गणेश स्तवराज: भगवान गणेश की अद्भुत स्तुति (PDF) | Ganesha Stavaraja: Wonderful Praises to Lord Ganesha (PDF)

गणेश स्तवराज: भगवान गणेश की अद्भुत स्तुति

गणेश स्तवराज भगवान गणेश की स्तुति में रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र उनकी महिमा, दिव्यता और कृपा का गान करता है। भक्त इसे विशेष अवसरों पर या नित्य पाठ के रूप में पढ़ते हैं, जिससे वे भगवान गणेश के आशीर्वाद, विघ्नों से मुक्ति, और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं।

गणेश स्तवराज का महत्व

गणेश स्तवराज में भगवान गणेश को समर्पित अद्भुत श्लोक हैं, जो उनकी शक्ति, बुद्धि, और उनके भक्तों के प्रति कृपालु स्वभाव का वर्णन करते हैं। इस स्तोत्र में कहा गया है कि कलियुग में यह झट से सिद्धि देने वाला है और इसके लिए जटिल विधियों की आवश्यकता नहीं है।

श्री गणेश स्तवराज पाठ की विधि

भगवान गणेश के इस दिव्य स्तोत्र को पढ़ने के लिए साधक को श्रद्धा, भक्ति, और नियम का पालन करना चाहिए। यह विधि साधारण और प्रभावशाली है, जिससे भगवान गणेश की कृपा प्राप्त की जा सकती है।


1. पाठ का समय और स्थान
  • समय:
    • श्री गणेश स्तवराज का पाठ प्रातःकाल (सूर्योदय के बाद) या संध्याकाल (सूर्यास्त के समय) करना शुभ माना जाता है।
    • विशेष दिन: गणेश चतुर्थी, बुधवार, या चतुर्थी तिथि को इसका पाठ करना विशेष फलदायक होता है।
  • स्थान:
    • स्वच्छ और पवित्र स्थान चुनें।
    • पूजा स्थल में भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।

2. सामग्री

  • भगवान गणेश का चित्र या मूर्ति।
  • लाल या पीले रंग का आसन।
  • मोदक या गुड़ से बने लड्डू।
  • दूर्वा (दूब घास)।
  • लाल फूल (जैसे गुड़हल या गुलाब)।
  • धूप, दीपक, चंदन।
  • नारियल और पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और जल)।

3. पाठ से पहले की तैयारी

  1. स्नान:
    • स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. आसन:
    • लाल या पीले कपड़े का आसन बिछाकर पूजन करें।
  3. भगवान गणेश का पूजन:
    • मूर्ति या चित्र पर जल छिड़कें और चंदन का तिलक करें।
    • दूर्वा, लाल फूल, और मोदक अर्पित करें।
    • दीपक और धूप जलाएं।

4. पाठ की प्रक्रिया

  1. गणेश ध्यान:
    • "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 11 बार जाप करें।
  2. संकल्प:
    • मन में भगवान गणेश को नमन करते हुए संकल्प लें कि यह पाठ विघ्नों की शांति, समृद्धि, और सफलता के लिए किया जा रहा है।
  3. पाठ प्रारंभ करें:
    • श्री गणेश स्तवराज का पाठ पूरे ध्यान और भक्ति के साथ करें।
  4. पाठ समाप्ति:
    • पाठ समाप्त होने पर भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें।

5. पाठ के बाद के नियम

  • भगवान गणेश को अर्पित प्रसाद (मोदक या लड्डू) घर के सभी सदस्यों में बांटें।
  • बचा हुआ दूर्वा जल में प्रवाहित करें।
  • मन में भगवान गणेश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें।

श्री गणेश स्तवराज के पाठ के नियम

श्री गणेश स्तवराज का पाठ अत्यंत प्रभावशाली और लाभकारी है। इसे सही विधि और नियमों का पालन करते हुए करने से भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:


1. पवित्रता और स्वच्छता

  • पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पाठ करने का स्थान स्वच्छ और शांत होना चाहिए।
  • पाठ के दौरान ध्यान रखें कि शुद्धता बनाए रखें।

2. आसन का चयन

  • लाल या पीले कपड़े का आसन प्रयोग करें।
  • आसन पर स्थिर होकर बैठें और पाठ करें।

3. पूजा सामग्री की तैयारी

  • पाठ के लिए भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दूर्वा, लाल फूल, मोदक, और दीपक रखें।
  • पाठ के बाद भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद ग्रहण करें।

4. समय और दिन का चयन

  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ प्रातःकाल (सूर्योदय) या संध्याकाल (सूर्यास्त) के समय करें।
  • बुधवार और चतुर्थी तिथि को विशेष फलदायक माना जाता है।
  • नित्य पाठ करना हो तो त्रिकाल संध्या (प्रातः, दोपहर, और संध्या) के समय करें।

