स्कंद षष्ठी महत्व,व्रत विधि की जानकारी
स्कंद षष्ठी का व्रत भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है और यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय, जिन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन के नाम से जाना जाता है,स्कंद षष्ठी की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
स्कंद षष्ठी का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करने से सौभाग्य, सफलता और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था, और इसलिए इस व्रत का पालन संतान सुख प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। स्कंदपुराण में भी इस व्रत का विशेष उल्लेख है, जिसमें संतान की पीड़ाओं को दूर करने का विधान बताया गया है।
स्कंद षष्ठी पूजा नियम
- साधक सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
- पंचामृत से स्नान करवाएं।
- चंदन व हल्दी का तिलक लगाएं।
- फूलों की माला अर्पित करें।
- अपने घर का मंदिर साफ करें।
- भगवान मुरुगन यानी कार्तिकेय जी के व्रत का संकल्प लें।
- उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं।
- एक वेदी पर भगवान स्कंद की प्रतिमा स्थापित करें।
व्रत विधि
व्रत के एक दिन पूर्व उपवास रखा जाता है और षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। पूजा में वस्त्र, इत्र, फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। इस दिन गरीबों को दान देने का विशेष महत्व है। साथ ही, गंगाजल से घर का शुद्धिकरण और सूर्य देव को अर्घ्य देने का भी विधान है। पूजा के अंत में ‘ॐ स्कन्द शिवाय नमः’ मंत्र का तीन बार जाप करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
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