श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र PDF
विषय सूची
- श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र का महत्व
- शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ की विधि
- शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के नियम
- शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के लाभ
- श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र
- निष्कर्ष
- श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र ( PDF )
शिव सहस्रनाम स्तोत्र शिव के एक हजार पवित्र नामों का संग्रह है। प्रत्येक नाम भगवान शिव के विभिन्न गुणों, शक्तियों और विशेषताओं को दर्शाता है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए एक अनमोल रत्न है जो भगवान शिव का गहन ध्यान करना चाहते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करना चाहते हैं। यहाँ इस स्तोत्र का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है:
श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र का महत्व
शिव सहस्रनाम स्तोत्र, हिन्दू धर्म में अद्वितीय स्थान रखता है। इसकी महिमा और प्रभाव हर युग में मान्यता प्राप्त है। यह स्तोत्र इस धारणा पर आधारित है कि शिव अपने भक्तों के संकट को दूर करते हैं और उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद देते हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ शांति, समृद्धि और आत्मिक शुद्धि के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी साधना मानी जाती है। इसे सही विधि से करने पर जीवन में शांति, समृद्धि और कल्याण प्राप्त होता है। नीचे शिव सहस्रनाम स्तोत्र के पाठ की विधि बताई गई है:
शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ की विधि
स्नान और शुद्धिकरण:
- सबसे पहले स्नान करके तन और मन को शुद्ध करें। स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पाठ के स्थान को भी शुद्ध जल से स्वच्छ कर लें और एक पवित्र आसन पर बैठ जाएँ।
पूजा स्थल की तैयारी:
- भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग को किसी पवित्र स्थान पर रखें। उस स्थान को फूलों से सजाएँ।
- एक साफ आसन पर बैठें और पूजा की सामग्री (पुष्प, चंदन, धूप, दीपक, पंचामृत, गंगा जल, बिल्वपत्र आदि) अपने पास रखें।
पंचोपचार पूजा:
- भगवान शिव का पंचोपचार पूजा (गंध, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य) करें।
- शिवलिंग का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से अभिषेक करें और फिर गंगा जल से स्नान कराएँ।
संकल्प:
- पाठ शुरू करने से पहले संकल्प लें। संकल्प में भगवान शिव से अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने का उद्देश्य बताएं।
ध्यान और ध्यान मंत्र:
- कुछ समय के लिए भगवान शिव का ध्यान करें और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें, ताकि मन शांत और एकाग्र हो सके।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ:
- पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ प्रारंभ करें।
- यदि संपूर्ण पाठ संभव न हो तो जितना पाठ हो सके, उतना करें। इसका पाठ करना भगवान शिव के प्रति श्रद्धा अर्पित करना है, इसलिए इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें।