5. श्रद्धा और ध्यान

  • पाठ करते समय भगवान गणेश के स्वरूप का ध्यान करें।
  • पाठ के दौरान मन को एकाग्र और शांत रखें।
  • भाव से भरे शब्दों का उच्चारण करें, मन और वाणी की पवित्रता बनाए रखें।

6. मंत्र जाप और संख्या

  • पाठ से पहले "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 11 बार जाप करें।
  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ कम से कम 1 बार करें।
  • अधिक फल प्राप्त करने के लिए इसे 3, 5, या 11 बार पढ़ सकते हैं।

7. संकल्प और उद्देश्य

  • पाठ प्रारंभ करने से पहले भगवान गणेश को नमन करते हुए संकल्प लें।
  • संकल्प लें कि आप यह पाठ भगवान गणेश की कृपा, विघ्नों की शांति, और मनोकामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं।

8. संयम और नियम पालन

  • पाठ के दौरान और पाठ समाप्ति के दिन मांस, मद्यपान, और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
  • संयमित जीवनशैली अपनाएं और सच्चाई, दया, तथा अहिंसा का पालन करें।
  • घर का वातावरण शांत और पवित्र रखें।

9. नियमितता और समर्पण

  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ नित्य, सप्ताह में एक बार, या चतुर्थी के दिन अवश्य करें।
  • पाठ को श्रद्धा और भक्ति से करें।
  • अपने कार्य में भगवान गणेश के प्रति पूर्ण समर्पण रखें।

10. पाठ समाप्ति के बाद

  • पाठ समाप्त होने के बाद भगवान गणेश से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
  • अर्पित प्रसाद (मोदक, लड्डू) घर के सभी सदस्यों में बांटें।
  • पाठ के बाद भगवान को धन्यवाद दें और उनकी कृपा के लिए कृतज्ञता प्रकट करें।

विशेष टिप्स:

  • श्री गणेश स्तवराज पाठ के लिए आपका मन और शरीर दोनों शांत और संयमित होना चाहिए।
  • पाठ करने से पहले भगवान गणेश की मूर्ति पर जल छिड़ककर, दूर्वा और लाल फूल चढ़ाएं।
  • "ॐ श्री गणेशाय नमः" का जाप पाठ के दौरान मन में करते रहें।

यह नियम भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त करने और साधक के जीवन में समृद्धि, सुख, और शांति लाने में सहायक होते हैं।

श्री गणेश स्तवराज पाठ के लाभ

श्री गणेश स्तवराज भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करने वाला एक दिव्य स्तोत्र है। इसका पाठ श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से साधक को अनेक आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। श्री गणेश स्तवराज के पाठ से मिलने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:


1. विघ्नों का नाश

  • श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएं और विघ्न दूर हो जाते हैं।
  • किसी कार्य में आने वाली रुकावटें स्वतः समाप्त हो जाती हैं।

2. बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति

  • श्री गणेश बुद्धि और ज्ञान के दाता हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है और विवेकशीलता प्राप्त होती है।
  • विद्यार्थी विशेष रूप से इस पाठ से लाभान्वित होते हैं।

3. धन और समृद्धि

  • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से धन संबंधित समस्याएं समाप्त होती हैं।
  • साधक के घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

4. मनोकामना पूर्ति

  • किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावकारी है।
  • साधक की सभी इच्छाएं भगवान गणेश की कृपा से पूर्ण होती हैं।

5. मानसिक शांति और सकारात्मकता

  • इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शांत रहता है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं।
  • साधक के जीवन में आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ता है।

6. आध्यात्मिक उन्नति

  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करता है।
  • यह पाठ साधक के भीतर भक्ति, शुद्धता और आत्मबल को प्रबल करता है।

7. रोगों से मुक्ति

  • इस स्तोत्र का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • भगवान गणेश की कृपा से साधक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।

8. कार्य सिद्धि

  • यह स्तोत्र किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले पढ़ने पर उस कार्य में सफलता सुनिश्चित करता है।
  • व्यापार, शिक्षा, नौकरी, विवाह, या अन्य किसी क्षेत्र में आने वाली समस्याएं समाप्त होती हैं।

9. परिवार में शांति और सामंजस्य

  • इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार में सुख-शांति और आपसी प्रेम बढ़ता है।
  • परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद समाप्त होते हैं।

10. विशेष अवसरों पर पाठ के लाभ

  • गणेश चतुर्थी, बुधवार, और चतुर्थी तिथि पर इस स्तोत्र का पाठ करना विशेष फलदायक होता है।
  • इन दिनों पर पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

