अग्नि पुराण एक सौ अठासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 188 Chapter !
एक सौ अठासीवाँ अध्याय - द्वादशीव्रतानि
अग्निरुवाच
द्वादशीव्रतकं वक्ष्ये भुक्तिमुक्तिप्रदायकं ।
एकभक्तेन भक्तेन तथैवायाचितेन च ॥१
उपवासेन भैक्ष्येण चैवं द्वादशिकव्रती ।
चैत्रे मासि सिते पक्षे द्वादश्यां मदनं हरिं ॥२
पूजयेद्भुक्तिमुक्त्यर्थी मदनद्वादशईव्रती ।
माघशुक्ले तु द्वादश्यां भीमद्वादशिकव्रती ॥३
नमो नारायणायेति यजेद्विष्णुं स सर्वभाक् ।
फाल्गुने च सिते पक्षे गोविन्दद्वादशीव्रती ॥४
विशोकद्वादशीकारी यजेदाश्वयुजे हरिं ।
लवणं मार्गशीर्षे तु कृष्णमभ्यर्च्य यो नरः ॥५
ददाति शुक्लद्वादश्यां स सर्वरसदायकः ।
गोवत्सं पूजयेद्भाद्रे गोवत्सद्वादशीव्रती ॥६
माध्यान्तु समतीतायां श्रवणेन तु संयुता ।
द्वादशी या भवेत्कृष्णा प्रोक्ता सा तिलद्वादशी ॥७
तिलैः स्नानन्तिलैर्होमो नैवेद्यन्तिलमोदकं ।
दीपश्च तिलतैलेन तथा देयं तिलोदकं ॥८
तिलाश्च देया विप्रेभ्यः फलं होमोपवासतः ।
ओं नमो भगवतेऽथो वासुदेवाय वै यजेत् ॥९
सुकलः स्वर्गमाप्नोति षट्तिलद्वादशीव्रती ।
मनोरथद्वादशीकृत्फाल्गुने तु सितेऽर्चयेत् ॥१०
नामद्वादशीव्रतकृत्केशवाद्यैश्च नामभिः ।
वर्षं यजेद्धरिं स्वर्गी न भवेन्नारकी नरः ॥११
फाल्गुनस्य सितेऽभ्यर्च्य सुमतिद्वादशीव्रती ।
मासि भाद्रपदे शुक्ते अनन्तद्वादशीव्रती ॥१२
अश्लेषर्क्षे तु मूले वा माघे कृष्णाय वै नमः ।
यजेत्तिलांश्च जुहुयात्तिलद्वादशीकृन्नरः ॥१३
सुगतिद्वादशीकारी फाल्गुने तु सिते यजेत् ।
जय कृष्ण नमस्तुभ्यं वर्षं स्याद्भुक्तिमुक्तिगः ॥१४
पौषशुक्ले तु द्वादश्यां सम्प्राप्तिद्वादशीव्रती ।
इत्याग्नेये महापुराणे नानाद्वादशीव्रतानि नामाष्टाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - एक सौ अठासीवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana 188 Chapter!-In Hindi
एक सौ अठासीवाँ अध्याय द्वादशी तिथिके व्रत
अग्निदेव कहते हैं मुनिश्रेष्ठ! अब भोग एवं मोक्षप्रद द्वादशी सम्बन्धी व्रत कहता हूँ। द्वादशी तिथिको मनुष्य रात्रिको एक समय भोजन करे और किसीसे कुछ नहीं माँगे उपवास करके भी भिक्षा ग्रहण करनेवाले मनुष्यका द्वादशीव्रत सफल नहीं हो सकता। चैत्र मासके शुक्लपक्षकी द्वादशी तिथिको 'मदनद्वादशी' व्रत करनेवाला भोग और मोक्षकी इच्छासे कामदेव-रूपी श्रीहरिका अर्चन करे। माघके शुक्लपक्षकी द्वादशीको 'भीमद्वादशी 'का व्रत करना चाहिये और 'नमो नारायणाय।' मन्त्रसे श्रीविष्णुका पूजन करना चाहिये। ऐसा करनेवाला मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। फाल्गुनके शुक्लपक्षमें 'गोविन्दद्वादशी का व्रत होता है।
आश्विन में 'विशोकद्वादशी 'का व्रत करनेवाले को श्री हरि का पूजन करना चाहिये। मार्गशीर्षके शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रीकृष्णका पूजन करके जो मनुष्य लवणका दान करता है, वह सम्पूर्ण रसोंके दानका फल प्राप्त करता है। भाद्रपदमें 'गोवत्सद्वादशी'का व्रत करनेवाला गोवत्सका पूजन करे। माघ मासके व्यतीत हो जानेपर फाल्गुनके कृष्णपक्षकी द्वादशी, जो श्रवणनक्षत्रसे संयुक्त हो, उसे 'तिलद्वादशी' कहा गया है। इस दिन तिलोंसे ही स्नान और होम करना चाहिये तथा तिलके लड्डुओंका भोग लगाना चाहिये। मन्दिरमें तिलके तेलसे युक्त दीपक समर्पित करना चाहिये तथा पितरोंको तिलाञ्जलि देनी चाहिये। ब्राह्मणोंको तिलदान करे। होम और । उपवाससे ही 'तिलद्वादशी' का फल प्राप्त होता है। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।' मन्त्रसे श्रीविष्णुकी पूजा करनी चाहिये। उपर्युक्त विधिसे छः बार 'तिलद्वादशी'का व्रत करनेवाला कुलसहित स्वर्गको प्राप्त करता है।
फाल्गुनके शुक्लपक्षमें 'मनोरथद्वादशी' का व्रत करनेवाला श्रीहरिका पूजन करे। इसी दिन 'नामद्वादशी'का व्रत करनेवाला 'केशव' आदि नामोंसे श्रीहरिका एक वर्षतक पूजन करे। वह मनुष्य मृत्युके पश्चात् स्वर्गमें ही जाता है। वह कभी नरकगामी नहीं हो सकता। फाल्गुनके शुक्लपक्ष में 'सुमतिद्वादशी' का व्रत करके विष्णुका पूजन करे। भाद्रपद मासके शुक्लपक्षमें 'अनन्तद्वादशी'का व्रत करे। माघके शुक्लपक्षमें आश्लेषा अथवा मूलनक्षत्रसे युक्त 'तिलद्वादशी' करनेवाला मनुष्य 'कृष्णाय नमः ।' मन्त्रसे श्रीकृष्णका पूजन करे और तिलोंका होम करे। फाल्गुनके शुक्लपक्षमें 'सुगतिद्वादशी' का व्रत करनेवाला 'जय कृष्ण नमस्तुभ्यम्' मन्त्रसे एक वर्षतक श्रीकृष्णकी पूजा करे। ऐसा करनेसे मनुष्य भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त कर लेता है। पौषके शुक्लपक्षकी द्वादशीको 'सम्प्राप्ति- द्वादशी' का व्रत करे ॥ १-१४ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'द्वादशीके व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ अठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८८ ॥
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