श्री गणेश पंचचामर स्तोत्र (पीडीएफ)
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् का महत्व और सरल व्याख्या
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि, बल तथा विद्या के दाता के रूप में पूजा जाता है। उनकी कृपा से साधक के सभी दुख दूर होते हैं और कार्यों में कोई बाधा नहीं आती। गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है और यह स्तोत्र उनकी आराधना के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में रचित है और इसके पाठ से साधक को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् पाठ की विधि
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् का पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है। यह स्तोत्र साधक को बल, बुद्धि, और विघ्नों से मुक्ति प्रदान करता है। इसे विधिपूर्वक पढ़ने से साधक को संपूर्ण लाभ मिलता है। यहां इस स्तोत्र के पाठ की विधि दी गई है:
1. स्नान और शुद्धता
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन, शरीर और वाणी की शुद्धि का ध्यान रखें।
2. पूजा स्थान की तैयारी
किसी पवित्र स्थान पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति के समक्ष एक साफ आसन पर बैठें।
3. पूजन सामग्री
भगवान गणेश को अर्पित करने के लिए निम्नलिखित सामग्री तैयार करें:
- दीपक और अगरबत्ती
- लाल पुष्प या दूर्वा (गणेश जी को दूर्वा विशेष प्रिय है)
- चंदन और सिंदूर
- मोदक या कोई मीठा भोग
- फल एवं जल का पात्र
4. ध्यान और संकल्प
5. दीप प्रज्वलन
6. गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् का पाठ
श्रद्धा और भक्ति के साथ श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् का एकाग्र मन से पाठ करें। प्रत्येक श्लोक का उच्चारण स्पष्ट और ध्यानपूर्वक करें।
7. अर्पण और नैवेद्य
पाठ समाप्ति के बाद भगवान गणेश को मोदक या फल का भोग अर्पित करें और दूर्वा अर्पित करें।
8. प्रार्थना और आभार
स्तोत्र का पाठ समाप्त करने के बाद भगवान गणेश से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन से सभी विघ्न दूर करें और बुद्धि, बल, और समृद्धि का आशीर्वाद दें।
9. आरती और प्रसाद वितरण
अंत में भगवान गणेश की आरती करें और प्रसाद को परिवार के सभी सदस्यों में वितरित करें।
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् के पाठ के नियम
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् का पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। इसका पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करने से साधक को संपूर्ण लाभ मिलता है। ये नियम पाठ की शुद्धता और प्रभाव को बढ़ाते हैं। नीचे इस स्तोत्र के पाठ के नियम दिए गए हैं:
1. शुद्धता और स्वच्छता का ध्यान रखें
- पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- मन, वचन और शरीर की शुद्धि का विशेष ध्यान रखें।
2. पवित्र स्थान का चयन
- किसी पवित्र और शांत स्थान पर बैठकर पाठ करें।
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।
3. आसन का प्रयोग
- पाठ करते समय स्वच्छ आसन का उपयोग करें। यह माना जाता है कि आसन पर बैठकर पाठ करने से एकाग्रता और स्थिरता बनी रहती है।
4. समय का चयन
- प्रातःकाल और संध्या का समय पाठ के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
- विशेष दिनों, जैसे चतुर्थी, मंगलवार और गणेशोत्सव में पाठ का विशेष फल मिलता है।
5. संकल्प
- पाठ से पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए संकल्प लें कि यह पाठ उनके प्रति आपकी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
- संकल्प लेने से पाठ में एकाग्रता बढ़ती है और इसे सही दिशा में किया जाता है।
6. श्रद्धा और भक्ति से पाठ करें
- पाठ करते समय मन को एकाग्र और शांत रखें।
- भगवान गणेश के प्रति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति रखें, क्योंकि मन से किया गया पाठ अधिक प्रभावी होता है।
7. व्रत या उपवास
- यदि संभव हो तो पाठ के दिन उपवास या व्रत रखें, खासकर गणेश चतुर्थी या मंगलवार के दिन।
- यह नियम वैकल्पिक है, लेकिन इससे भगवान गणेश की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
8. दूर्वा और मोदक अर्पण
- पाठ समाप्त होने के बाद गणेश जी को दूर्वा और मोदक का भोग अर्पित करें।
- यह माना जाता है कि भगवान गणेश दूर्वा और मोदक से बहुत प्रसन्न होते हैं।
9. नियमितता
- इस स्तोत्र का नियमित पाठ करें, विशेष रूप से यदि किसी कार्य में सफलता प्राप्त करनी हो।
- यदि आप नित्य पाठ नहीं कर सकते, तो किसी विशेष दिन, जैसे हर मंगलवार या चतुर्थी पर इसका पाठ अवश्य करें।
10. सात्विक भोजन और जीवनशैली
- पाठ वाले दिन सात्विक आहार और संयमित जीवनशैली अपनाएं।
