लिंग पुराण : महादेव जी द्वारा विष्णु और ब्रह्मको वरदान, सर्पों एवं रुद्रों की सृष्टि | Linga Purana: Boon given by Mahadev Ji to Vishnu and Brahma, creation of snakes and Rudras
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] बाईसवाँ अध्याय
महादेव जी द्वारा विष्णु और ब्रह्म को वरदान, सृष्टिके लिये ब्रह्मा जी द्वारा तप करना तथा सर्पों एवं रुद्रों की सृष्टि
सूत उवाच
अत्यन्तावनतौ दृष्ट्वा मधुपिड्रायतेक्षण:।
प्रहष्टवदनो त्यर्थमभवत्सत्यकीर्तनात् ॥ १
उमापतिर्विरूपाक्षो दक्षयज्ञविनाशनः ।
पिनाकी खण्डपरशुः सुप्रीतस्तु त्रिलोचनः ॥ २
ततः स भगवान् देवः श्रुत्वा वागमृतं तयोः ।
जानन्नपि महादेवः क्रीडापूर्वमथाब्रवीत् ॥ ३
कौ भवन्तौ महात्मानौ परस्परहितैषिणौ।
समेतावम्बुजाभाक्षावस्मिन् घोरे महाप्लवे ॥ ४
तावूचतुर्महात्मानौ सन्निरीक्ष्य परस्परम् ।
भगवन् किं तु यत्तेऽद्य न विज्ञातं त्वया विभो ॥ ५
विभो रुद्र महामाय इच्छया वां कृतौ त्वया।
तयोस्तद्वचनं श्रुत्वा अभिनन्द्याभिमान्य च ॥ ६
उवाच भगवान् देवो मधुरं एलशणया गिरा।
भो भो हिरण्यगर्भ त्वां त्वां च कृष्ण ब्रवीम्यहम्॥ ७
प्रीतोडहहमनया भकत्या शाश्वताक्षरयुक्तया।
भवन्ती हृदयस्थास्थ मम हद्यतराबुभौ॥ ८
युवाभ्यां कि ददाम्यद्य वराणां वरमीप्सितम्।
अथोवाच महाभागो विष्णुर्भवमिंदं वच:॥ ९
सर्व मम कृतं देव परितुष्टोउसि मे यदि।
त्वयि मे सुप्रतिष्ठा तु भक्तिर्भवतु शट्भूर॥ १०
एवमुक्तस्तु विज्ञाय सम्भावयत केशवम्।
प्रददौ च महादेवो भक्ति निजपदाम्बुजे॥ १९
भवान् सर्वस्य लोकस्य कर्ता त्वमधिदेवतम्।
तदेवं स्वस्ति ते बत्स गमिष्याम्यम्बुजेक्षण॥ १२
एवमुक्त्वा तु भगवान् ब्रह्माणं चापि शट्डूरः।
अनुगृह्यास्पृशद्देवो ब्रहद्माणं. परमेश्वर: ॥ १३
कराभ्यां सुशुभाभ्यां च प्राह हृष्टतर: स्वयम्।
मत्समस्त्वं न सन्देहों वत्स भक्तशच मे भवान्॥ १४
स्वस्त्यस्तु ते गमिष्यामि संज्ञा भवतु सुत्रत।
एवमुक्त्वा तु भगवांस्ततोउन्तर्धानमीश्वर:॥ १५
गतवान् गणपो देव: सर्वदेवनमस्कृत:।
अवाप्य संज्ञां गोविन्दात् पद्मययोनि: पितामह: ॥ १६
प्रजा: स्त्रष्टमनाश्चक्रे तप उग्रं॑ पितामहः।
तस्यैव॑ तप्यमानस्थ न॒किड्चित्समवर्तत॥ १७
ततो दीर्घेण कालेन दुःखात्क्रोधो ह्जायत।
क्रोधाविष्टस्य नेत्राभ्यां प्रापतन्नश्रुविन्दव:॥ १८
ततस्तेभ्यो श्रुबिन्दुभ्यो वातपित्तकफात्मका।
महाभागा महासत्त्वा: स्वस्तिकैरप्पलड्कृता: २१॥
प्रकीर्णकेशा: सर्पास्ते प्रादुर्भूता महाविषा:।
सर्पास्तागग्रजान् दृष्ट्वा ब्रह्मात्मानमनिन्दयतू॥ २०
अहो धिक् तपसो महां फलमीदृशक॑ यदि।
लोकवैनाशिकी जज्ञे आदावेव प्रजा मम॥ २१
तस्य॒तीक्राभवन्मूर्चव्छा क्रोधामर्षसमुद्धवा ।
मूर्छाभिपरितापेन जहौ प्राणान् प्रजापति: ॥ २२
तस्याप्रतिमवीर्यस्य देहात्कारुण्यपूर्वकम् ।
अथैकादश ते रुद्रा रुदन्तो5भ्यक्रमंस्तथा।॥ २३
रोदनात्खलु रुद्र॒त्व॑ तेषु वे समजायत।
ये रुद्रास्ते खलु प्राणा: ये प्राणास्ते तदात्मका: ॥ २४
प्राणा: प्राणवतां ज्ञेया: सर्वभूतेष्ववस्थिता: ।
अत्युग्रस्य महत्त्वस्य साधुराचरितस्थ च॥ २५
प्राणांस्तस्य ददौ भूयस्त्रिशूली नीललोहितः।
लब्ध्वासून् भगवान् ब्रह्मा देवदेवमुमापतिम्॥ २६
प्रणम्य संस्थितो5पश्यद् गायत्रया विश्वमीएवरम्।
सर्वलोकमयं देवं दृष्ट्वा स्तुत्वा पितामह:॥ २७
