अमोघ शिव कवच (पीडीएफ) | Amogh Shiv Kavach (PDF)

अमोघ शिव कवच PDF

विषय सूचि

  • अमोघ शिव कवच: एक शक्तिशाली कवच पाठ
  • अमोघ शिव कवच का महत्व
  • अमोघ शिव कवच का विनियोग और प्रक्रिया
  • अमोघ शिव कवच का प्रभाव
  • अमोघ शिव कवच पाठ की विधि
  • अमोघ शिव कवच पाठ के नियम
  • अमोघ शिव कवच ! amogh shiv kavach !
  • निष्कर्ष: अमोघ शिव कवच

अमोघ शिव कवच: एक शक्तिशाली कवच पाठ

अमोघ शिव कवच एक दिव्य स्तोत्र है जो भगवान शिव के संरक्षण को प्रकट करता है। इसे सहस्त्रारक्ष कवच भी कहा जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस कवच का नियमित पाठ भक्तों को बुरी शक्तियों, तंत्र-मंत्र, काला जादू, भूत-प्रेत, अकाल मृत्यु और बीमारियों से रक्षा प्रदान करता है। भक्त इसे परम गोपनीय, आदरणीय, और सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला मानते हैं। मान्यता है कि इसका प्रभाव क्षीण जीवन और बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी शक्ति प्रदान कर, दीर्घायु बनाता है।

अमोघ शिव कवच का महत्व

इस स्तोत्र में शिव के विभिन्न रूपों और गुणों की स्तुति की गई है, जिनमें रुद्र, नीलकंठ, त्रिलोचन, और महेश जैसे शक्तिशाली स्वरूप शामिल हैं। इसका पाठ व्यक्ति को शक्ति, साहस और भयमुक्तता प्रदान करता है। जो लोग इसे श्रद्धापूर्वक पढ़ते हैं, उनके जीवन में शुभता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके पाठ से असंभव कठिनाइयों और खतरों से भी सुरक्षा मिलती है, जिससे जीवन में स्थिरता और शांति आती है।

अमोघ शिव कवच का विनियोग और प्रक्रिया

इस कवच का पाठ करते समय भगवान शिव का ध्यान करते हुए एक पवित्र आसन पर बैठकर इसे विनियोग के साथ किया जाता है। करन्यास और अंगन्यास के द्वारा भक्त अपने शरीर और मन को शिव तत्व से संतृप्त कर लेते हैं, और इसके बाद कवच के प्रत्येक श्लोक का उच्चारण करते हैं।

इस कवच का पाठ करते समय भगवान शिव के विभिन्न रूपों जैसे इशान, वामदेव, सद्योजात, अघोर, और तत्पुरुष की स्तुति की जाती है, जो दिशाओं में व्यक्ति की सुरक्षा करते हैं। कवच में शिव के विभिन्न रूपों से प्रार्थना की जाती है कि वे अपने शक्तिशाली आयुधों जैसे त्रिशूल, पाश, खड्ग, और ढाल से भक्त की रक्षा करें।

अमोघ शिव कवच का प्रभाव

अमोघ शिव कवच भक्त के मन और शरीर को शुद्ध करता है, उसे साहस, संतोष, और मानसिक शांति प्रदान करता है। यह जीवन के कठिन समय में आशा और विश्वास का संचार करता है और व्यक्ति के चारों ओर एक अदृश्य रक्षात्मक कवच बनाता है। इस कवच का नियमित पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति का जीवन पवित्र, साहसी और सफल बनता है।

अतः, अमोघ शिव कवच उन भक्तों के लिए एक अमूल्य साधन है जो शिव की आराधना में लीन रहते हैं और जीवन में सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति चाहते हैं।

अमोघ शिव कवच पाठ की विधि

अमोघ शिव कवच का पाठ भगवान शिव की कृपा पाने और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से बचाव हेतु किया जाता है। यह पाठ करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पाठ की विधि निम्नलिखित है:

