अग्नि पुराण दो सौ चौरासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 284 Chapter !
अग्नि पुराण 284 अध्याय - मन्त्र रूपौषध कथ नम्
धन्वन्तरिरुवाच
आयुरारोग्यकर्तार ओंकारद्याश्च नाकदाः ।
ओंकारः परमो मन्त्रस्तं जप्त्वा चामरो भवेत् ।। १ ।।
गायत्री परमो मन्त्रस्तं जप्त्वा भुक्तिमुक्तिभाक् ।
ओं नमो नारायणाय मन्त्रः सर्वार्थसाधकः ।। २ ।।
ओं नमो भगवते वासुदेवाय सर्वदः ।
ओं ह्रूँ नमो विष्णवे मन्त्रोयञ्चौषधं परं ।। ३ ।।
अनेन देवा ह्यसुराः सश्रियो निरुजोऽभवन् ।
भूतानामुपकारश्च तथा धर्मो महौषधम् ।। ४ ।।
धर्म्मः सद्धर्म्मकृद्धर्मी एतैर्धर्म्मैश्च निर्म्मलः ।
श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीधरः श्रीनिकेतनः ।। ५ ।।
श्रियः पतिः श्रीपरम् एतैः श्रियमवाप्नुयात् ।
कामी कामप्रदः कामः कामपालस्तथा हरिः ।। ६ ।।
आनन्दो माधवश्चैव नाम कामाय वै हरेः ।
रामः परशुरामश्च नृसिंहो विष्णुरेव च ।। ७ ।।
त्रिविक्रमश्च नामानि जप्तव्यानि जिगीषुभिः ।
विद्यामभ्यस्यतां नित्यं जप्तव्यः पुरुषोत्तमः ।। ८ ।।
दामोदरो बन्धहरः पुष्कराक्षोऽक्षिरोगनुत् ।
हृषीकेशो भयहरो जपेदौषधकर्म्मणि ।। ९ ।।
अच्युतञ्चामृतं मन्त्रं सङ्ग्रामे चापराजितः ।
जलतारे नारसिंहं पूर्व्वादौ क्षेमकामवान् ।। १० ।।
चक्रिणङ्गदिनञ्चैव शार्ङ्गिणं खड्गिनं स्मरेत् ।
नारायणं सर्वकाले नृसिंहोऽखिलभीतिनुत् ।। ११ ।।
गरुडध्वजश्च विषहृत् वासुदेवं सदा जपेत् ।
धान्यादिस्थापने स्वप्ने अनन्ताच्युतमीरयेत् ।। १२ ।।
नारायणञ्च दुःस्वप्ने दाहादौ जलशायिनं ।
हयग्रीवञ्च विद्यार्थी जगत्सृतिं सुताप्तये ।। १३ ।।
बलभद्रं शौर्यकार्य्ये एकं नामार्थसाधकम् ।। १४ ।।
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये मन्त्ररूपौषधकथनं नाम चतुरशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
अग्नि पुराण - दो सौ चौरासीवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 284 Chapter In Hindi
दो सौ चौरासीवाँ अध्याय मन्त्ररूप औषधोंका कथन
धन्वन्तरिजी कहते हैं- सुश्रुत । 'ओंकार' आदि मन्त्र आयु देनेवाले तथा सब रोगोंको दूर करके आरोग्य प्रदान करने वाले हैं। इतना ही नहीं, देह छूटनेके पश्चात् वे स्वर्गकी भी प्राप्ति करानेवाले हैं। 'ओंकार' सबसे उत्कृष्ट मन्त्र है। उसका जप करके मनुष्य अमर हो जाता है- आत्माके अमरत्वका बोध प्राप्त करता है, अथवा देवतारूप हो जाता है। गायत्री भी उत्कृष्ट मन्त्र है। उसका जप करके मनुष्य भोग और मोक्षका भागी होता है। 'ॐ नमो नारायणाय।' यह अष्टाक्षर-मन्त्र समस्त मनोरथोंको पूर्ण करनेवाला है। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।'- यह द्वादशाक्षर मन्त्र सब कुछ देनेवाला है। 'ॐ हूं विष्णवे नमः ।'- यह मन्त्र उत्तम औषध है। इस मन्त्रका जप करनेसे देवता और असुर श्रीसम्पन्न तथा नीरोग हो गये। जगत्के समस्त प्राणियोंका उपकार तथा धर्माचरण- यह महान् औषध है। 'धर्मः, सद्धर्मकृत्, धर्मी' इन धर्म-सम्बन्धी नामोंक जपसे मनुष्य निर्मल (शुद्ध) हो जाता है। श्रीदः, श्रीशः, श्रीनिवासः, श्रीधरः, श्रीनिकेतनः, श्रियः पतिः तथा श्रीपरमः' इन श्रीपति सम्बन्धी नामात्मक मन्त्रपदंकि जपसे मनुष्य लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) को पा लेता है॥१-५॥
'कामी, कामप्रदः, कामः, कामपालः, हरिः, आनन्दः, माधवः' श्रीहरिके इन नाम-मन्त्रोंक जप और कीर्तनसे समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाती है। 'रामः, परशुरामः, नृसिंहः, विष्णुः, त्रिविक्रमः'- ये श्रीहरिके नाम युद्धमें विजयकी इच्छा रखने वाले योद्धाओंको जपने चाहिये। नित्य विद्याभ्यास करनेवाले छात्रोंको सदा 'श्रीपुरुषोत्तम' नामका जप करना चाहिये। 'दामोदरः' नाम बन्धन दूर करनेवाला है। 'पुष्कराक्षः'- यह नाम-मन्त्र नेत्र रोगोंका निवारण करनेवाला है। 'हृषीकेशः' इस नामका स्मरण भयहारी है। औषध देते और लेते समय इन सब नामोंका जप करना चाहिये ॥ ६-९॥
औषधकर्ममें 'अच्युत'- इस अमृत-मन्त्रका भी जप करे। संग्राममें 'अपराजित' का तथा जलसे पार होते समय 'श्रीनृसिंह' का स्मरण करे। जो पूर्वादि दिशाओंकी यात्रामें क्षेत्रकी कामना रखनेवाला हो, वह क्रमशः 'चक्री', 'गदी', 'शाङ्गी' और 'खड्गी' का चिन्तन करे। व्यवहारोंमें (मुकदमोंमें) भक्ति भावसे 'सर्वेश्वर अजित' का स्मरण करे। 'नारायण'का स्मरण हर समय करना चाहिये। भगवान् 'नृसिंह' को याद किया जाय तो वे सम्पूर्ण भीतियोंको भगानेवाले हैं। 'गरुडध्वजः' यह नाम विषका हरण करनेवाला है। 'वासुदेव' नामका तो सदा ही जप करना चाहिये। धान्य आदिको घरमें रखते समय तथा शयन करते समय भी 'अनन्त' और 'अच्युत' का उच्चारण करे। दुःस्वप्न दीखनेपर 'नारायण'का तथा दाह आदिके अवसरपर 'जलशायी' का स्मरण करे। विद्यार्थी 'हयग्रीव' का चिन्तन करे। पुत्रकी प्राप्तिके लिये 'जगत्सूति (जगत् स्रष्टा)' का तथा शौर्यकी कामना हो तो 'श्रीबलभद्र'का स्मरण करे। इनमेंसे प्रत्येक नाम अभीष्ट मनोरथको सिद्ध करनेवाला है॥ १०-१४॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'मन्त्ररूप औषधका कथन' नामक दो सौ चौरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २८४
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