द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र PDF | Dwadash Jyotirlinga Stotra PDF

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र PDF

विषय सूची

  • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र महत्त्व
  • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ के नियम
  • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के लाभ
  • निष्कर्ष
  • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र PDF

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र महत्त्व

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र: भगवान शिव की भक्ति और कृपा का एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसे श्री आदि शंकराचार्य ने रचा है। इसमें भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों का विवरण और महिमा का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का लाभ मिलता है और जीवन में शिव की कृपा सदा बनी रहती है। यह स्तोत्र भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही लाभ प्रदान करता है, जिससे साधक का जीवन सुखमय, संतुलित और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ विधि

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली तरीका है। इस स्तोत्र के पाठ के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं, फिर भी इसे कुछ विशेष विधि से किया जाए तो इसका अधिक लाभ मिलता है। यहां पाठ की सामान्य विधि दी जा रही है:

  1. स्वच्छता और तैयारी:

    • सबसे पहले स्नान करके शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • पूजा स्थान को साफ कर लें और वहां भगवान शिव की मूर्ति, चित्र, या शिवलिंग रखें।
  2. पूजा सामग्री:

    • दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, बेलपत्र, दूध, गंगाजल, चंदन, और भस्म आदि पूजा के लिए तैयार रखें।
  3. शिव जी का ध्यान:

    • शिव जी का ध्यान करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। मन को शांत और एकाग्र करें, जिससे कि आप पूरी श्रद्धा से पाठ कर सकें।
  4. दीप प्रज्वलन:

    • भगवान शिव के सामने एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं। इससे वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है।
  5. द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ:

    • शिव जी का ध्यान करते हुए निम्नलिखित क्रम में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करें:
    • सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल में मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, बैद्यनाथ, नागेश्वर, केदारनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वर, भीमाशंकर, विश्वनाथ, और घृष्णेश्वर – इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम और महिमा का पाठ करें।
  6. प्रसाद अर्पण:

    • शिव जी को पुष्प, बेलपत्र, और भस्म अर्पित करें। साथ ही, उन्हें दूध और गंगाजल से अभिषेक भी करें। प्रसाद के रूप में फल या मिष्ठान्न अर्पित करें।
  7. अंतिम आरती और क्षमायाचना:

    • पाठ के बाद भगवान शिव की आरती करें। आरती के बाद भगवान शिव से अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें।
  8. शांति और ध्यान:

    • अंत में कुछ क्षणों के लिए शिव जी का ध्यान करें और उनकी कृपा का अनुभव करें।

विशेष समय:

  • सोमवार, प्रदोष व्रत, और महाशिवरात्रि के दिन इस स्तोत्र का पाठ करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

इस विधि से द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करने से साधक को भगवान शिव की कृपा, शांति, और सभी इच्छाओं की पूर्ति प्राप्त होती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ के नियम

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक प्रभावशाली साधन है। इसके पाठ के कुछ नियम और अनुशासन का पालन करने से इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। यहाँ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ के कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:

  1. स्नान और शुद्ध वस्त्र:

    • पाठ करने से पहले स्नान करके शुद्ध और साफ कपड़े पहनना चाहिए। इससे शरीर और मन की शुद्धि होती है।
  2. समय का चयन:

    • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) में करना सर्वोत्तम माना गया है। यदि यह संभव न हो तो शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, या सोमवार के दिन भी इस स्तोत्र का पाठ विशेष लाभकारी होता है।
  3. एकाग्रता और शांत वातावरण:

    • पाठ करते समय मन को एकाग्र और शांत रखें। शांत वातावरण में, बिना किसी व्यवधान के पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  4. पूजा सामग्री:

    • पूजा के दौरान भगवान शिव को जल, बेलपत्र, सफेद फूल, चंदन, धूप, दीप, और भस्म अर्पित करें। बेलपत्र और जल से शिवलिंग का अभिषेक करना अत्यंत शुभ माना गया है।
  5. निर्धारित आसन पर बैठें:

    • पाठ करते समय एक साफ और निर्धारित आसन का प्रयोग करें। आसान उपासना में स्थिरता और ध्यान की मदद करता है।
  6. संयम और सात्विकता:

    • इस स्तोत्र का पाठ करते समय सात्विक भोजन करें और बुरे विचारों से बचें। पाठ के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक चीजों का सेवन न करें।
  7. धैर्य और श्रद्धा से पाठ:

    • पाठ को श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ करें। जल्दीबाजी से बचें और भगवान शिव की महिमा का अनुभव करने का प्रयास करें।
  8. प्रसाद का वितरण:

    • पाठ समाप्त होने के बाद भगवान को अर्पित प्रसाद को परिवार या अन्य भक्तों में बाँट दें। प्रसाद का सेवन शुभ माना जाता है।
  9. नियमितता:

    • इसे प्रतिदिन पढ़ना श्रेष्ठ है, परंतु यदि यह संभव न हो तो विशेष दिनों पर इसका नियमित पाठ करने से लाभ मिलता है।
  10. अंत में आरती और क्षमा याचना:

    • पाठ के बाद शिव जी की आरती करें और पाठ के दौरान हुई भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें।

इन नियमों का पालन करते हुए द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करने से साधक को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, उनके कष्ट दूर होते हैं, और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के लाभ

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करने से साधक को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों का गुणगान करता है और इनके महात्म्य का वर्णन करता है। इसके नियमित पाठ से आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार के लाभ मिलते हैं।

  1. भगवान शिव की कृपा:

    • इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का फल मिलता है और शिव जी की कृपा से सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
  2. मनोकामनाओं की पूर्ति:

    • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके प्रभाव से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  3. मृत्यु भय का नाश:

    • यह स्तोत्र मृत्यु के भय को समाप्त करता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति को यम का भय नहीं रहता और शिवलोक की प्राप्ति होती है।
  4. आंतरिक शांति और संतुष्टि:

    • इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है। व्यक्ति के मन में संतोष और स्थिरता आती है और मानसिक तनाव दूर होता है।
  5. पापों का नाश:

    • यह स्तोत्र पापों का क्षय करने में सहायक है। इसके प्रभाव से पुराने पापों से मुक्ति मिलती है और साधक का आत्मिक शुद्धिकरण होता है।
  6. लंबी आयु:

    • मान्यता है कि इस स्तोत्र के पाठ से साधक को लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आयु में वृद्धि होती है।
  7. कष्टों का निवारण:

    • इस स्तोत्र का पाठ साधक के जीवन के सभी कष्टों का नाश करता है। इसके प्रभाव से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  8. आध्यात्मिक उन्नति:

    • द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ साधक को आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत करता है। इसके माध्यम से साधक का भगवान शिव के साथ गहरा संबंध बनता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
  9. बाधाओं का नाश:

    • यह स्तोत्र जीवन की सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करता है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर सहजता से आगे बढ़ता है।
  10. परिवार में सुख-शांति:

    • इस स्तोत्र का पाठ परिवार में भी सुख, शांति और समृद्धि का संचार करता है। यह सभी सदस्यों की रक्षा करता है और उनके जीवन में सकारात्मकता लाता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का नियमित पाठ करके भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकता है, जिससे जीवन में शांति, समृद्धि और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र ! Dwadash Jyotirlinga Stotra !

सौराष्ट्र-देशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकला-वतंसम् ।

भक्ति-प्रदानाय कृपा-वतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥

श्रीशैल-शृङ्गे विबुधाति-सङ्गे
तुला-द्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।

तमर्जुनं मल्लिक-पूर्वमेकं
नमामि संसार-समुद्र-सेतुम् ॥ २ ॥

अवन्तिकायां विहिता-वतारं
मुक्ति-प्रदानाय च सज्जनानाम्
अकाल-मृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकाल-महासुरेशम् ॥ ३ ॥

कावेरिका-नर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जन-तारणाय ।

सदैव मान्धातृ-पुरे वसन्त
मोङ्कार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ४ ॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका-निधाने
सदा वसन्तं गिरिजा-समेतम्
सुरासुरा-राधित-पादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५ ॥

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषि-ताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।

सद्भक्ति-मुक्ति-प्रदमीश-मेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ६ ॥

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्य-मानं सततं मुनीन्द्रैः ।

सुरा-सुरैर्यक्ष-महोर-गाद्यैः
केदार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ७ ॥

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरी-तीर-पवित्र-देशे ।

यद्दर्शनात्पातक-माशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बक-मीश-मीडे ॥ ८ ॥

सुताम्रपर्णी-जल-राशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैर-संख्यैः ।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ ९ ॥

यं डाकिनी-शाकिनिका-समाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।

सदैव भीमादि-पद-प्रसिद्धं
तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ १० ॥

सानन्द-मानन्द-वने वसन्त
मानन्द-कन्दं हतपाप-वृन्दम् ।

वाराणसी-नाथम-नाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ११ ॥

इलापुरे रम्यविशाल-केऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।

वन्दे महोदारतर-स्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ १२ ॥

ज्योतिर्मय-द्वादश-लिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्त-मिदं क्रमेण ।

स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽति-भक्त्या
फलं तदा-लोक्य निजं भजेच्च ॥ १३ ॥

इति श्रीद्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

निष्कर्ष

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की भक्ति का एक अत्यंत प्रभावी साधन है। यह साधक को जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ भगवान शिव की अनंत कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस स्तोत्र के माध्यम से शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा का स्मरण कर, साधक अपने जीवन को पवित्रता, शांति, और आंतरिक सुख से भर सकता है।

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