श्री गणपति स्तोत्र पाठ PDF
- गणपति स्तोत्र: जीवन में शांति और समृद्धि के लिए
- श्री गणपति स्तोत्र पाठ की विधि
- विशेष निर्देश
- श्री गणपति स्तोत्र पाठ के नियम
- श्री गणपति स्तोत्र पाठ के लाभ
- श्री गणपति स्तोत्र पाठ
- निष्कर्ष
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गणपति स्तोत्र: जीवन में शांति और समृद्धि के लिए
गणपति स्तोत्र का नियमित जाप भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है और यह सभी कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है। इस स्तोत्र का जाप करने से मन शांत होता है, जीवन में सकारात्मकता आती है, और बिगड़े काम बन जाते हैं। इसके पाठ से स्वास्थ्य लाभ, आर्थिक उन्नति, और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह विशेष रूप से विद्यार्थियों, धन की कामना रखने वालों, और पुत्र प्राप्ति के इच्छुक लोगों के लिए लाभकारी है। संपूर्ण वर्ष तक नियमित पाठ करने से व्यक्ति को सिद्धि और भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
श्री गणपति स्तोत्र पाठ की विधि
श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करने के लिए एक विशेष विधि का पालन करना चाहिए ताकि पाठ का अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। नीचे पाठ विधि के चरण दिए गए हैं:
शुद्धता और स्नान: सबसे पहले, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पवित्रता का ध्यान रखें, क्योंकि शुद्ध मन और शरीर से किया गया पाठ अधिक फलदायक होता है।
पूजा स्थान का चयन: पूजा स्थान को स्वच्छ रखें। श्री गणेश जी की मूर्ति, चित्र या यंत्र को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। आप घर के मंदिर में या किसी अन्य पवित्र स्थान पर पाठ कर सकते हैं।
भगवान गणेश का आवाहन: श्री गणेश जी का आवाहन करते हुए उनके सामने दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं। भगवान गणेश को दूर्वा, पुष्प, चंदन, अक्षत (चावल) और उनके प्रिय मोदक का अर्पण करें।
आसन का चयन: कुशा का आसन या कोई साफ कपड़ा बिछाकर बैठें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना सबसे शुभ माना जाता है।
मंत्र का उच्चारण: पाठ से पहले "ॐ गण गणपतये नमः" मंत्र का 11 बार जाप करें। इससे मन स्थिर होता है और पाठ में एकाग्रता बढ़ती है।
संकल्प: पाठ की शुरुआत में संकल्प लें, अर्थात अपनी मनोकामना को भगवान गणेश के सामने रखें और श्री गणपति स्तोत्र का पाठ आरंभ करें।
पाठ विधि: पूरे मनोयोग और श्रद्धा से श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करें। पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र बनाए रखें और गणेश जी का ध्यान करें।
पाठ समाप्ति पर विशेष प्रार्थना: पाठ समाप्ति के बाद भगवान गणेश से अपने सभी कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करें।
अर्चना और आरती: अंत में गणेश जी की आरती करें और उन्हें मोदक या लड्डू का प्रसाद अर्पित करें।
प्रसाद वितरण: प्रसाद का वितरण सभी घर के सदस्यों में करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
नियमितता: यदि संभव हो तो इस पाठ को नियमित रूप से हर बुधवार या गणेश चतुर्थी के दिन करें। एक वर्ष तक लगातार पाठ करने से मनुष्य को विशेष सिद्धि और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विशेष निर्देश
- श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करते समय पूरी श्रद्धा और भक्ति का भाव रखें।
- पाठ का सबसे अच्छा समय प्रातः काल माना जाता है, लेकिन किसी भी समय एकाग्र मन से किया गया पाठ फलदायी होता है।
- यदि हो सके तो पाठ के दिन उपवास (व्रत) रखें और केवल फलाहार ग्रहण करें।
नियमित पाठ के लाभ
इस विधि से नियमित रूप से श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि, विघ्न-बाधाओं का नाश, धन और स्वास्थ्य लाभ, तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
श्री गणपति स्तोत्र पाठ के नियम
श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि पाठ का पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। ये नियम पाठ की शुद्धता बनाए रखने और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
शुद्धता और पवित्रता:
- पाठ के समय शरीर, मन और स्थान की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पाठ स्थल को स्वच्छ रखें।
समय और स्थान का चयन:
- श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करने का सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल का होता है, लेकिन आप इसे किसी भी समय कर सकते हैं।
- नियमितता के लिए एक निश्चित स्थान और समय का चयन करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और पाठ में स्थिरता आती है।
पूजा सामग्री:
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, अगरबत्ती, दूर्वा, चंदन, पुष्प और मोदक का अर्पण करें।
- गणपति स्तोत्र का पाठ करते समय भगवान गणेश को दूर्वा (घास) अर्पित करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
आसन का उपयोग:
- कुश या कपड़े का आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- आसन का उपयोग करने से पाठ करते समय स्थिरता बनी रहती है और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
पाठ से पूर्व संकल्प:
- पाठ शुरू करने से पहले भगवान गणेश का स्मरण करते हुए अपनी मनोकामना का संकल्प लें। संकल्प लेने से पाठ का उद्देश्य और प्रभाव अधिक होता है।
मंत्र का जाप:
- पाठ की शुरुआत और समाप्ति पर "ॐ गण गणपतये नमः" मंत्र का जाप करें। इस मंत्र के 11 जाप पाठ के पहले और 11 जाप पाठ के बाद करना शुभ माना जाता है।
भोजन और आहार संबंधी नियम:
- पाठ के दिन यदि संभव हो तो सात्त्विक आहार लें और व्रत रखें। इससे मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनी रहती है।
- पाठ से पहले प्याज, लहसुन, और मांसाहार का सेवन न करें।
श्रद्धा और एकाग्रता:
- पाठ करते समय मन में श्रद्धा और विश्वास का भाव रखें। मन को शांत और एकाग्र बनाए रखें और भगवान गणेश का ध्यान करते रहें।
- हर श्लोक का उच्चारण स्पष्ट और सही ढंग से करें।
नियमितता का पालन:
- गणपति स्तोत्र का नियमित पाठ करना अत्यंत लाभकारी होता है। इसे विशेष रूप से हर बुधवार या चतुर्थी के दिन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
- एक वर्ष तक लगातार पाठ करने से मनुष्य को सिद्धि और भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पाठ समाप्ति के बाद आरती:
