दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र (PDF)
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र: शनि पीड़ा से मुक्ति का प्रभावी उपाय
शनि स्तोत्र के रचयिता राजा दशरथ थे। यह स्तोत्र शनिदेव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है, और धार्मिक मान्यता है कि उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सभी दुख, संकट, और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र पाठ की विधि
दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ शनिदेव को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद से जीवन की परेशानियों का निवारण करने का प्रभावी उपाय है। इसका पाठ शुद्धता, श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए करना चाहिए।
शनि स्तोत्र पाठ की विधि
1. समय और दिन चयन:
- यह पाठ शनिवार के दिन करना सबसे अधिक शुभ माना गया है।
- आप इसे प्रातःकाल, दोपहर, या सायंकाल तीनों समय कर सकते हैं।
2. स्थान चयन:
- किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें।
- यह स्थान शनि मंदिर, घर का पूजा स्थल, या किसी पीपल के वृक्ष के नीचे हो सकता है।
3. सामग्री तैयार करें:
पाठ के लिए निम्न सामग्री रखें:
- तिल का तेल
- नीले या काले फूल
- काले तिल
- नीलम या शनि यंत्र (यदि उपलब्ध हो)
- दीपक (तिल के तेल का)
- शुद्ध जल, चावल, और पीले वस्त्र
4. शुद्धता:
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पाठ करने से पहले शांत मन और सकारात्मक भाव रखें।
5. आसन:
- काले या सफेद कपड़े का आसन बिछाकर बैठें।
- उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख रखें।
6. पूजा विधि:
- शनि प्रतिमा या शनि यंत्र के सामने दीपक जलाएं।
- तिल का तेल और काले तिल अर्पित करें।
- शनिदेव को नीले या काले फूल चढ़ाएं।
- पीपल के पत्तों पर जल चढ़ाएं।
7. पाठ का प्रारंभ:
- ध्यान: शनिदेव का ध्यान करें।
- संकल्प: अपने कष्टों के निवारण और शनिदेव की कृपा प्राप्ति के लिए पाठ का संकल्प लें।
- पाठ:
- पूरी श्रद्धा से दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र का पाठ करें।
- अगर संभव हो, पाठ को तीन बार करें: सुबह, दोपहर, और शाम।
विशेष उपाय
- शनि दोष से पूर्णतः मुक्ति पाने के लिए शनिवार को काले तिल, लोहे का दान, और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
- शनिदेव की पूजा के बाद पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें।
- पाठ के बाद भगवान हनुमान का स्मरण करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
पाठ के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- पाठ करते समय अपने मन को शांत और स्थिर रखें।
- पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
- किसी भी प्रकार की अशुद्धता (शारीरिक या मानसिक) से बचें।
- पाठ करते समय मोबाइल या अन्य किसी व्यवधान से बचें।
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र पाठ के नियम
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र का पाठ शनिदेव को प्रसन्न करने और शनि दोषों से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों और मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक है, जिससे इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके।
1. शुद्धता और स्वच्छता:
- पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पाठ करने वाला व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से पवित्र हो।
- पूजा स्थल और आसन भी स्वच्छ होना चाहिए।
2. समय का चयन:
- शनिवार के दिन इस पाठ को करना सर्वोत्तम है।
- पाठ के लिए सुबह, दोपहर, या शाम का समय उपयुक्त है।
- अगर विशेष रूप से शनि दोष का प्रभाव हो, तो इसे दिन में तीन बार (प्रातः, मध्याह्न, और सायंकाल) करें।
3. स्थान का चयन:
- पाठ शांत और पवित्र स्थान पर करें।
- शनि मंदिर, घर का पूजा स्थान, या पीपल के वृक्ष के नीचे करना अधिक फलदायक है।
4. सामग्री का उपयोग:
- पाठ के दौरान शनिदेव को तिल का तेल, काले तिल, और काले वस्त्र अर्पित करें।
- शनिदेव को नीले या काले फूल चढ़ाएं।
- पूजा में दीपक तिल के तेल का होना चाहिए।
5. आसन और दिशा:
- काले या सफेद कपड़े का आसन बिछाकर बैठें।
- पाठ के लिए उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख रखें।
6. मन और विचारों की शुद्धता:
- पाठ के समय मन को शांत और स्थिर रखें।
- नकारात्मक विचारों और क्रोध से बचें।
- पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें।
7. पाठ के नियम:
- पाठ को स्पष्ट उच्चारण और धीमे स्वर में करें।
- पूरा स्तोत्र श्रद्धा और ध्यान से पढ़ें।
- पाठ करते समय बीच में उठना या अन्य कार्य करना अशुभ माना जाता है।
8. संयम और आहार:
- पाठ के दिन सात्विक भोजन करें।
- तामसिक भोजन, मदिरा, और मांसाहार से परहेज करें।
- व्रत रख सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
9. दान और सेवा:
- शनिवार के दिन जरूरतमंदों को दान करें।
- काले तिल, लोहे, और तेल का दान विशेष रूप से शुभ माना गया है।
- गाय, कुत्ते, और पक्षियों को भोजन कराना भी लाभकारी है।
10. अन्य बातों का ध्यान रखें:
- शनि स्तोत्र पाठ के बाद पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें।