आरती:
- पाठ समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती करें। आरती में दीप जलाकर शिव जी की आराधना करें।
- "ॐ जय शिव ओंकारा" या "जय शिव ओंकार" जैसी आरती गा सकते हैं।
प्रसाद वितरण:
- भगवान शिव को नैवेद्य अर्पण करें (जो भी भोग लगाना चाहें, जैसे फल, मिठाई)।
- पूजा समाप्ति के बाद, प्रसाद को सभी भक्तों में वितरित करें।
क्षमा प्रार्थना:
- अंत में भगवान शिव से प्रार्थना करें कि यदि पूजा में कोई भूल-चूक हो गई हो तो उसे क्षमा करें।
प्रणाम:
- हाथ जोड़कर भगवान शिव को प्रणाम करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
विशेष दिन और समय
- शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से सोमवार, शिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि, या प्रदोष व्रत के दिन करना शुभ माना जाता है।
- इसे ब्रह्ममुहूर्त या प्रातःकाल में करना अधिक फलदायक होता है, परंतु किसी भी समय श्रद्धा से किया गया पाठ भी लाभकारी होता है।
संकल्पना:
सहस्रनाम का पाठ करने का उद्देश्य भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना है। जब इसे भक्ति और पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है, तो यह मन को शांति और संतोष देता है।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के नियम (Niyam):
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ बहुत ही पवित्र और श्रद्धा भाव से करना चाहिए, ताकि इसके प्रभाव को ठीक से अनुभव किया जा सके। इसके लिए कुछ विशेष नियम (Niyam) होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। ये नियम पाठ की पवित्रता और प्रभाव को बढ़ाने में मदद करते हैं।
1. पवित्रता और शुद्धता:
- शिव सहस्रनाम का पाठ करने से पहले स्नान करके शुद्ध हो जाएं।
- स्वच्छ और पवित्र वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थल को भी शुद्ध और स्वच्छ रखें।
2. ध्यान और एकाग्रता:
- पाठ के दौरान मन को एकाग्र करना बहुत आवश्यक है। किसी भी तरह की मानसिक या बाहरी विकृति से बचें।
- शिव के ध्यान में मन को लगाएं और "ॐ नमः शिवाय" का जाप करें ताकि ध्यान में स्थिरता बनी रहे।
3. समय का निर्धारण:
- शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से ब्रह्ममुहूर्त (प्रातः काल) में करना शुभ माना जाता है, जब वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है।
- यदि ब्रह्ममुहूर्त में नहीं कर पा रहे हैं तो संध्या वेला (शाम का समय) में भी पाठ किया जा सकता है।
- शिवरात्रि और सोमवार को विशेष रूप से इसका पाठ अधिक लाभकारी होता है।
4. संकल्प लेना:
- पाठ प्रारंभ करने से पहले एक संकल्प लें कि आप यह पाठ भगवान शिव के आशीर्वाद और आंतरिक शांति के लिए कर रहे हैं।
- संकल्प में यह भी बताएं कि आप जो भी पाप या भूलें की हों, उन्हें दूर करने के लिए यह पाठ कर रहे हैं।
5. शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति का पूजन:
- पाठ से पहले भगवान शिव का पूजन करना आवश्यक है।
- यदि शिवलिंग या मूर्ति है तो उसका पंचामृत से अभिषेक करें।
- अगर मूर्ति नहीं है तो चित्र या शुद्ध जल में शिव का ध्यान करें।
6. पाठ का क्रम:
