श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (PDF)
- गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र अद्वितीय महिमा,
- श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ विधि
- श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ के नियम
- श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ के लाभ
- गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
- विशेष ध्यान दें
- गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ( PDF)
गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् भगवान गणेश के 108 दिव्य नामों का संग्रह है। यह स्तोत्र उनकी अद्वितीय महिमा, शक्ति और अनुग्रह का वर्णन करता है। नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से विघ्न, बाधा और जीवन की समस्याएं समाप्त होती हैं।

श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ विधि
श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र, भगवान गणेश के 108 पवित्र नामों का संग्रह है। इसे पढ़ने की विशेष विधि है, जो पाठक को अधिकतम आध्यात्मिक और लौकिक लाभ प्रदान करती है। इस स्तोत्र का पाठ करते समय सही विधि और भक्ति भाव का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
1. पाठ के लिए आवश्यक सामग्री
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र
- दूर्वा (दूब घास)
- लाल पुष्प (विशेषकर गुड़हल या गुलाब)
- चंदन और कुमकुम
- मोदक, लड्डू या कोई अन्य मिठाई
- धूप, दीपक और घी
- जल से भरा तांबे का कलश
- रोली और अक्षत (सिंदूर मिश्रित चावल)
- शुद्ध आसन (कुश या कपड़े का)
2. पाठ की पूर्व तैयारी
- स्थान का चयन:पूजा का स्थान शांत और स्वच्छ हो।
- स्वयं की शुद्धि:स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। सफेद या पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
- मनोभाव:मन को शांत करें और भगवान गणेश को समर्पित होने का संकल्प लें।
3. पूजा की प्रक्रिया
(1) आसन ग्रहण करें
शुद्ध आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
(2) दीप प्रज्ज्वलन और गणेश ध्यान
- दीपक जलाएं और भगवान गणेश का ध्यान करें।
- निम्न ध्यान मंत्र का पाठ करें:
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
(3) संकल्प लें
गणेश जी के समक्ष अपने मन की कामना व्यक्त करते हुए संकल्प करें:
"हे गणपति, मैं इस स्तोत्र का पाठ अपनी (इच्छित कार्य) की सफलता और समस्त विघ्नों के नाश हेतु कर रहा/रही हूं।"
4. गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ
- प्रारंभ करें:भगवान गणेश के 108 नामों को क्रमशः स्पष्ट उच्चारण और भक्ति से पढ़ें।
- नामों की महत्ता:प्रत्येक नाम भगवान गणेश के विशेष गुणों का वर्णन करता है, इसलिए पाठ करते समय अर्थ का ध्यान रखना लाभकारी होता है।
- पाठ के दौरान अर्पण:
- प्रत्येक नाम के साथ भगवान गणेश को दूर्वा और लाल पुष्प चढ़ाएं।
- पाठ समाप्त होने के बाद, मोदक या मिठाई अर्पित करें।
5. पाठ के बाद की प्रक्रिया
(1) आरती करें
गणेश जी की आरती गाएं, जैसे:
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
(2) प्रसाद वितरण
अर्पित मोदक या मिठाई को प्रसाद के रूप में परिवार और भक्तों में वितरित करें।
(3) प्रार्थना करें
भगवान गणेश से आशीर्वाद मांगें और उनकी कृपा के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें।
6. विशेष ध्यान
- पाठ की अवधि:यदि आप नियमित पाठ करते हैं, तो इसे 6 महीने तक जारी रखें। विशेष इच्छाओं के लिए इसे 1 वर्ष तक प्रतिदिन करें।
- समय:पाठ सूर्योदय के समय करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
- शुभ दिन:चतुर्थी, बुधवार, और गणेशोत्सव के दिनों में पाठ का विशेष महत्व है।
श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ के नियम
भगवान गणेश का अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ एक प्रभावशाली और फलदायी साधना है। इसे करने से पहले कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि इसका पूरा लाभ प्राप्त हो सके।
1. शुद्धता और स्वच्छता का पालन करें
- पाठ से पहले शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध होना आवश्यक है।
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ करें और वहां हल्दी, चंदन, और अगरबत्ती से शुद्धिकरण करें।
2. शुभ मुहूर्त का चयन करें
- बुधवार और चतुर्थी का दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
- सुबह के समय या शाम के समय पूजा करना अधिक फलदायी होता है।
- विशेष अवसरों, जैसे विनायक चतुर्थी या गणेश चतुर्थी पर पाठ करने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
3. आसन और स्थान का ध्यान रखें
- पाठ करते समय साफ आसन (कुश, ऊनी, या कपड़े का) का उपयोग करें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पूजा का स्थान शांत और व्यवस्थित होना चाहिए।