- पाठ के बाद भगवान हनुमान का स्मरण करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- शनि देव की पूजा में अहंकार और दिखावा नहीं होना चाहिए।
विशेष नियम:
- इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से तब करें जब शनि साढ़ेसाती, ढैया, या महादशा का प्रभाव हो।
- यदि जन्म कुंडली में शनि अशुभ स्थान पर हो, तो इसे नियमित रूप से करना शुभ होता है।
- पाठ के बाद शनिदेव से क्षमा याचना करें और उनकी कृपा की प्रार्थना करें।
लाभ के लिए नियमों का पालन:
इन नियमों का पालन करने से दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावशाली हो जाता है। शनिदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन के सभी दुख, संकट, और बाधाओं का नाश होता है।
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र पाठ के लाभ
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र का पाठ शनिदेव को प्रसन्न करने का अत्यंत प्रभावी साधन माना गया है। इस स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ने से शनि की अशुभ दशा में भी शुभ फल मिलते हैं। यह स्तोत्र राजा दशरथ द्वारा रचित है और शनिदेव के कोप से मुक्ति पाने का सशक्त माध्यम है।
1. शनि दोष से मुक्ति:
- साढ़ेसाती, ढैया, महादशा, और शनि गोचर के कारण होने वाले कष्टों से राहत मिलती है।
- जन्म कुंडली में शनि ग्रह की अशुभ स्थिति को अनुकूल बनाता है।
- शनि के प्रकोप से होने वाली परेशानियां, जैसे रोग, आर्थिक संकट, और मानसिक तनाव समाप्त होते हैं।
2. कष्टों और बाधाओं का नाश:
- जीवन में व्याप्त कष्ट, रुकावटें, और दुर्भाग्य दूर होते हैं।
- रोजगार, व्यापार, और करियर में आ रही समस्याएं खत्म होती हैं।
- शत्रुओं और मुकदमों में विजय प्राप्त होती है।
3. धन, स्वास्थ्य और समृद्धि:
- आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और धन आगमन के नए स्रोत बनते हैं।
- रोग और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।
- घर-परिवार में शांति और समृद्धि का वास होता है।
4. आत्मविश्वास और सफलता:
- व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और सकारात्मकता का संचार होता है।
- करियर और शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है।
- मन को शांति और स्थिरता मिलती है।
5. भगवान शनिदेव की कृपा:
- शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- जीवन में खुशहाली और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
- शनिदेव का कोप शांत होता है और शुभ फल मिलने लगते हैं।
पाठ से जुड़ी विशेष बातें:
- इस स्तोत्र का पाठ शनिदेव को अर्पित करने से तुरंत सकारात्मक बदलाव महसूस होते हैं।
- जिनकी कुंडली में शनि ग्रह के कारण अस्थिरता और संघर्ष हो, उनके लिए यह पाठ अति शुभ है।
- पाठ करते समय श्रद्धा, विश्वास, और नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र - Dashrathkrit Shani Stotra
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र:
नमः कृष्णाय नीलेय शितिकण्ठ निभय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृत्तय च वै नमः ॥ १॥
नमो निर्माणस देहाय दीर्घाश्मश्रुजाताय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयावहते ॥ २॥
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्नेथ वै नमः ।
नमो दीर्घाय शुष्काये कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥३ ॥
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्नारिक्स्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालीने ॥४ ॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलिमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तु भास्करायभ्यादा च ॥५ ॥
अधोदेशतेः नमस्तेऽस्तु व्यक्त नमोऽस्तु ते ।
नमो मण्डगते तुभ्यं निस्त्रिंशै नमोऽस्तुते ॥६ ॥
तपसा दग्धा-देहाय नित्यं योग्रतया च ।
नमो नित्यं आराधर्तया अतृपत्य च वै नमः । ७ ॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु काश्यपत्मज्-सुनबे ।
तुष्टो ददासि वै राजयं रिष्टो हरसि तत्ख्यानात् ॥८ ॥
देवासुरमनुष्यश्च सिद्धविद्याधरोरागः । त्वया
विलोकिताः सर्वे नाशां यान्ति समूलतः ॥९ ॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वरदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ॥१० ॥
दशरथ उवाचः
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरान् देहि मामेप्सितम् ।
अद्य प्रभृतिपिंगाक्ष ! पीड़ा देय न कस्यचित् ॥
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र पाठ का निष्कर्ष:
दशरथकृत श्री शनि स्तोत्र एक प्राचीन और प्रभावशाली स्तोत्र है, जो शनिदेव की कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। यह स्तोत्र राजा दशरथ की भक्ति और शनिदेव के प्रति उनकी श्रद्धा का प्रतीक है। शनिदेव के कोप को शांत करने के लिए यह स्तोत्र अचूक उपाय है।
इसका नियमित पाठ न केवल शनि दोषों को दूर करता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है। शनिदेव की पूजा और इस स्तोत्र का पाठ जीवन में शांति, समृद्धि, और संतुलन लाने में सहायक है।
ध्यान दें:
- इसे शनिवार को करना अधिक शुभ माना जाता है।
- शनिदेव का आशीर्वाद पाने के लिए सच्चे मन और श्रद्धा से पाठ करें।
- जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या ढैया चल रही हो, उनके लिए यह पाठ संजीवनी के समान है।
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