1. स्थान एवं समय

  • स्थान: पाठ के लिए साफ और शांत स्थान का चयन करें, जहाँ भगवान शिव की पूजा होती हो या कोई पवित्र स्थान हो।
  • समय: अमोघ शिव कवच का पाठ सोमवार, प्रदोष, या मास शिवरात्रि के दिन करना श्रेष्ठ माना जाता है। सुबह जल्दी उठकर या रात्रि में इसका पाठ किया जा सकता है।

2. स्नान और वस्त्र

  • पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनना अच्छा माना जाता है।

3. शिवलिंग अथवा शिव प्रतिमा की स्थापना

  • यदि संभव हो तो अपने पूजा स्थल में एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित करें।

4. पूजन सामग्री

  • शिवलिंग के पास पुष्प, जल, बेलपत्र, अक्षत, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य (पंचामृत या मिष्ठान्न) रखें।

5. मंत्रों के साथ प्रारंभिक पूजन

  • सबसे पहले भगवान शिव का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करें। फिर 'ॐ नमः शिवाय' का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

6. विनियोग

  • पाठ आरंभ करने से पहले विनियोग मंत्र का पाठ करें, जो अमोघ शिव कवच के लिए है:

विनियोग 

ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्ति :। रं कीलकम्। 
श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:।

7. कर और अंग न्यास

  • कर और अंग न्यास करते समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
    • करन्यास (हाथों पर मंत्र स्थापना):
      • "ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: ।"
      • और अन्य अंगों पर इसी प्रकार सभी मंत्रों का क्रमशः उच्चारण करें।
    • अंगन्यास (शरीर के अंगों पर मंत्र स्थापना):
      • "ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम:।"

8. अमोघ शिव कवच का पाठ

  • इसके बाद पूर्ण श्रद्धा और ध्यान के साथ अमोघ शिव कवच का पाठ करें। पाठ के प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझने का प्रयास करें और शिवजी के गुणों और प्रभाव का चिंतन करें।

9. शिव जी की आरती

  • पाठ समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती करें और उन पर पुष्प, अक्षत, बेलपत्र और धूप अर्पित करें। शिवलिंग पर दूध या पंचामृत चढ़ाने के बाद जल से अभिषेक करें।

10. प्रसाद वितरण

  • अंत में नैवेद्य का प्रसाद वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।

विशेष ध्यान

  • भक्तों को भक्ति और संयम के साथ इस पाठ का उच्चारण करना चाहिए।
  • संकल्प और निष्ठा के साथ इस पाठ को किया जाए तो यह अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

इस विधि से अमोघ शिव कवच का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और भक्त सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होते हैं।

अमोघ शिव कवच पाठ के नियम

अमोघ शिव कवच का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना लाभकारी माना जाता है। ये नियम पाठ की शुद्धता बनाए रखने और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं:

1. पवित्रता का ध्यान

  • पाठ से पहले स्वयं और पूजा स्थल की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें और पाठ के दौरान एकाग्रता बनाए रखें।

2. संकल्प और श्रद्धा

  • पाठ शुरू करने से पहले मन में संकल्प लें कि आप भगवान शिव की कृपा प्राप्ति और अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए अमोघ शिव कवच का पाठ कर रहे हैं।
  • श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रत्येक मंत्र का उच्चारण करें, भगवान शिव के गुणों का ध्यान करें और उनके प्रति समर्पित रहें।

3. सत्य और संयम

  • पाठ के दौरान सत्य का पालन करें और संयमित रहें। नकारात्मक विचारों और नकारात्मक क्रियाओं से बचें। किसी के प्रति दुर्भावना न रखें।
  • सात्विक भोजन का सेवन करें, मद्यपान और मांसाहार से परहेज करें।

4. समय का चयन

  • अमोघ शिव कवच का पाठ सुबह या शाम के समय करना श्रेष्ठ माना जाता है। सोमवार और शिवरात्रि के दिन विशेष रूप से प्रभावकारी माना गया है।
  • नियमित रूप से इसी समय पर पाठ करने से इसका प्रभाव अधिक होता है।

5. मौन रहकर पाठ करना

  • संभव हो तो पाठ के दौरान मौन रहें। इससे एकाग्रता बनी रहती है और ध्यान भगवान शिव पर केंद्रित रहता है।
  • यदि संभव न हो तो पाठ को धीमी आवाज़ में करें ताकि ध्यान पाठ में ही केंद्रित रहे।