4. सामग्री की तैयारी
- गणेश जी की मूर्ति या चित्र
- दूर्वा (दूब घास), मोदक या लड्डू
- चंदन, रोली, अक्षत, दीपक और अगरबत्ती
- पुष्प, विशेष रूप से लाल या पीले फूल
- जप माला (तुलसी या रुद्राक्ष की)
5. मानसिक शुद्धता और एकाग्रता
- पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखें।
- किसी प्रकार की नकारात्मक सोच या अधीरता से बचें।
- पाठ के दौरान भगवान गणेश का ध्यान करें और उनका आह्वान करें।
6. उच्चारण शुद्धता
- श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र के मंत्रों का उच्चारण सही ढंग से करें।
- यदि संस्कृत श्लोकों का सही उच्चारण कठिन लगे, तो धीमे और ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- पाठ को धीमी और स्थिर गति से करें।
7. समय और नियमितता
- यदि आप किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए पाठ कर रहे हैं, तो एक निश्चित समय और नियम का पालन करें।
- 6 महीने तक प्रतिदिन पाठ करें।
- 1 वर्ष तक पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
- पाठ के बाद श्रद्धा और समर्पण भाव से भगवान गणेश का ध्यान करें।
8. आचरण और नियम पालन
- पाठ के दौरान सात्विक आहार का पालन करें।
- पाठ के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं (मांस, शराब आदि) का सेवन न करें।
- क्रोध, झूठ, और अनैतिक कार्यों से बचें।
9. प्रसाद और भोग अर्पण
- पाठ के बाद भगवान गणेश को दूर्वा, फूल, मोदक, या लड्डू का भोग लगाएं।
- प्रसाद को सभी परिजनों के साथ साझा करें।
विशेष ध्यान रखें
- यदि आप किसी विशेष अनुष्ठान के लिए पाठ कर रहे हैं, तो इसे गुरु या ज्ञानी व्यक्ति से निर्देशित करवा सकते हैं।
- पाठ के दौरान शांत वातावरण बनाए रखें।
इन नियमों का पालन करते हुए श्रद्धा और भक्ति भाव से श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
गणपति बप्पा मोरया!
श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पाठ के लाभ
भगवान गणेश का अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र, जिसमें उनके 108 दिव्य नामों का वर्णन है, एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में बाधाओं का नाश होता है और शुभता का आगमन होता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से सिद्धि और सफलता प्रदान करने वाला माना जाता है।
1. बाधाओं का नाश
- भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस स्तोत्र का पाठ जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करता है।
- नया कार्य आरंभ करने से पहले इस स्तोत्र का पाठ करने से कार्य में सफलता सुनिश्चित होती है।
2. मन की शांति और आत्मबल
- नियमित पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- यह मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक है।
- चिंताओं और भय से मुक्ति मिलती है।
3. स्वास्थ्य लाभ
- इस स्तोत्र के नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- यह रोगों से मुक्ति और आयु में वृद्धि करता है।
4. धन और समृद्धि का आगमन
- जिन लोगों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
- धन, संपत्ति और समृद्धि में वृद्धि होती है।
- व्यवसाय या करियर में प्रगति होती है।
5. शिक्षा और विद्या में सफलता
- विद्यार्थी इस स्तोत्र का पाठ करें तो उन्हें शिक्षा में सफलता और बुद्धि का विकास होता है।
- यह विद्या और ज्ञान की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली है।
6. भय और नकारात्मकता से मुक्ति
- इस स्तोत्र का पाठ करने से भय और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
- व्यक्ति का मन शांत और स्थिर रहता है।
7. मनोकामना पूर्ति
- यह माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति छह महीने तक नियमित इस स्तोत्र का पाठ करे, तो उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वालों को पुत्र सुख मिलता है।
- धन, विद्या, और अन्य इच्छाओं की पूर्ति होती है।
8. सिद्धि और आध्यात्मिक उन्नति
- एक वर्ष तक नियमित पाठ करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है।
- साधक का मन आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होता है और वह आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।
9. गृह क्लेश और विवादों का समाधान
- इस स्तोत्र का पाठ करने से परिवार में शांति और प्रेम बना रहता है।
- गृह क्लेश और आपसी विवादों का समाधान होता है।
10. भगवान गणेश की कृपा और संरक्षण
- यह पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ माध्यम है।
- व्यक्ति को उनके दिव्य संरक्षण का अनुभव होता है।
गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ! Ganesh Ashtottara Shatnam Stotram
यम उवाच
गणेश हेरम्ब गजाननेति महोदर स्वानुभवप्रकाशिन् !