- शिव सहस्रनाम का पाठ पूरी श्रद्धा और एकाग्रता से करना चाहिए। यह स्तोत्र 1000 नामों का संग्रह है, इसलिए इसे बिना किसी जल्दीबाजी के ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- पाठ के दौरान कुछ भी बीच में न बोलें, न कोई अन्य कार्य करें।
7. कम से कम 1 नाम का उच्चारण:
- अगर पूरी सहस्रनाम का पाठ एक साथ करना कठिन हो तो कम से कम 1 या 5 नामों का जाप करें।
- 1000 नामों का जाप अगर एक दिन में न हो पाए तो इसे कई दिनों में भी विभाजित किया जा सकता है।
8. मौन और मंत्रजाप:
- पाठ में अधिक से अधिक मंत्रजाप करें और अगर संभव हो तो मौन में पाठ करें। मौन से चित्त एकाग्र रहता है।
- ॐ नमः शिवाय का जाप पाठ से पहले और बाद में करें।
9. फल की इच्छा न रखें:
- शिव सहस्रनाम का पाठ करते समय किसी विशेष फल की इच्छा न रखें। इसे पूर्ण रूप से भगवान शिव की पूजा और उनकी भक्ति के रूप में करें।
- फल की इच्छा से मुक्त होकर पाठ करना अधिक शुभ और लाभकारी होता है।
10. अवधान और निरंतरता:
- पाठ के दौरान कोई भी विघ्न न आए, इसके लिए आपको पूरी तरह से अपने कार्य में अवधान रखना चाहिए।
- नियमित रूप से पाठ करना अधिक लाभकारी होता है, विशेषकर मासिक शिवरात्रि के दिन, या हर सोमवार को पाठ करने से विशेष लाभ होता है।
11. प्रसाद और आरती:
- पाठ समाप्ति के बाद भगवान शिव का आभार व्यक्त करें।
- बिल्वपत्र, फल, मिष्ठान आदि अर्पित करें और फिर प्रसाद वितरण करें।
- भगवान शिव की आरती भी गाएं या फिर उनका ध्यान करें।
12. पाठ के बाद सद्गति की कामना:
- पाठ समाप्त होने के बाद, भगवान शिव से अपने जीवन में सद्गति और उनके आशीर्वाद की कामना करें।
इन नियमों का पालन करके शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को मानसिक शांति, आत्मिक बल, और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।
शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के लाभ:
शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावकारी माना जाता है। इसके पाठ से व्यक्ति को आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक दृष्टि से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इस स्तोत्र के 1000 नामों में भगवान शिव की महिमा का गहरा आशीर्वाद निहित होता है, और इनके उच्चारण से कई प्रकार की बाधाओं और समस्याओं का समाधान हो सकता है।
1. मन की शांति और मानसिक संतुलन:
- शिव सहस्रनाम का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है। यह व्यक्ति के मन को स्थिर और शांत करने में मदद करता है। इसके जाप से मानसिक तनाव, चिंता, और घबराहट दूर होती है।
- मन की एकाग्रता बढ़ती है और आत्मनिर्भरता का अहसास होता है।
2. पापों का नाश और मुक्ति:
- शिव सहस्रनाम का पाठ पापों के नाश के लिए अत्यंत प्रभावी है। यह व्यक्ति के द्वारा किए गए सभी पापों को शुद्ध करता है और उसे मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है।
- इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को पुण्य प्रदान करता है और उसे जीवन के बुरे कर्मों से मुक्त करता है।
3. दुरभाग्य और विघ्नों का नाश:
- यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन से सभी विघ्नों, कठिनाइयों और दुरभाग्य को दूर करता है।
- इसके जाप से राह की सभी अड़चनें दूर होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