6. शुद्ध उच्चारण

  • कवच के मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करें। यदि संभव हो तो पहले मंत्रों का अभ्यास करें ताकि किसी प्रकार की त्रुटि न हो।
  • गलत उच्चारण से मंत्र का प्रभाव कम हो सकता है, इसलिए ध्यानपूर्वक शब्दों का उच्चारण करें।

7. ध्यान और एकाग्रता

  • पाठ के दौरान भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करें, उनका ध्यान करते हुए उनकी कृपा का अनुभव करें।
  • मन को इधर-उधर न भटकने दें और पाठ पर एकाग्रता बनाए रखें।

8. धूप-दीप का प्रयोग

  • पाठ से पहले भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के सामने धूप और दीप जलाएं। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • पाठ के दौरान दीपक की लौ और धूप की सुगंध से एकाग्रता में वृद्धि होती है।

9. नियमितता बनाए रखें

  • यदि आप एक निश्चित अवधि के लिए इस कवच का पाठ कर रहे हैं, जैसे 21 दिन या 40 दिन, तो इसे बिना किसी व्यवधान के पूरा करने का प्रयास करें।
  • लगातार पाठ करने से कवच का प्रभाव जल्दी और अधिक होता है।

10. प्रसाद ग्रहण

  • पाठ समाप्त होने के बाद शिव जी को नैवेद्य अर्पित करें और फिर प्रसाद के रूप में उसका सेवन करें।
  • प्रसाद को प्रसन्नता से ग्रहण करें और दूसरों के साथ भी बाँटें।

11. व्रत का पालन (वैकल्पिक)

  • अगर संभव हो, तो पाठ के दिन उपवास रखें। यह नियम जरूरी नहीं है, लेकिन इससे पाठ का प्रभाव बढ़ सकता है।

इन नियमों का पालन करने से अमोघ शिव कवच का पाठ अधिक फलदायी होता है और भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

अमोघ शिव कवच पाठ के लाभ

अमोघ शिव कवच का पाठ भगवान शिव के प्रति पूर्ण समर्पण से किया जाता है, और इसका नियमित पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह कवच व्यक्ति की सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करने, जीवन में उन्नति, शांति और सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होता है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

1. सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बाधाओं से सुरक्षा

  • अमोघ शिव कवच एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच है जो साधक को नकारात्मक शक्तियों, बुरी आत्माओं और किसी भी प्रकार के बाहरी भय से बचाता है।
  • यह कवच बाहरी ऊर्जा और नकारात्मक तत्वों से रक्षा करता है, जिससे साधक भयमुक्त जीवन जीता है।

2. धन, समृद्धि और सफलता का आगमन

  • यह कवच पाठ व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं को दूर करने, धन का आगमन करने और व्यापार व करियर में सफलता दिलाने में सहायक माना जाता है।
  • इस पाठ से भगवान शिव की कृपा से जीवन में धन और समृद्धि की वृद्धि होती है।

3. स्वास्थ्य लाभ

  • अमोघ शिव कवच का पाठ व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार लाने, रोगों से रक्षा करने और दीर्घायु प्रदान करने में सहायक माना जाता है।
  • यह कवच साधक के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित और शक्तिशाली बनाता है, रोगों और मानसिक तनाव को दूर करता है।

4. शांति और मन की एकाग्रता

  • इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति के मन को शांति और स्थिरता मिलती है, जिससे मनोविकार, अवसाद और चिंता दूर होती है।
  • साधक को मानसिक शांति प्राप्त होती है, जिससे वह जीवन में एकाग्रता और धैर्य के साथ अपने कार्यों को कर पाता है।

5. दुश्मनों और विरोधियों से रक्षा

  • यह कवच साधक को शत्रुओं और विरोधियों के बुरे प्रभाव से बचाता है और उन पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है।
  • इसे करने से साधक को न्याय और विजय प्राप्त होती है, जिससे वह अपने विरोधियों का सामना आत्मविश्वास से कर सकता है।