वरिष्ठ ! सिद्धिप्रिय ! बुद्धिनाथ ! वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१॥
अनेकविघ्नान्तक वक्रतुण्ड स्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति ।
कवीश देवान्तकनाशकारिन् ! वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥२॥
महेशसूनो गजदैत्यशत्रो वरेण्यसूनो विकट त्रिनेत्र !।
परेश पृथ्वीधर एकदन्त वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥३॥
प्रमोद मोदेति नरान्तकारे षडूर्मिहन्तर्गजकर्ण ढुण्ढे ! ।
द्वन्द्वारिसिन्धो स्थिरभावकारिन् ! वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥४॥
विनायक ज्ञानविघातशत्रो पराशरस्यात्मज विष्णुपुत्र ! ।
अनादिपूजाऽऽखुग सर्वपूज्य ! वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥५॥
विद्येज्य लम्बोदर धूम्रवर्णं मयूरपालेति मयूरवाहिन् ! ।
सुराऽसुरैः सेवितपादपद्म वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥६॥
वरिन्महाखुध्वज शूर्पकर्ण शिवाज सिंहस्थ अनन्तवाह ! ।
दितौज विघ्नेश्वर शेषनाभे वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥७॥
अणोरणीयो महतो महीयो रवेर्ज योगेशज ज्येष्ठराज ! ।
निधीश मन्त्रेण च शेषपुत्र वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥८॥
वर-प्रदातरदितेश्च सूनो परात्पर ज्ञानद तारवक्त्र ! ।
गुहाग्रज ब्राह्मण पार्श्वपुत्र वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥९॥
सिन्धोश्च शत्रो परशुप्रयाणे शमीश पुष्यप्रिय विघ्नहारिन् ।
दूर्वाभरैरर्चित देवदेव वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१०॥
धियः प्रदातश्च शमीप्रियेति सुसिद्धिदातश्च सुशान्तिदातः ।
अमेय-मायामित-विक्रमेति वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥११॥
द्विधा-चतुर्थीप्रिय कश्यपाच्च धनप्रद ज्ञानपदप्रकाशिन् ।
चिन्तामणे चित्तविहार-कारिन् ! वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१२॥
यमस्य शत्रो ह्यभिमानशत्रो विधेर्जहन्तः कपिलस्य सूनो ।
विदेह स्वानन्दज योगयोग वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१३॥
गणस्य शत्रो कपिलस्य शत्रो समस्तभावज्ञ च भालचन्द्र ! ।
अनादि-मध्यान्तमय प्रचारिन् वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१४॥
विभो जगद्रूप गणेश भूमन् पुष्टः पते आखुगतेति बोधः ।
कर्तुश्च पातुश्च तु संहरेति वदन्तमेवं त्यजत प्रभीताः ॥१५॥
इदमष्टोत्तरशतं नाम्नां तस्य पठन्ति ये।
शृण्वन्ति तेषु वै भीताः कुरुध्वं मा प्रवेशनम् ॥१६॥
भुक्ति-मुक्तिप्रदं ढुण्ढेर्धन-धान्य-प्रवर्धनम् ।
ब्रह्मभूतकरं स्तोत्रं जपन्तं नित्यमादरात् ॥१७॥
यत्र कुत्र गणेशस्य चिह्नयुक्तानि वै भटाः ।
धामानि तत्र संभीताः कुरुध्वं मा प्रवेशनम् ॥१८॥
इति मुद्गलपुराणे यमदूतसंवादे गणेशाऽष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥९॥
- यदि इसे किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जा रहा है, तो संकल्प लेकर इसका पाठ करें।
- पाठ के दौरान भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव रखें।
नियमित रूप से श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। गणपति बप्पा मोरया !
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