ततो विस्मयमापन्न: प्रणिपत्य मुहुर्मुहुः।
उवाच बचनं शर्व सद्यादित्वं कथं विभो॥ २८
॥इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे रद्रोत्पत्तिवर्णनं नाम द्वार्विशतितमोउध्याय: ॥ २२ ॥
इस प्रकार श्रीलिंगमहा पुराण के अन्तर्गत पूर्वभागमें रुद्रोत्पत्तिवर्ण ' नामक बाईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ २२ ॥
FAQs: लिंग पुराण [पूर्वभाग] - बाईसवाँ अध्याय
प्रश्न 1: लिंग पुराण के बाईसवें अध्याय में किस घटना का वर्णन है?
उत्तर: इस अध्याय में भगवान महादेव द्वारा विष्णु और ब्रह्मा को वरदान देने, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना के लिए तपस्या करने और सर्पों एवं रुद्रों की उत्पत्ति का वर्णन है।
प्रश्न 2: भगवान महादेव ने विष्णु और ब्रह्मा जी से क्या कहा?
उत्तर: भगवान महादेव ने विष्णु और ब्रह्मा जी से उनकी अमृतमयी स्तुति सुनने के बाद कहा कि वे उनकी भक्ति से प्रसन्न हैं। महादेव ने विष्णु जी को अचल भक्ति का वरदान दिया और ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा।
प्रश्न 3: ब्रह्मा जी ने तपस्या क्यों की?
उत्तर: ब्रह्मा जी ने प्रजाओं की सृष्टि के लिए कठोर तपस्या की, ताकि उन्हें सृष्टि निर्माण की शक्ति और ज्ञान प्राप्त हो सके।
प्रश्न 4: ब्रह्मा जी की तपस्या के दौरान क्या हुआ?
उत्तर: ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या के बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिली। इस कारण वे दुखी और क्रोधित हो गए। उनके आंसुओं से सर्पों की उत्पत्ति हुई, जो घातक और विनाशकारी थे।
प्रश्न 5: रुद्रों की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: अत्यधिक क्रोध और मूर्छा के कारण ब्रह्मा जी ने अपने प्राण त्याग दिए। उनके शरीर से 11 रुद्र उत्पन्न हुए, जो उनके करुण भाव का परिणाम थे। रुद्रों का नाम उनके रुदन (रोने) के कारण पड़ा।
प्रश्न 6: भगवान महादेव ने ब्रह्मा जी को क्या वरदान दिया?
उत्तर: भगवान महादेव ने ब्रह्मा जी को उनके प्राण वापस दिए और सृष्टि निर्माण का कार्य पूरा करने का निर्देश दिया।
प्रश्न 7: भगवान शिव को "सद्योजात" क्यों कहा गया?
उत्तर: ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से पूछा कि उनका "सद्योजात" रूप में प्रकट होना क्यों हुआ। यह नाम उनके तुरंत प्रकट होने और उनके सृष्टि निर्माण में सहायक होने के कारण है।
प्रश्न 8: इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य भगवान महादेव की करुणा, सृष्टि निर्माण में उनके योगदान, और रुद्रों की उत्पत्ति का वर्णन करना है।
प्रश्न 9: इस अध्याय में सर्पों की उत्पत्ति का क्या महत्व है?
उत्तर: सर्पों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के क्रोध और दुख का परिणाम है। यह बताता है कि सृष्टि निर्माण में विभिन्न भावनाओं और परिस्थितियों की भूमिका होती है।
प्रश्न 10: लिंग पुराण के बाईसवें अध्याय का अंत किस प्रकार होता है?
उत्तर: इस अध्याय का समापन भगवान शिव के रुद्र रूप की महिमा, ब्रह्मा जी के ज्ञान-प्राप्ति, और भगवान महादेव के अंतर्धान (अदृश्य हो जाने) के साथ होता है।
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