Papamochani Ekadasi: प्राचीन पापमोचनी एकादशी व्रत कथा,Praacheen Papmochani Ekadashi Fast Story

Papamochani Ekadasi: प्राचीन पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है। यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा और आराधना के द्वारा सम्पन्न किया जाता है और इसे सभी प्रकार की समृद्धि, सुख, और अंततः मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशी तिथियों में पापमोचनी एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। इस एकादशी का नाम ही स्पष्ट रूप से बताता है कि यह पापों को नष्ट करने वाली तिथि है। पापमोचनी एकादशी पर व्रत करने और कथा सुनने मात्र से ही मनुष्य को जन्म-जन्मांतर के पापों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।

पापमोचनी एकादशी कथा

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक एक अति सुन्दर वन था। इस वन में देवराज इंद गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक ऋषि तपस्या करते थे। ऋषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी । एक समय की बात है कामदेव ने बदले ओर द्वेष की भावना के तहत ऋषि मेधावी की तपस्या को भंग करना चाहा। इसी उदेश्य की पूर्ति के लिए कामदेव ने मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ऋषि का ध्यान भंग किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य-गान से ऋषि उस पर मोहित हो गए। फलस्वरूप ऋषि मंजुघोषा के साथ रमण करने लगे और उन्हे दिन और रात का कुछ विचार नहीं रहा ।
दोनों ने कई साल साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजूघोषा ने जाने की आज्ञा माँगी तो ऋषि ने उसे रोकना चाहा। तब मंजूघोषा ने ऋषि को समय का अहसास दिलाया। उन्होने समय की गणना की तो उन्हे अहसास हुआ कि पूरे ५७ वर्ष  बीत चुके थे । तब ऋषि को वह अप्सरा काल के समान प्रतीत होने लगी । उन्होने अपने को रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण मंजूघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का श्राप दिया। श्राप सुनकर मंजूघोषा भयभीत हो गई और ऋषि के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगी। काँपते हुए उसने ऋषि से श्राप के निवारण का उपाय पूछा ।
बहुत अनुनय-विनय करने पर ऋषि का दिल पसीज गया। उन्होने कहा- " यदि तुम चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और श्राप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुनः अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी ।" मंजूघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेघावी ऋषि अपने पिता महर्षि च्यवन के आश्रम चल पड़े ।  श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा "पुत्र यह तुमने क्या अनर्थं कर दिया । श्राप देकर अपना सारस पुण्य श्रीण कर दिया । अतः तुम भी पापमोचनी एकादशी का करो । इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजूघोषा ने शाप से तथा ऋषि मैधावी ने पाप से मुक्ति पाई । पापमोचनी एकादशी के व्रत को करने से सब पाप नष्ट हो जाते है। इस कथा को पढने तथा सुनने से एक हजार गौदान का फल मिलता है

पापमोचनी एकादशी पर किस मंत्र का जाप करना है?

आप बस इस मंत्र का जाप कर सकते हैं: ' ओम नमो भगवते वासुदेवाय '। यह शक्तिशाली मंत्र ऋषि नारद ने ध्रुव महाराज को दिया था, जैसा कि भागवत पुराण (4.8.54) में वर्णित है। आप तुलसी की माला पर उपरोक्त मंत्र या हरे कृष्ण मंत्र का जाप कर सकते हैं।

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