6. गृह शांति और सौभाग्य की प्राप्ति

  • अमोघ शिव कवच का पाठ घर में सुख-शांति, सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने में सहायक होता है।
  • यह पाठ परिवार में प्रेम, सहयोग और सौहार्द को बढ़ावा देता है, जिससे परिवार के सभी सदस्यों का कल्याण होता है।

7. कुंडली दोषों का निवारण

  • ज्योतिषीय दोष, जैसे कालसर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष आदि, जिनका प्रभाव जीवन में संकट लाता है, उनसे राहत पाने के लिए इस कवच का पाठ लाभकारी होता है।
  • इस पाठ के प्रभाव से भगवान शिव की कृपा से कुंडली के दोषों का शमन होता है और जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है।

8. भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति

  • अमोघ शिव कवच का नियमित पाठ व्यक्ति को भगवान शिव की विशेष कृपा का पात्र बनाता है। यह पाठ व्यक्ति के भीतर भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण को बढ़ाता है।
  • साधक को जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है और वह भगवान शिव के आशीर्वाद से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है।

9. समस्त इच्छाओं की पूर्ति

  • इस कवच का पाठ करने से साधक की इच्छाएं पूरी होती हैं और भगवान शिव की कृपा से जीवन में इच्छित परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • यह पाठ साधक की साधना, मनोकामनाओं की पूर्ति और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है।

10. मृत्यु भय से मुक्ति

  • इस कवच का प्रभाव साधक को अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करता है और उसे दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है।
  • भगवान शिव के इस कवच से साधक का मन निर्भय और शांत रहता है, जिससे वह मृत्यु के भय से मुक्त होकर पूर्णता से जीवन का आनंद ले पाता है।

अतः अमोघ शिव कवच का नियमित रूप से पाठ करने से जीवन में सुख, समृद्धि, सुरक्षा, शांति और भगवद्कृपा प्राप्त होती है।

अमोघ शिव कवच ! amogh shiv kavach !

विनियोग 

ॐ अस्य श्रीशिवकवचस्तोत्रमंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: अनुष्टप् छन्द:। 
श्रीसदाशिवरुद्रो देवता। ह्रीं शक्ति :। रं कीलकम्। 
श्रीं ह्री क्लीं बीजम्। श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थे शिवकवचस्तोत्रजपे विनियोग:।

करन्यास:

ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम:
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: ।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम:!
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम:! 

अंगन्यास:

ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम:।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम।
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट।
अथ दिग्बन्धन: ॐ भूर्भुव: स्व:

ध्यानम:

कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ।।

ऋषभ उवाच:

अथापरं सर्वपुराणगुह्यं निशे:षपापौघहरं पवित्रम् ।
जयप्रदं सर्वविपत्प्रमोचनं वक्ष्यामि शैवं कवचं हिताय ते ॥ 1॥

नमस्कृत्य महादेवं विश्वुव्यापिनमीश्वतरम्।
वक्ष्ये शिवमयं वर्म सर्वरक्षाकरं नृणाम् ॥ 2॥

शुचौ देशे समासीनो यथावत्कल्पितासन: ।
जितेन्द्रियो जितप्राणश्चिंमतयेच्छिवमव्ययम् ॥ 3॥

ह्रत्पुंडरीक तरसन्निविष्टं स्वतेजसा व्याप्तनभोवकाशम् ।
अतींद्रियं सूक्ष्ममनंतताद्यंध्यायेत्परानंदमयं महेशम् ॥ 4॥

ध्यानावधूताखिलकर्मबन्धश्चयरं चितानन्दनिमग्नचेता: ।
षडक्षरन्याससमाहितात्मा शैवेन कुर्यात्कवचेन रक्षाम् ॥ 5॥

मां पातु देवोऽखिलदेवत्मा संसारकूपे पतितं गंभीरे तन्नाम ।
दिव्यं वरमंत्रमूलं धुनोतु मे सर्वमघं ह्रदिस्थम् ॥ 6॥

सर्वत्रमां रक्षतु विश्वामूर्तिर्ज्योतिर्मयानंदघनश्चियदात्मा ।
अणोरणीयानुरुशक्तिररेक: स ईश्व र: पातु भयादशेषात् ॥ 7॥

