स्कंद षष्ठी व्रत एवं महात्म्य और व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा,Skanda Shashthi fast and greatness and a mythological story related to the fast

स्कंद षष्ठी व्रत एवं महात्म्य और व्रत से जुड़ी  एक पौराणिक कथा

स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है, की प्रसन्नता और भक्ति को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत स्कंद पुराण में वर्णित है, जिसमें इसके महात्म्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। अन्य पुराणों, जैसे शिव और अन्य ग्रंथों में भी स्कंद व्रत का उल्लेख मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति के पापों का शमन होता है, सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है, और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति माने जाते हैं और उनकी भक्ति से जीवन में आने वाले कठिनाइयों का नाश होता है।
इस व्रत को कई स्थानों पर अलग-अलग समय पर किया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष, आषाढ़ शुक्ल पक्ष, और कार्तिक कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथियों को इस व्रत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। दक्षिण भारत में यह व्रत विशेष रूप से लोकप्रिय है, और इसे भगवान कार्तिकेय की भक्ति से जुड़ा एक प्रमुख त्योहार माना जाता है। व्रत करने वाले लोग एक दिन पहले से संयम का पालन करते हैं और पूजा के दिन भगवान से संतान सुख, सुख-समृद्धि और जीवन के कष्टों के निवारण की प्रार्थना करते हैं।

स्कंद षष्ठी पूजा विधान

स्कंद षष्ठी व्रत के एक दिन पहले व्रती को संयमित जीवन का पालन करना आवश्यक होता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए। व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शुद्ध स्नान आदि करने के बाद भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। पूजा के लिए नए वस्त्र, पुष्प, दीपक, काजू-बादाम, नारियल की मिठाई और नीले रंग के पुष्प विशेष रूप से चढ़ाए जाते हैं। व्रती शुद्ध आसन पर बैठकर भगवान कार्तिकेय का ध्यान करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।

स्कंद षष्ठी की कथा

स्कंद षष्ठी व्रत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, च्यवन ऋषि की आंखों की रोशनी अचानक चली गई थी, और उन्होंने बहुत उपचार किया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। तब उन्हें किसी ने स्कंद षष्ठी व्रत करने का सुझाव दिया, और व्रत के बाद उनकी आंखों की रोशनी वापस आ गई। इसी प्रकार, एक अन्य कथा में भगवान कार्तिकेय की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु को पुनः जीवनदान मिला था। इस कथा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है।
भगवान कार्तिकेय का जन्म शिव के तेज से हुआ था, और उन्हें 6 कृतिकाओं ने पाला था। जब तारकासुर राक्षस ने धरती पर उत्पात मचाया, तब भगवान कार्तिकेय ने उसका अंत कर देवताओं को सुरक्षा प्रदान की और उन्हें देवसेनापति नियुक्त किया गया। भगवान कार्तिकेय की पूजा से व्यक्ति को ज्ञान, सद्बुद्धि और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है, और यह व्रत घर की सुख-शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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