- यह व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक कष्टों से उबारता है।
4. आध्यात्मिक उन्नति:
- शिव सहस्रनाम के नियमित पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह व्यक्ति को भगवान शिव की उपासना में समर्पित करता है और उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
- इससे भक्ति भाव में वृद्धि होती है और जीवन में शांति का अनुभव होता है।
5. धन-धान्य की वृद्धि:
- इस स्तोत्र का जाप धन और समृद्धि को आकर्षित करता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुधरती है और उसे अपार धन की प्राप्ति होती है।
- यह व्यवसायिक और नौकरी के क्षेत्र में भी उन्नति के रास्ते खोलता है।
6. स्वास्थ्य लाभ:
- शिव सहस्रनाम का जाप शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक है। यह शरीर को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है।
- खासकर जब शरीर में थकावट या कमजोरी महसूस होती है, तो यह मानसिक और शारीरिक ऊर्जा को पुनः सक्रिय करता है।
7. शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना:
- इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि मिलती है।
- यह स्तोत्र व्यक्ति को शिव के भक्तों में शामिल करता है और जीवन को धर्म, सत्य और पवित्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
8. शक्ति, वीरता, और साहस:
- शिव सहस्रनाम का पाठ व्यक्ति के भीतर अद्भुत साहस और वीरता का संचार करता है। यह उसे जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
- इससे व्यक्ति में आंतरिक शक्ति का विकास होता है, जो उसे किसी भी मुश्किल से जूझने में सक्षम बनाता है।
9. दृष्टिकोण में बदलाव:
- शिव सहस्रनाम का पाठ व्यक्ति के दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाता है। इसके जाप से आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्ति जीवन के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाता है।
- यह व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता पाने की प्रेरणा देता है और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने की क्षमता प्रदान करता है।
10. मोक्ष की प्राप्ति:
- शिव सहस्रनाम का निरंतर जाप व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है। यह व्यक्ति को संसारिक बंधनों से मुक्त करता है और आत्मा को परमात्मा से मिलाने में सहायता करता है।
- इसे शरणागत वत्सल शिव का नाम जाप करने से व्यक्ति का जीवन पवित्र और धार्मिक बनता है, और उसे मुक्ति की ओर अग्रसर होने का मार्ग मिलता है।
11. संस्कार और परिवार में सुख-शांति:
- यह पाठ परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाता है। घर में आनंद और प्रेम का वातावरण बना रहता है।
- परिवार में किसी प्रकार के विवाद और तनाव का समाधान हो सकता है।
श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र ! Shri Shiv Sahasranama Stotra
ध्यानम् ।
शान्तं पद्मासनस्थं शशिधरमकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
शूलं वज्रं च खड्गं परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तं ।
नागं पाशं च घण्टां प्रलयहुतवहं चाङ्कुशं वामभागे
नानालङ्कारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥
स्तोत्रम् ।
ओं स्थिरः स्थाणुः प्रभुर्भीमः प्रवरो वरदो वरः ।