यो भूस्वरूपेण बिर्भीत विश्वंो पायात्स भूमेर्गिरिशोऽष्टमूर्ति: ॥
योऽपांस्वरूपेण नृणां करोति संजीवनं सोऽवतु मां जलेभ्य: ॥ 8॥

कल्पावसाने भुवनानि दग्ध्वा सर्वाणि यो नृत्यति भूरिलील: ।
स कालरुद्रोऽवतु मां दवाग्नेर्वात्यादिभीतेरखिलाच्च तापात् ॥ 9॥

प्रदीप्तविद्युत्कनकावभासो विद्यावराभीति कुठारपाणि: ।
चतुर्मुखस्तत्पुरुषस्त्रिनेत्र: प्राच्यां स्थितं रक्षतु मामजस्त्रम् ॥ 10॥

कुठारवेदांकुशपाशशूलकपालढक्काक्षगुणान् दधान: ।
चतुर्मुखोनीलरुचिस्त्रिनेत्र: पायादघोरो दिशि दक्षिणस्याम् ॥ 11॥

कुंदेंदुशंखस्फटिकावभासो वेदाक्षमाला वरदाभयांक: ।
त्र्यक्षश्चितुर्वक्र उरुप्रभाव: सद्योधिजातोऽवस्तु मां प्रतीच्याम् ॥ 12॥

वराक्षमालाभयटंकहस्त: सरोज किंजल्कसमानवर्ण: ।
त्रिलोचनश्चायरुचतुर्मुखो मां पायादुदीच्या दिशि वामदेव: ॥ 13॥

वेदाभ्येष्टांकुशपाश टंककपालढक्काक्षकशूलपाणि: ॥
सितद्युति: पंचमुखोऽवतान्मामीशान ऊर्ध्वं परमप्रकाश: ॥ 14॥

मूर्धानमव्यान्मम चंद्रमौलिर्भालं ममाव्यादथ भालनेत्र: ।
नेत्रे ममा व्याद्भगनेत्रहारी नासां सदा रक्षतु विश्व नाथ: ॥ 15॥

पायाच्छ्र ती मे श्रुतिगीतकीर्ति: कपोलमव्यात्सततं कपाली ।
वक्रं सदा रक्षतु पंचवक्रो जिह्वां सदा रक्षतु वेदजिह्व: ॥ 16॥

कंठं गिरीशोऽवतु नीलकण्ठ: पाणि: द्वयं पातु: पिनाकपाणि: ।
दोर्मूलमव्यान्मम धर्मवाहुर्वक्ष:स्थलं दक्षमखातकोऽव्यात् ॥ 17॥

मनोदरं पातु गिरींद्रधन्वा मध्यं ममाव्यान्मदनांतकारी ।
हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटिं धूर्जटिरीश्व रो मे ॥ 18॥

ऊरुद्वयं पातु कुबेरमित्रो जानुद्वयं मे जगदीश्वतरोऽव्यात् ।
जंघायुगंपुंगवकेतुख्यातपादौ ममाव्यत्सुरवंद्यपाद: ॥ 19॥

महेश्वनर: पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेव: ॥
त्रिलोचन: पातु तृतीययामे वृषध्वज: पातु दिनांत्ययामे ॥ 20॥

पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।
गौरी पति: पातु निशावसाने मृत्युंजयो रक्षतु सर्वकालम् ॥ 21॥

अन्त:स्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणु: सदापातु बहि: स्थित माम् ।
तदंतरे पातु पति: पशूनां सदाशिवोरक्षतु मां समंतात् ॥ 22॥

तिष्ठतमव्याद्भुुवनैकनाथ: पायाद्व्रेजंतं प्रथमाधिनाथ: ।
वेदांतवेद्योऽवतु मां निषण्णं मामव्यय: पातु शिव: शयानम् ॥ 23॥

मार्गेषु मां रक्षतु नीलकंठ: शैलादिदुर्गेषु पुरत्रयारि: ।
अरण्यवासादिमहाप्रवासे पायान्मृगव्याध उदारशक्ति: ॥ 24॥

