अक्षय तृतीया-व्रत की विधि और उसका माहात्म्य | akshay trteeya-vrat kee vidhi aur usaka maahaatmy |

मत्स्य पुराण पैंसठवाँ अध्याय

अक्षय तृतीया-व्रत की विधि और उसका माहात्म्य

ईश्वर उवाच

अधान्यामपि वक्ष्यामि तृतीयां सर्वकामदाम् ।
यस्यां दत्तं हुतं जप्तं सर्वं भवति चाक्षयम् ॥ १

भगवान् शंकरने कहा- नारद ! अब मैं सम्पूर्ण कामनाओंको प्रदान करनेवाली एक अन्य तृतीयाका वर्णन कर रहा हूँ, जिसमें दान देना, हवन करना और जप करना सभी अक्षय हो जाता है॥ १

वैशाखशुक्लपक्षे तु तृतीया यैरुपोषिता।
अक्षयं फलमाप्नोति सर्वस्य सुकृतस्य च ॥ २

सा तथा कृत्तिकोपेता विशेषेण सुपूजिता।
तत्र दत्तं हुतं जप्तं सर्वमक्षयमुच्यते ॥ ३

अक्षया संततिस्तस्य तस्यां सुकृतमक्षयम्।
अक्षतैः पूज्यते विष्णुस्तेन साक्षया स्मृता । 
अक्षतैस्तु नराः स्त्राता विष्णोर्दत्त्वा तथाक्षताम् ॥ ४

विप्रेषु दत्त्वा तानेव तथा सक्तून् सुसंस्कृतान् ।
यथान्नभुङ् महाभाग फलमक्षय्यमश्नुते ॥ ५

एकामप्युक्तवत् कृत्वा तृतीयां विधिवन्नरः ।
एतासामपि सर्वांसां तृतीयानां फलं भवेत् ॥ ६

तृतीयायां समभ्यर्च्य सोपवासो जनार्दनम्।
राजसूयफलं प्राप्य गतिमग्र्यां च विन्दति ॥ ७

जो लोग वैशाखमासके शुक्लपक्षकी तृतीयाके दिन व्रतोपवास करते हैं, वे अपने समस्त सत्कर्मोंका अक्षय फल प्राप्त करते हैं। वह तृतीया यदि कृत्तिका नक्षत्रसे युक्त हो तो विशेषरूपसे पूज्य मानी गयी है। उस दिन दिया गया दान, किया हुआ हवन और जप सभी अक्षय बतलाये गये हैं। इस व्रतका अनुष्ठान करनेवालेकी संतान अक्षय हो जाती है और उस दिनका किया हुआ पुण्य अक्षय हो जाता है। इस दिन अक्षतके द्वारा भगवान् विष्णुकी पूजा की जाती है, इसीलिये इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। मनुष्यको चाहिये कि इस दिन स्वयं अक्षतयुक्त जलसे स्रान करके भगवान् विष्णुकी मूर्तिपर अक्षत चढ़ावे और अक्षतके साथ ही शुद्ध सत्तू ब्राह्मणोंको दान दे; तत्पश्चात् स्वयं भी उसी अन्नका भोजन करे। महाभाग! ऐसा करनेसे वह अक्षय फलका भागी हो जाता है। उपर्युक्त विधिके अनुसार एक भी तृतीयाका व्रत करनेवाला मनुष्य इन सभी तृतीया- व्रतोंके फलको प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य इस तृतीया तिथिको उपवास करके भगवान् जनार्दनकी भलीभाँति पूजा करता है, वह राजसूय यज्ञका फल पाकर अन्तमें श्रेष्ठ गतिको प्राप्त होता है॥-७॥

इति श्रीमालये महापुराणेऽक्षयतृतीयाव्रतं नाम पञ्चषष्टितमोऽध्यायः ॥ ६५ ॥

इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणमें अक्षयतृतीया-व्रत नामक पैंसठवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ ॥ ६५॥

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