सर्वात्मा सर्वविख्यातः सर्वः सर्वकरो भवः ॥ 1 ॥
जटी चर्मी शिखण्डी च सर्वाङ्गः सर्वभावनः ।
हरश्च हरिणाक्षश्च सर्वभूतहरः प्रभुः ॥ 2 ॥
प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च नियतः शाश्वतो ध्रुवः ।
श्मशानवासी भगवान् खचरो गोचरोऽर्दनः ॥ 3 ॥
अभिवाद्यो महाकर्मा तपस्वी भूतभावनः ।
उन्मत्तवेषप्रच्छन्नः सर्वलोकप्रजापतिः ॥ 4 ॥
महारूपो महाकायो वृषरूपो महायशाः ।
महात्मा सर्वभूतात्मा विश्वरूपो महाहनुः ॥ 5 ॥
लोकपालोऽन्तर्हितात्मा प्रसादो हयगर्दभिः ।
पवित्रं च महांश्चैव नियमो नियमाश्रितः ॥ 6 ॥
सर्वकर्मा स्वयम्भूत आदिरादिकरो निधिः ।
सहस्राक्षो विशालाक्षः सोमो नक्षत्रसाधकः ॥ 7 ॥
चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुर्ग्रहो ग्रहपतिर्वरः ।
अत्रिरत्र्यानमस्कर्ता मृगबाणार्पणोऽनघः ॥ 8 ॥
महातपा घोरतपा अदीनो दीनसाधकः ।
संवत्सरकरो मन्त्रः प्रमाणं परमं तपः ॥ 9 ॥
योगी योज्यो महाबीजो महारेता महाबलः ।
सुवर्णरेताः सर्वज्ञः सुबीजो बीजवाहनः ॥ 10 ॥
दशबाहुस्त्वनिमिषो नीलकण्ठ उमापतिः ।
विश्वरूपः स्वयंश्रेष्ठो बलवीरोऽबलो गणः ॥ 11 ॥
गणकर्ता गणपतिर्दिग्वासाः काम एव च ।
मन्त्रवित्परमोमन्त्रः सर्वभावकरो हरः ॥ 12 ॥
कमण्डलुधरो धन्वी बाणहस्तः कपालवान् ।
अशनी शतघ्नी खड्गी पट्टिशी चायुधी महान् ॥ 13 ॥
स्रुवहस्तः सुरूपश्च तेजस्तेजस्करो निधिः ।
उष्णीषी च सुवक्त्रश्च उदग्रो विनतस्तथा ॥ 14 ॥
दीर्घश्च हरिकेशश्च सुतीर्थः कृष्ण एव च ।
सृगालरूपः सिद्धार्थो मुण्डः सर्वशुभङ्करः ॥ 15 ॥
अजश्च बहुरूपश्च गन्धधारी कपर्द्यपि ।
ऊर्ध्वरेता ऊर्ध्वलिङ्ग ऊर्ध्वशायी नभस्स्थलः ॥ 16 ॥
त्रिजटी चीरवासाश्च रुद्रः सेनापतिर्विभुः ।
अहश्चरो नक्तञ्चरस्तिग्ममन्युः सुवर्चसः ॥ 17 ॥
गजहा दैत्यहा कालो लोकधाता गुणाकरः ।
सिंहशार्दूलरूपश्च आर्द्रचर्माम्बरावृतः ॥ 18 ॥
कालयोगी महानादः सर्वकामश्चतुष्पथः ।
निशाचरः प्रेतचारी भूतचारी महेश्वरः ॥ 19 ॥
बहुभूतो बहुधरः स्वर्भानुरमितो गतिः ।
नृत्यप्रियो नित्यनर्तो नर्तकः सर्वलालसः ॥ 20 ॥
घोरो महातपाः पाशो नित्यो गिरिरुहो नभः ।
सहस्रहस्तो विजयो व्यवसायो ह्यतन्द्रितः ॥ 21 ॥
अधर्षणो धर्षणात्मा यज्ञहा कामनाशकः ।
दक्षयागापहारी च सुसहो मध्यमस्तथा ॥ 22 ॥
तेजोपहारी बलहा मुदितोऽर्थोऽजितो वरः ।
गम्भीरघोषो गम्भीरो गम्भीरबलवाहनः ॥ 23 ॥
न्यग्रोधरूपो न्यग्रोधो वृक्षकर्णस्थितिर्विभुः ।
सुतीक्ष्णदशनश्चैव महाकायो महाननः ॥ 24 ॥
विष्वक्सेनो हरिर्यज्ञः सम्युगापीडवाहनः ।
तीक्ष्णतापश्च हर्यश्वः सहायः कर्मकालवित् ॥ 25 ॥
विष्णुप्रसादितो यज्ञः समुद्रो बडबामुखः ।
हुताशनसहायश्च प्रशान्तात्मा हुताशनः ॥ 26 ॥
उग्रतेजा महातेजा जन्यो विजयकालवित् ।
ज्योतिषामयनं सिद्धिः सर्वविग्रह एव च ॥ 27 ॥
शिखी मुण्डी जटी ज्वाली मूर्तिजो मूर्धगो बली ।
वेणवी पणवी ताली खली कालकटङ्कटः ॥ 28 ॥
नक्षत्रविग्रहमतिर्गुणबुद्धिर्लयोऽगमः ।
प्रजापतिर्विश्वबाहुर्विभागः सर्वगोमुखः ॥ 29 ॥
विमोचनः सुसरणो हिरण्यकवचोद्भवः ।
मेघजो बलचारी च महीचारी स्रुतस्तथा ॥ 30 ॥
सर्वतूर्यनिनादी च सर्वातोद्यपरिग्रहः ।
व्यालरूपो गुहावासी गुहो माली तरङ्गवित् ॥ 31 ॥
त्रिदशस्त्रिकालधृक्कर्मसर्वबन्धविमोचनः ।
बन्धनस्त्वसुरेन्द्राणां युधिशत्रुविनाशनः ॥ 32 ॥
साङ्ख्यप्रसादो दुर्वासाः सर्वसाधुनिषेवितः ।
प्रस्कन्दनो विभागज्ञो अतुल्यो यज्ञभागवित् ॥ 33 ॥