- मांस, मदिरा या तामसिक चीजों से बचें; इससे मन शुद्ध और शांत रहता है, जो भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति में सहायक है।
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्र के लाभ और निष्कर्ष
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्र का पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह स्तोत्र साधक को सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्ति, बुद्धि और शक्ति प्रदान करता है। इसके पाठ से साधक के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि का आगमन होता है।
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्र के लाभ:
सभी प्रकार के विघ्नों का नाश
- श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं, और कार्य में किसी प्रकार की रुकावट नहीं आती। यह स्तोत्र बाधाओं को समाप्त कर सफलता की ओर मार्ग प्रशस्त करता है।
बल, बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद
- गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता माने जाते हैं। इस स्तोत्र का पाठ साधक को विशेष रूप से बुद्धि, विद्या, और बल प्रदान करता है, जो जीवन में निर्णय लेने और कार्य करने की क्षमता को बढ़ाता है।
सुख, शांति और समृद्धि का वरदान
- भगवान गणेश की कृपा से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। गणेश जी की आराधना करने से साधक के घर में खुशहाली का वातावरण बना रहता है।
विचारों और मन की शुद्धि
- इस स्तोत्र का पाठ साधक के मन को शुद्ध करता है, जिससे मन की एकाग्रता बढ़ती है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं। यह आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन में सहायक होता है।
विशेष कार्यों में सफलता
- मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य या नए प्रयास से पहले इस स्तोत्र का पाठ करने से कार्य में सफलता मिलती है। यह स्तोत्र कार्य की बाधाओं को दूर करता है और साधक को सफलता प्राप्ति में सहायक होता है।
गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्ति
- गणेश पञ्चचामर स्तोत्र का पाठ करने से भगवान गणेश की विशेष कृपा साधक पर होती है, जिससे उसे जीवन में सभी प्रकार की समृद्धि, बुद्धि, और सफलता प्राप्त होती है।
गणेश पञ्चचामर स्तोत्रम् | Ganesh Panchachamar Stotram
श्रीगणेशाय नमः ।
ललाट-पट्टलुण्ठितामलेन्दु-रोचिरुद्भटे
वृताति-वर्चरस्वरोत्सररत्किरीट-तेजसि ।
फटाफटत्फटत्स्फुरत्फणाभयेन भोगिनां
शिवाङ्कतः शिवाङ्कमाश्रयच्छिशौ रतिर्मम ॥ १॥
अदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजाभुजङ्गफूत्कृती-
र्निजाङ्कमानिनीषतो निशम्य नन्दिनः पितुः ।
त्रसत्सुसङ्कुचन्तमम्बिका-कुचान्तरं यथा
विशन्तमद्य बालचन्द्रभालबालकं भजे ॥ २॥
विनादिनन्दिने सविभ्रमं पराभ्रमन्मुख-
स्वमातृवेणिमागतां स्तनं निरीक्ष्य सम्भ्रमात् ।
भुजङ्ग-शङ्कया परेत्यपित्र्यमङ्कमागतं
ततोऽपि शेषफूत्कृतैः कृतातिचीत्कृतं नमः ॥ ३॥
विजृम्भमाणनन्दि-घोरघोण-घुर्घुरध्वनि-
प्रहास-भासिताशमम्बिका-समृद्धि-वर्धिनम् ।
उदित्वर-प्रसृत्वर-क्षरत्तर-प्रभाभर-
प्रभातभानु-भास्वरं भवस्वसम्भवं भजे ॥ ४॥
अलङ्गृहीत-चामरामरी जनातिवीजन-
प्रवातलोलि-तालकं नवेन्दुभालबालकम् ।
विलोलदुल्ललल्ललाम-शुण्डदण्ड-मण्डितं
सतुण्ड-मुण्डमालि-वक्रतुण्डमीड्यमाश्रये ॥ ५॥
प्रफुल्ल-मौलिमाल्य-मल्लिकामरन्द-लेलिहा
मिलन् निलिन्द-मण्डलीच्छलेन यं स्तवीत्यमम् ।
त्रयीसमस्तवर्णमालिका शरीरिणीव तं
सुतं महेशितुर्मतङ्गजाननं भजाम्यहम् ॥ ६॥
प्रचण्ड-विघ्न-खण्डनैः प्रबोधने सदोद्धुरः
समर्द्धि-सिद्धिसाधनाविधा-विधानबन्धुरः ।
सबन्धुरस्तु मे विभूतये विभूतिपाण्डुरः
पुरस्सरः सुरावलेर्मुखानुकारिसिन्धुरः ॥ ७॥
अराल-शैलबालिका-ऽलकान्तकान्त-चन्द्रमो-
जकान्तिसौध-माधयन् मनोऽनुराधयन् गुरोः ।
सुसाध्य-साधवं धियां धनानि साधयन्नय-
नशेषलेखनायको विनायको मुदेऽस्तु नः ॥ ८॥
रसाङ्गयुङ्ग-नवेन्दु-वत्सरे शुभे गणेशितु-
स्तिथौ गणेशपञ्चचामरं व्यधादुमापतिः ।
पतिः कविव्रजस्य यः पठेत् प्रतिप्रभातकं
स पूर्णकामनो भवेदिभानन-प्रसादभाक् ॥ ९॥
छात्रत्वे वसता काश्यां विहितेयं यतः स्तुतिः ।
ततश्छात्रैरधीतेयं वैदुष्यं वर्द्धयेद्धिया ॥ १०॥
॥ इति श्रीकविपत्युपनामक-उमापतिशर्मद्विवेदि-विरचितं
गणेश पञ्च चामर स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
निष्कर्ष:
श्री गणेश पञ्चचामर स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। इसके नियमित पाठ से साधक को हर प्रकार के विघ्नों से मुक्ति मिलती है, और जीवन में शुभता का संचार होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक के मनोबल में वृद्धि होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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