11. जन्मकुंडली के दोषों का निवारण

  • यह स्तोत्र ग्रह दोषों और कुंडली में उपस्थित विघ्नकारी योगों को समाप्त करता है।
  • विशेष रूप से राहु और केतु के दोषों में इसका पाठ लाभकारी होता है।

12. जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति

  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ साधक के जीवन में सौभाग्य और शुभता लाता है।
  • साधक के जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति और प्रसन्नता आती है।

गणेश स्तवराज ! Ganesh Stavraj

भगवानुवाच

गणेशस्य स्तवं वक्ष्ये कलौ झटिति सिद्धिदम् ।
न न्यासो न च संस्कारो न होमो न च तर्पणम् ॥१॥

न मार्जनं च पञ्चाशत्सहस्त्रजपमात्रतः ।
सिद्धयत्यर्चनतः पञ्चशत ब्राह्मणभोजनात् ॥२॥

ॐ अस्य श्रीगणेशस्तवराजमन्त्रस्य भगवान् सदाशिवऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः,
श्रीमहागणपतिर्देवता, श्रीमहागणपतिप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।

विनायकैक-भावना-समर्चना-समर्पितं 
प्रमोदकैः प्रमोदकैः प्रमोद-मोद-मोदकम् ।

यदर्पितं सदर्पितं नवान्यधान्यनिर्मितं न कण्डितं 
न खण्डितं न खण्डमण्डनं कृतम् ॥१॥

सजातिकृद्विजातिकृत्-स्वनिष्ठ-भेदवर्जितं 
निरञ्जनं च निर्गुणं निराकृर्ति ह्यनिष्क्रियम् ।

सदात्मकं चिदात्मकं सुखात्मकं परं पदं 
भजामि तं गजाननं स्वमाययात्तविग्रहम् ॥२॥

गणाधिप ! त्वमष्टमूर्तिरीशसूनुरी  - 
श्वरस्त्वमम्बरं च शम्बरं धनञ्जयः प्रभञ्जनः ।

त्वमेव दीक्षितः क्षितिर्निशाकरः प्रभाक
रश्चराऽचर-प्रचार-हेतुरन्तराय-शान्तिकृत् ॥३॥

अनेकदं तमाल-नीलमेकदन्त-सुन्दरं 
गजाननं नमोऽगजानना-ऽमृताब्धि-मन्दिरम् ।

समस्त - वेदवादसत्कला - कलाप मन्दिरं 
महान्तराय कृत्तमोऽर्कमाश्रितोऽन्दरुं परम् ॥४॥

सरत्नहेम - घण्टिका - निनाद नूपुरस्व
नैर्मृदङ्ग तालनाद - भेदसाधनानुरूपतः ।

धिमि-द्धिमि-त्तथोङ्ग-थोङ्ग-धैयि-थैयिशब्दतो 
विनायकः शशाङ्कु‌शेखरः प्रहृष्य नृत्यति ॥५॥

सदा नमामि यूथनायकैकनायकं 
कलाकलाप-कल्पना-निदानमादिपूरुषम् ।

गणेश्वरं गुणेश्वरं महेश्वरात्मसम्भवं 
स्वपादपद्म-सेविनामपार-वैभवप्रदम् ॥६।

भजे प्रचण्ड-तुन्दिलं सदन्दशूकभूषणं 
सनन्दनादि-वन्दितं समस्त-सिद्धसेवितम् ।

सुराऽसुरौकयोः सदा जयप्रदं भयप्रदं 
समस्तविघ्न-घातिनं स्वभक्त-पक्षपातिनम् ॥७॥

कराम्बुजात-कङ्कणः पदाब्ज-किङ्किणीगणो 
गणेश्वरो गुणार्णवः फणीश्वराङ्गभूषणः ।

जगत्त्रयान्तराय-शान्तिकारकोऽस्तु तारको
भवार्णवस्थ-घोरदुर्गहा चिदेकविग्रहः ॥८॥

यो भक्तिप्रवणश्चरा-ऽचर-गुरोः स्तोत्रं गणेशाष्टकं
शुद्धः संयतचेतसा यदि पठेन्नित्यं त्रिसन्ध्यं पुमान् ।

तस्य श्रीरतुला स्वसिद्धि-सहिता श्रीशारदा सर्वदा 
स्यातां तत्परिचारिके किल तदा काः कामनानां कथाः ॥९॥

इति श्रीरुद्रयामलतो गणेशस्तवराजः सम्पूर्णः ॥

नोट:

  • श्री गणेश स्तवराज का पाठ श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए।
  • पाठ के बाद भगवान गणेश को प्रसाद अर्पित करें और उनकी कृपा के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें।
  • यह पाठ न केवल साधक के जीवन में सुख-समृद्धि लाता है, बल्कि उसे आध्यात्मिक रूप से भी उन्नत करता है।

"ॐ गं गणपतये नमः।"

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