कल्पांतकोटोपपटुप्रकोप-स्फुटाट्टहासोच्चलितांडकोश: ।
घोरारिसेनर्णवदुर्निवारमहाभयाद्रक्षतु वीरभद्र: ॥ 25॥

पत्त्यश्वटमातंगघटावरूथसहस्रलक्षायुतकोटिभीषणम् ।
अक्षौहिणीनां शतमाततायिनां छिंद्यान्मृडोघोर कुठार धारया ॥26॥

निहंतु दस्यून्प्रलयानलार्चिर्ज्वलत्रिशूलं त्रिपुरांतकस्य ।
शार्दूल सिंहर्क्षवृकादिहिंस्रान्संत्रासयत्वीशधनु: पिनाक: ॥ 27॥

दु:स्वप्नदु:शकुनदुर्गतिदौर्मनस्यर्दुर्भिक्षदुर्व्यसनदु:सहदुर्यशांसि ।

उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रवहार्ति व्याधींश्च् नाशयतु मे जगतामधीश: ॥ 28॥

अमोघ शिव कवच

ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्त्वात्मकाय सर्वमंत्रस्वरूपाय 
सर्वयंत्राधिष्ठिताय सर्वतंत्रस्वरूपाय सर्वत्त्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे 
नीलकंठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूसलितविग्रहाय 
महामणिमुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकालरौद्रावताराय 
दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलाधारैकनिलयाय तत्त्वातीताय 
गंगाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदांतसाराय त्रिवर्गसाधनायानंतकोटि 
ब्रह्माण्डनायका यानंतवासुकितक्षककर्कोटकङ्खिकुलिक 
पद्ममहापद्मेत्यष्टमहानागकुलभूषणायप्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय 
आकाशदिक्स्वरूपायग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलंकरहिताय
 सकललोकैकर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे 
सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकल वेदान्तपारगाय 
सकललोकैकवरप्रदाय सकलकोलोकैकशंकराय शशांकशेखराय 
शाश्वगतनिजावासाय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्लोभाय 
निर्मदाय निश्चिंताय निरहंकाराय निरंकुशाय निष्कलंकाय निर्गुणाय 
निष्कामाय निरुपप्लवाय निरवद्याय निरंतराय निष्कारणाय 
निरंतकाय निष्प्रपंचाय नि:संगाय निर्द्वंद्वाय निराधाराय नीरागाय 
निष्क्रोधाय निर्मलाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय 
निष्क्रियय निस्तुलाय नि:संशयाय निरंजनाय निरुपमविभवायनित्यशुद्धबुद्ध 
परिपूर्णसच्चिदानंदाद्वयाय परमशांतस्वरूपाय तेजोरूपाय तेजोमयाय 
जय जय रुद्रमहारौद्रभद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पांतभैरव 
कपालमालाधर खट्वांगखड्गचर्मपा शांकुशडमरुशूलचापबाण 
गदाशक्तिवभिंदिपालतोमरमुसलमुद्‌गरपाशपरिघ 
भुशुण्डीशतघ्नीचक्राद्यायुधभीषणकरसहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदन
विकटाट्टहासविस्फारितब्रह्मांडमंडल नागेंद्रकुंडल नागेंद्रहार 
नागेन्द्रवलय नागेंद्रचर्मधरमृयुंजय त्र्यंबकपुरांतक 
विश्विरूप विरूपाक्ष विश्वेलश्वर वृषभवाहन विषविभूषण 
विश्वदतोमुख सर्वतो रक्ष रक्ष मां ज्वल ज्वल महामृत्युमपमृत्युभयं 
नाशयनाशयचोरभयमुत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय 
चोरान्मारय मारय ममशमनुच्चाट्योच्चाटयत्रिशूलेनविदारय कुठारेणभिंधिभिंभधि 
खड्‌गेन छिंधि छिंधि खट्वां गेन विपोथय विपोथय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय वाणै: 
संताडय संताडय रक्षांसि भीषय भीषयशेषभूतानि निद्रावय कूष्मांडवेतालमारीच 
ब्रह्मराक्षसगणान्‌संत्रासय संत्रासय ममाभय कुरु कुरु वित्रस्तं मामाश्वा सयाश्वाासय 
नरकमहाभयान्मामुद्धरसंजीवय संजीवयक्षुत्तृड्‌भ्यां मामाप्याय-आप्याय दु:खातुरं 
मामानन्दयानन्दयशिवकवचेन मामाच्छादयाच्छादयमृत्युंजय त्र्यंबक सदाशिव नमस्ते नमस्ते नमस्ते।