सर्ववासः सर्वचारी दुर्वासा वासवोऽमरः ।
हैमो हेमकरो यज्ञः सर्वधारी धरोत्तमः ॥ 34 ॥
लोहिताक्षो महाक्षश्च विजयाक्षो विशारदः ।
सङ्ग्रहो निग्रहः कर्ता सर्पचीरनिवासनः ॥ 35 ॥
मुख्योऽमुख्यश्च देहश्च काहलिः सर्वकामदः ।
सर्वकालप्रसादश्च सुबलो बलरूपधृक् ॥ 36 ॥
सर्वकामवरश्चैव सर्वदः सर्वतोमुखः ।
आकाशनिर्विरूपश्च निपाती ह्यवशः खगः ॥ 37 ॥
रौद्ररूपोऽंशुरादित्यो बहुरश्मिः सुवर्चसी ।
वसुवेगो महावेगो मनोवेगो निशाचरः ॥ 38 ॥
सर्ववासी श्रियावासी उपदेशकरोऽकरः ।
मुनिरात्मनिरालोकः सम्भग्नश्च सहस्रदः ॥ 39 ॥
पक्षी च पक्षरूपश्च अतिदीप्तो विशाम्पतिः ।
उन्मादो मदनः कामो ह्यश्वत्थोऽर्थकरो यशः ॥ 40 ॥
वामदेवश्च वामश्च प्राग्दक्षिणश्च वामनः ।
सिद्धयोगी महर्षिश्च सिद्धार्थः सिद्धसाधकः ॥ 41 ॥
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च विपणो मृदुरव्ययः ।
महासेनो विशाखश्च षष्ठिभागो गवाम्पतिः ॥ 42 ॥
वज्रहस्तश्च विष्कम्भी चमूस्तम्भन एव च ।
वृत्तावृत्तकरस्तालो मधुर्मधुकलोचनः ॥ 43 ॥
वाचस्पत्यो वाजसनो नित्याश्रमपूजितः ।
ब्रह्मचारी लोकचारी सर्वचारी विचारवित् ॥ 44 ॥
ईशान ईश्वरः कालो निशाचारी पिनाकवान् ।
निमित्तस्थो निमित्तं च नन्दिर्नन्दिकरो हरिः ॥ 45 ॥
नन्दीश्वरश्च नन्दी च नन्दनो नन्दिवर्धनः ।
भगहारी निहन्ता च कालो ब्रह्मपितामहः ॥ 46 ॥
चतुर्मुखो महालिङ्गश्चारुलिङ्गस्तथैव च ।
लिङ्गाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः ॥ 47 ॥
बीजाध्यक्षो बीजकर्ता अध्यात्माऽनुगतो बलः ।
इतिहासः सकल्पश्च गौतमोऽथ निशाकरः ॥ 48 ॥
दम्भो ह्यदम्भो वैदम्भो वश्यो वशकरः कलिः ।
लोककर्ता पशुपतिर्महाकर्ता ह्यनौषधः ॥ 49 ॥
अक्षरं परमं ब्रह्म बलवच्छक्र एव च ।
नीतिर्ह्यनीतिः शुद्धात्मा शुद्धो मान्यो गतागतः ॥ 50 ॥
बहुप्रसादः सुस्वप्नो दर्पणोऽथ त्वमित्रजित् ।
वेदकारो मन्त्रकारो विद्वान् समरमर्दनः ॥ 51 ॥
महामेघनिवासी च महाघोरो वशीकरः ।
अग्निज्वालो महाज्वालो अतिधूम्रो हुतो हविः ॥ 52 ॥
वृषणः शङ्करो नित्यं वर्चस्वी धूमकेतनः ।
नीलस्तथाऽङ्गलुब्धश्च शोभनो निरवग्रहः ॥ 53 ॥
स्वस्तिदः स्वस्तिभावश्च भागी भागकरो लघुः ।
उत्सङ्गश्च महाङ्गश्च महागर्भपरायणः ॥ 54 ॥
कृष्णवर्णः सुवर्णश्च इन्द्रियं सर्वदेहिनाम् ।
महापादो महाहस्तो महाकायो महायशाः ॥ 55 ॥
महामूर्धा महामात्रो महानेत्रो निशालयः ।
महान्तको महाकर्णो महोष्ठश्च महाहनुः ॥ 56 ॥
महानासो महाकम्बुर्महाग्रीवः श्मशानभाक् ।
महावक्षा महोरस्को ह्यन्तरात्मा मृगालयः ॥ 57 ॥
लम्बनो लम्बितोष्ठश्च महामायः पयोनिधिः ।
महादन्तो महादम्ष्ट्रो महाजिह्वो महामुखः ॥ 58 ॥
महानखो महारोमा महाकोशो महाजटः ।
प्रसन्नश्च प्रसादश्च प्रत्ययो गिरिसाधनः ॥ 59 ॥
स्नेहनोऽस्नेहनश्चैव अजितश्च महामुनिः ।
वृक्षाकारो वृक्षकेतुरनलो वायुवाहनः ॥ 60 ॥
गण्डली मेरुधामा च देवाधिपतिरेव च ।
अथर्वशीर्षः सामास्य ऋक्सहस्रामितेक्षणः ॥ 61 ॥
यजुः पादभुजो गुह्यः प्रकाशो जङ्गमस्तथा ।
अमोघार्थः प्रसादश्च अभिगम्यः सुदर्शनः ॥ 62 ॥
उपकारः प्रियः सर्वः कनकः काञ्चनच्छविः ।
नाभिर्नन्दिकरो भावः पुष्करः स्थपतिः स्थिरः ॥ 63 ॥
द्वादशस्त्रासनश्चाद्यो यज्ञो यज्ञसमाहितः ।
नक्तं कलिश्च कालश्च मकरः कालपूजितः ॥ 64 ॥
सगणो गणकारश्च भूतवाहनसारथिः ।
भस्मशयो भस्मगोप्ता भस्मभूतस्तरुर्गणः ॥ 65 ॥
लोकपालस्तथालोको महात्मा सर्वपूजितः ।
