को पान कराने की परम्परा है, पान कराने के लिए भक्त भगवती के हाथ में पान, कसैली, और फूल रखकर हाथ जोड़े अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए कात्यायनी माता से प्रार्थना करते है, अगर माँ के हाथ से फूल गिर जाते है, तो भक्त की मनोकामना अवश्य पूरी होती है. कात्यायनी शक्ति पीठ में पर्यटन की अपार संभावना है चूँकि यह कर्म पीठ है, इसलिए यहाँ पर्यटकों को कर्म संस्कृत की दीक्षा मिलती है. बिहार के विकास में महती भूमिका अदा करेगा. माता कात्यायनी के वरदान से बिहार के विकास को पंख लग जायेंगे. बिहार बढेगा, चढ़ेगा, फुलेगा, पसरेगा, हँसेगा, हुलसेगा साथ हीं चिर उपेक्षित फरकिया क्षेत्र जहाँ अनाज, मछली, दूध और फल की रिकार्ड पैदावार होती है तथा जहाँ कृषि मछली फल इत्यादि पर आधारित लघु उद्योग की संजाल से बिहार को हरियाणा पंजाब की तरह समृद्ध किया जा सकता है ।

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