ऋषभ उवाच:

इत्येतत्कवचं शैवं वरदं व्याह्रतं मया ॥
सर्वबाधाप्रशमनं रहस्यं सर्वदेहिनाम् ॥ 29॥

य: सदा धारयेन्मर्त्य: शैवं कवचमुत्तमम् ।
न तस्य जायते क्वापि भयं शंभोरनुग्रहात् ॥ 30॥

क्षीणायुअ:प्राप्तमृत्युर्वा महारोगहतोऽपि वा ॥
सद्य: सुखमवाप्नोति दीर्घमायुश्चतविंदति ॥ 31॥

सर्वदारिद्र्य शमनं सौमंगल्यविवर्धनम् ।
यो धत्ते कवचं शैवं सदेवैरपि पूज्यते ॥ 32॥

महापातकसंघातैर्मुच्यते चोपपातकै: ।
देहांते मुक्तिंमाप्नोति शिववर्मानुभावत: ॥ 33॥

त्वमपि श्रद्धया वत्स शैवं कवचमुत्तमम् ।
धारयस्व मया दत्तं सद्य: श्रेयो ह्यवाप्स्यसि ॥ 34॥

सूत उवाच:

इत्युक्त्वाऋषभो योगी तस्मै पार्थिवसूनवे ।
ददौ शंखं महारावं खड्गं चारिनिषूदनम् ॥ 35॥

पुनश्च भस्म संमत्र्य तदंगं परितोऽस्पृशत् ।
गजानां षट्सदहस्रस्य द्विगुणस्य बलं ददौ ॥ 36॥

भस्मप्रभावात्संप्राप्तबलैश्वर्यधृतिस्मृति: ।
स राजपुत्र: शुशुभे शरदर्क इव श्रिया ॥ 37॥

तमाह प्रांजलिं भूय: स योगी नृपनंदनम् ।
एष खड्गोश मया दत्तस्तपोमंत्रानुभावित: ॥ 38॥

शितधारमिमंखड्गं यस्मै दर्शयसे स्फुटम् ।
स सद्यो म्रियतेशत्रु: साक्षान्मृत्युरपि स्वयम् ॥ 39॥

अस्य शंखस्य निर्ह्लादं ये श्रृण्वंति तवाहिता: ।
ते मूर्च्छिता: पतिष्यंति न्यस्तशस्त्रा विचेतना: ॥ 40॥

खड्‌गशंखाविमौ दिव्यौ परसैन्य निवाशिनौ ।
आत्मसैन्यस्यपक्षाणां शौर्यतेजोविवर्धनो ॥ 41॥

एतयोश्च प्रभावेण शैवेन कवचेन च ।
द्विषट्सौहस्त्रनागानां बलेन महतापि च ॥ 42॥

भस्मधारणसामर्थ्याच्छत्रुसैन्यं विजेष्यसि ।
प्राप्य सिंहासनं पित्र्यं गोप्तासि पृथिवीमिमाम् ॥ 43॥

इति भद्रायुषं सम्यगनुशास्य समातृकम् ।
ताभ्यां पूजित: सोऽथ योगी स्वैरगतिर्ययौ ॥ 44॥

।।इति श्रीस्कंदपुराणे एकाशीतिसाहस्रयां तृतीये ब्रह्मोत्तर-खण्डे अमोघ-शिव-कवचं समाप्तम् ।।

निष्कर्ष: अमोघ शिव कवच

अमोघ शिव कवच एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली मन्त्र है, जिसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख, समृद्धि, सुरक्षा, एवं शांति पाने के लिए किया जाता है। यह कवच न केवल आत्मरक्षा प्रदान करता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ करता है। इस कवच के पाठ से साधक पर भगवान शिव की असीम कृपा होती है और वह सभी प्रकार की कठिनाइयों, विघ्नों, और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहता है।

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