शुक्लस्त्रिशुक्लः सम्पन्नः शुचिर्भूतनिषेवितः ॥ 66 ॥
आश्रमस्थः क्रियावस्थो विश्वकर्ममतिर्वरः ।
विशालशाखस्ताम्रोष्ठो ह्यम्बुजालः सुनिश्चलः ॥ 67 ॥
कपिलः कपिशः शुक्लः आयुश्चैव परोः ।
गन्धर्वो ह्यदितिस्तार्क्ष्यः सुविज्ञेयः सुशारदः ॥ 68 ॥
परश्वधायुधो देवः ह्यनुकारी सुबान्धवः ।
तुम्बवीणो महाक्रोध ऊर्ध्वरेता जलेशयः ॥ 69 ॥
उग्रो वंशकरो वंशो वंशनादो ह्यनिन्दितः ।
सर्वाङ्गरूपो मायावी सुहृदो ह्यनिलोऽनलः ॥ 70 ॥
बन्धनो बन्धकर्ता च सुबन्धनविमोचनः ।
सयज्ञारिः सकामारिर्महादम्ष्ट्रो महायुधः ॥ 71 ॥
बहुधानिन्दितः शर्वः शङ्करः शङ्करोऽधनः ।
अमरेशो महादेवो विश्वदेवः सुरारिहा ॥ 72 ॥
अहिर्बुध्न्योऽनिलाभश्च चेकितानो हरिस्तथा ।
अजैकपाच्च कापाली त्रिशङ्कुरजितः शिवः ॥ 73 ॥
धन्वन्तरिर्धूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।
धाता शक्रश्च विष्णुश्च मित्रस्त्वष्टा ध्रुवो धरः ॥ 74 ॥
प्रभावः सर्वगो वायुरर्यमा सविता रविः ।
उषङ्गुश्च विधाता च मान्धाता भूतभावनः ॥ 75 ॥
विभुर्वर्णविभावी च सर्वकामगुणावहः ।
पद्मनाभो महागर्भश्चन्द्रवक्त्रोऽनिलोऽनलः ॥ 76 ॥
बलवांश्चोपशान्तश्च पुराणः पुण्यचञ्चुरी ।
कुरुकर्ता कुरुवासी कुरुभूतो गुणौषधः ॥ 77 ॥
सर्वाशयो दर्भचारी सर्वेषां प्राणिनाम्पतिः ।
देवदेवः सुखासक्तः सदसत्सर्वरत्नवित् ॥ 78 ॥
कैलासगिरिवासी च हिमवद्गिरिसंश्रयः ।
कूलहारी कूलकर्ता बहुविद्यो बहुप्रदः ॥ 79 ॥
वणिजो वर्धकी वृक्षो वकुलश्चन्दनछ्छदः ।
सारग्रीवो महाजत्रुरलोलश्च महौषधः ॥ 80 ॥
सिद्धार्थकारी सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तरः ।
सिंहनादः सिंहदम्ष्ट्रः सिंहगः सिंहवाहनः ॥ 81 ॥
प्रभावात्मा जगत्कालस्थालो लोकहितस्तरुः ।
सारङ्गो नवचक्राङ्गः केतुमाली सभावनः ॥ 82 ॥
भूतालयो भूतपतिरहोरात्रमनिन्दितः ॥ 83 ॥
वाहिता सर्वभूतानां निलयश्च विभुर्भवः ।
अमोघः सम्यतो ह्यश्वो भोजनः प्राणधारणः ॥ 84 ॥
धृतिमान् मतिमान् दक्षः सत्कृतश्च युगाधिपः ।
गोपालिर्गोपतिर्ग्रामो गोचर्मवसनो हरिः ॥ 85 ॥
हिरण्यबाहुश्च तथा गुहापालः प्रवेशिनाम् ।
प्रकृष्टारिर्महाहर्षो जितकामो जितेन्द्रियः ॥ 86 ॥
गान्धारश्च सुवासश्च तपस्सक्तो रतिर्नरः ।
महागीतो महानृत्यो ह्यप्सरोगणसेवितः ॥ 87 ॥
महाकेतुर्महाधातुर्नैकसानुचरश्चलः ।
आवेदनीय आदेशः सर्वगन्धसुखावहः ॥ 88 ॥
तोरणस्तारणो वातः परिधीपतिखेचरः ।
सम्योगो वर्धनो वृद्धो ह्यतिवृद्धो गुणाधिकः ॥ 89 ॥
नित्य आत्मा सहायश्च देवासुरपतिः पतिः ।
युक्तश्च युक्तबाहुश्च देवो दिवि सुपर्वणः ॥ 90 ॥
आषाढश्च सुषाढश्च ध्रुवोऽथ हरिणो हरः ।
वपुरावर्तमानेभ्यो वसुश्रेष्ठो महापथः ॥ 91 ॥
शिरोहारी विमर्शश्च सर्वलक्षणलक्षितः ।
अक्षश्च रथयोगी च सर्वयोगी महाबलः ॥ 92 ॥
समाम्नायोऽसमाम्नायस्तीर्थदेवो महारथः ।
निर्जीवो जीवनो मन्त्रः शुभाक्षो बहुकर्कशः ॥ 93 ॥
रत्नप्रभूतो रक्ताङ्गो महार्णवनिपानवित् ।
मूलं विशालो ह्यमृतो व्यक्ताव्यक्तस्तपोनिधिः ॥ 94 ॥
आरोहणोऽधिरोहश्च शीलधारी महायशाः ।
सेनाकल्पो महाकल्पो योगो योगकरो हरिः ॥ 95 ॥
युगरूपो महारूपो महानागहनो वधः ।
न्यायनिर्वपणः पादः पण्डितो ह्यचलोपमः ॥ 96 ॥
बहुमालो महामालः शशी हरसुलोचनः ।
विस्तारो लवणः कूपस्त्रियुगः सफलोदयः ॥ 97 ॥
त्रिलोचनो विषण्णाङ्गो मणिविद्धो जटाधरः ।
बिन्दुर्विसर्गः सुमुखः शरः सर्वायुधः सहः ॥ 98 ॥
