छठ पूजा: लोक आस्था का महापर्व
छठ पूजा हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जिसे उत्तर भारत में विशेष रूप से श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों का महापर्व होता है, जिसमें सूर्य देव की उपासना और अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा है। छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें न केवल उदयाचल सूर्य की पूजा होती है, बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है।
छठ पूजा का महत्व और इतिहास
इस पर्व के ऐतिहासिक संदर्भ ऋग्वेद में सूर्योपासना, त्रेतायुग में महर्षि मुद्गल के आश्रम, और द्वापर युग में अज्ञातवास के समय द्रौपदी द्वारा किए गए छठ व्रत से जुड़े हैं। भविष्यपुराण में भी इसका उल्लेख है, जिसमें कृष्णपुत्र साम्ब के सूर्य को अर्घ्य देकर कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने का वर्णन मिलता है।
छठ पूजा की विशेषताएं
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है और इसे चार दिवसीय महापर्व के रूप में मनाया जाता है:
- पहला दिन: नहाय-खाय, जिसमें व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल, और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं।
- दूसरा दिन: खरना, जिसमें दिनभर उपवास के बाद शाम को गुड़ से बनी खीर का प्रसाद लिया जाता है।
- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य, जिसमें व्रती नदी या जलाशय में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
- चौथा दिन: उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और स्वास्थ्य लाभ
छठ पर्व का धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशेष स्थान है। सूर्य की किरणों में खड़े होकर अर्घ्य देने से त्वचा रोगों से बचाव होता है और शरीर निरोगी रहता है। छठ के दौरान उपवास से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है, और यह पाचन तंत्र के लिए लाभकारी होता है।
भाईचारे का संदेश
छठ पर्व पवित्रता, सामूहिकता और भाईचारे का प्रतीक है। इस पर्व की खास बात यह है कि मुस्लिम महिलाएं भी छठ के लिए मिट्टी के चूल्हे बनाने में सहयोग करती हैं, जिससे समाज में सांप्रदायिक एकता और सौहार्द का संदेश मिलता है।
पौराणिक कथाएं
छठ पूजा के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, सूर्य देव की उपासना से राजा प्रियवंद को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। वहीं, महाभारत काल में कर्ण और द्रौपदी ने भी छठ व्रत का पालन किया था।
छठ पूजा एक प्रकृति पर्व भी है, जो न केवल पारिवारिक, बल्कि सामाजिक एकता का संदेश देता है। यह पर्व हमारी संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जो पीढ़ियों से हमारी आस्था को सशक्त बनाता आया है।
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