- पाठ समाप्त होने के बाद गणेश जी की आरती अवश्य करें। इससे पूजा पूरी होती है और भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
प्रसाद वितरण:
- पाठ के अंत में गणेश जी को अर्पित प्रसाद सभी सदस्यों में बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें।
श्री गणपति स्तोत्र पाठ के लाभ और निष्कर्ष
श्री गणपति स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि और सुख के देवता माना जाता है। इसलिए इस स्तोत्र का पाठ जीवन की समस्याओं और बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है। आइए जानते हैं इसके प्रमुख लाभ और निष्कर्ष:
लाभ
सभी बाधाओं का नाश:
- श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की सभी प्रकार की बाधाएँ, विघ्न, और संकट दूर होते हैं। भगवान गणेश के आशीर्वाद से कामों में आ रही रुकावटें समाप्त होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
धन, वैभव और समृद्धि:
- इस स्तोत्र के पाठ से धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति को आर्थिक स्थिरता प्राप्त होती है और व्यवसाय एवं नौकरी में उन्नति होती है।
बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति:
- विद्यार्थी विशेष रूप से इस स्तोत्र का पाठ करें, तो उन्हें पढ़ाई में सफलता और बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह स्तोत्र बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि करता है और मानसिक एकाग्रता बढ़ाता है।
स्वास्थ्य लाभ:
- नियमित पाठ से मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है, जो शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह तन-मन को स्वस्थ बनाए रखता है और बीमारियों से बचाता है।
भय और नकारात्मकता का नाश:
- इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के मन से सभी प्रकार के भय और नकारात्मक विचार समाप्त होते हैं। आत्मविश्वास बढ़ता है और मन में सकारात्मकता का संचार होता है।
परिवारिक सुख और शांति:
- घर में श्री गणपति स्तोत्र का पाठ करने से पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं और घर में सुख-शांति और प्रेम का वातावरण बना रहता है।
मोक्ष की प्राप्ति:
- भगवान गणेश को आदिदेव माना गया है और उनकी पूजा एवं स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। इससे व्यक्ति के भीतर शुद्धता आती है और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।
श्री गणपति स्तोत्र पाठ ! Shri Ganpati Stotra
जेतुं यस्त्रिपुरं हरेण हरिणा व्याजाद्वलिं बध्नता
स्त्रष्टुं वारिभवोद्भवेन भुवनं शेषेण धर्तुं धरम् ।
पार्वत्या महिषासुरप्रमथने सिद्धाधिपैः सिद्धये
ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितये पायात् स नागाननः ॥१॥
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः
विघ्नोत्तुङ्ग गिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाम्बुधैर्वाडवो
विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु नः ॥२॥
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ॥३॥
गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।
अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥४॥
अगजाननपद्मार्क गजाननमहर्निशम् ।
अनेकदन्तं भक्तानामेकदन्तमुपास्महे ॥५॥
श्वेताङ्ग श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः !
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनरतिलकं रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जाभयवरमनसं चन्द्रमौलिं !
त्रिनेत्रं ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ॥६॥
आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम् ।
विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥७॥
यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति परं प्रधानं पुरुषं तथाऽन्ये ।
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥८॥
विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणि वन्दीजनैर्मागधकैः स्मृतानि ।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वं ब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व ॥९॥
गणेश हेरम्ब गजाननेति महोदर स्वानुभवप्रकाशिन् ।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथ वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः ॥१०॥
अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्ड स्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति ।
कवीश देवान्तकनाशकारिन् वदन्त एवं त्यजत प्रभीतीः ॥११॥
अनन्तचिद्रूपमयं गणेशं ह्यभेदभेदादिविहीनमाद्यम् ।
हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१२॥
विश्वादिभूतं हृदि योगिनां वै प्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम् ।
सदा निरालम्बसमाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१३॥
यदीयवीर्येण समर्थभूता माया तया संरचितं च विश्वम् ।
नागात्मकं ह्यात्मतया प्रतीतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१४॥
सर्वान्तरे संस्थितमेकमूढं यदाज्ञया सर्वमिदं विभाति ।
अनन्तरूपं हृदि बोधकं वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१५॥
यं योगिनो योगबलेन साध्यं कुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति ।
अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तु तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥१६॥
देवेन्द्रमौलिमन्दारमकरन्दकणारुणाः !
विघ्नान् हरन्तु हेरम्बचरणाम्बुजरेणवः ॥१७॥
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम् ।
विघ्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम् ॥१८॥
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ॥१९॥
इति श्री गणपति स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
निष्कर्ष
श्री गणपति स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन लाता है। यह न केवल विघ्नों को दूर करता है बल्कि आंतरिक शांति, आत्मविश्वास, और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक है। नियमित पाठ से गणेश जी की कृपा बनी रहती है, जिससे जीवन में समृद्धि, शांति, और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
इसलिए, जो लोग अपने जीवन में शांति, सुख, और सफलता की प्राप्ति करना चाहते हैं, उनके लिए श्री गणपति स्तोत्र का नियमित पाठ करना अत्यंत लाभकारी है।
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