निवेदनः सुखाजातः सुगन्धारो महाधनुः ।
गन्धपाली च भगवानुत्थानः सर्वकर्मणाम् ॥ 99 ॥
मन्थानो बहुलो वायुः सकलः सर्वलोचनः ।
तलस्तालः करस्थाली ऊर्ध्वसंहननो महान् ॥ 100 ॥
छत्रं सुछत्रो विख्यातो लोकः सर्वाश्रयः क्रमः ।
मुण्डो विरूपो विकृतो दण्डी कुण्डी विकुर्वणः ॥ 101 ॥
हर्यक्षः ककुभो वज्री शतजिह्वः सहस्रपात् ।
सहस्रमूर्धा देवेन्द्रः सर्वदेवमयो गुरुः ॥ 102 ॥
सहस्रबाहुः सर्वाङ्गः शरण्यः सर्वलोककृत् ।
पवित्रं त्रिककुन्मन्त्रः कनिष्ठः कृष्णपिङ्गलः ॥ 103 ॥
ब्रह्मदण्डविनिर्माता शतघ्नी पाशशक्तिमान् ।
पद्मगर्भो महागर्भो ब्रह्मगर्भो जलोद्भवः ॥ 104 ॥
गभस्तिर्ब्रह्मकृद्ब्रह्मी ब्रह्मविद्ब्राह्मणो गतिः ।
अनन्तरूपो नैकात्मा तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः ॥ 105 ॥
ऊर्ध्वगात्मा पशुपतिर्वातरंहा मनोजवः ।
चन्दनी पद्मनालाग्रः सुरभ्युत्तरणो नरः ॥ 106 ॥
कर्णिकारमहास्रग्वी नीलमौलिः पिनाकधृत् ।
उमापतिरुमाकान्तो जाह्नवीभृदुमाधवः ॥ 107 ॥
वरो वराहो वरदो वरेण्यः सुमहास्वनः ।
महाप्रसादो दमनः शत्रुहा श्वेतपिङ्गलः ॥ 108 ॥
प्रीतात्मा परमात्मा च प्रयतात्मा प्रधानधृत् ।
सर्वपार्श्वमुखस्त्र्यक्षो धर्मसाधारणो वरः ॥ 109 ॥
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा अमृतो गोवृषेश्वरः ।
साध्यर्षिर्वसुरादित्यः विवस्वान्सविताऽमृतः ॥ 110 ॥
व्यासः सर्गः सुसङ्क्षेपो विस्तरः पर्ययो नरः ।
ऋतुः संवत्सरो मासः पक्षः सङ्ख्यासमापनः ॥ 111 ॥
कला काष्ठा लवा मात्रा मुहूर्ताहः क्षपाः क्षणाः ।
विश्वक्षेत्रं प्रजाबीजं लिङ्गमाद्यस्सुनिर्गमः ॥ 112 ॥
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं पिता माता पितामहः ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥ 113 ॥
निर्वाणं ह्लादनश्चैव ब्रह्मलोकः परागतिः ।
देवासुरविनिर्माता देवासुरपरायणः ॥ 114 ॥
देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः ।
देवासुरमहामात्रो देवासुरगणाश्रयः ॥ 115 ॥
देवासुरगणाध्यक्षो देवासुरगणाग्रणीः ।
देवादिदेवो देवर्षिर्देवासुरवरप्रदः ॥ 116 ॥
देवासुरेश्वरो विश्वो देवासुरमहेश्वरः ।
सर्वदेवमयोऽचिन्त्यो देवतात्माऽऽत्मसम्भवः ॥ 117 ॥
उद्भित्त्रिविक्रमो वैद्यो विरजो नीरजोऽमरः ।
ईड्यो हस्तीश्वरो व्याघ्रो देवसिंहो नरर्षभः ॥ 118 ॥
विबुधोऽग्रवरः सूक्ष्मः सर्वदेवस्तपोमयः ।
सुयुक्तः शोभनो वज्री प्रासानाम्प्रभवोऽव्ययः ॥ 119 ॥
गुहः कान्तो निजः सर्गः पवित्रं सर्वपावनः ।
शृङ्गी शृङ्गप्रियो बभ्रू राजराजो निरामयः ॥ 120 ॥
अभिरामः सुरगणो विरामः सर्वसाधनः ।
ललाटाक्षो विश्वदेवो हरिणो ब्रह्मवर्चसः ॥ 121 ॥
स्थावराणाम्पतिश्चैव नियमेन्द्रियवर्धनः ।
सिद्धार्थः सिद्धभूतार्थोऽचिन्त्यः सत्यव्रतः शुचिः ॥ 122 ॥
व्रताधिपः परं ब्रह्म भक्तानाम्परमागतिः।
विमुक्तो मुक्ततेजाश्च श्रीमान् श्रीवर्धनो जगत् ॥ 123 ॥
इति श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र !!
निष्कर्ष: शिव सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ आत्मशुद्धि, मानसिक शांति, भौतिक समृद्धि, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत लाभकारी है। इस पाठ से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन में हर प्रकार की बाधाओं को पार करने में सहायक होती है।
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