भगवान् नारायण की भक्ति और शाश्वत मार्ग | Devotion to Lord Narayana and the eternal path

भगवान् नारायण की भक्ति और शाश्वत मार्ग

भगवान् नारायण की भक्ति का महत्व सनातन धर्म में अत्यंत गहन और अद्वितीय है। विशेषकर जब हम राजा शशिध्वज के जीवन की कथा सुनते हैं, तो हमें यह भक्ति का मार्ग समझ में आता है, जो न केवल पुण्य की प्राप्ति कराता है, बल्कि संसार से परे, आत्मा को परमात्मा के समीप पहुँचाता है।

राजा शशिध्वज का भक्ति मार्ग

राजा शशिध्वज, जिन्हें शाश्वत भक्ति के सिद्धांत को प्रस्तुत करने का गौरव प्राप्त हुआ, अपने पूर्व जन्म के अनुभवों को साझा करते हैं। वे कहते हैं कि पूर्व जन्म में वे एक गिद्ध थे, जिनका जीवन मृत मांस पर निर्भर था। परंतु एक विशेष घटना ने उनकी जीवन धारा को मोड़ दिया। एक शिकार द्वारा पकड़े जाने के बाद, गण्डकी नदी के तट पर उनका मरण हुआ और यहीं से उन्हें भगवान् नारायण की कृपा प्राप्त हुई।

न केवल वे स्वयं, बल्कि उनकी पत्नी सुशान्ता भी उस अनुभव के बाद भक्ति मार्ग पर चल पड़ीं। भक्ति की ऊर्जा ने उन्हें ब्रह्मलोक और फिर वैकुण्ठ धाम तक पहुँचाया। यहीं से उनका जीवन एक नई दिशा की ओर मोड़ लिया, जिसमें भगवान् नारायण के प्रति उनकी भक्ति वचन, मन और बुद्धि से होकर निरंतर बढ़ती गई।

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भक्ति के प्रकार और आहार

राजा शशिध्वज ने अपने समय के राजाओं से भक्ति की प्रकृति के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि भक्ति सच्ची और निरंतर बनी रहने वाली होती है, और इसके लिए आहार, स्थान और वाणी का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

वह बताते हैं कि भक्ति का पहला कदम है - भगवान् नारायण के प्रति एकाग्रचित्त ध्यान। जब मनुष्य अपने शरीर और इन्द्रियों को नियंत्रित कर भगवान के कमलपदों में ध्यान लगाता है, तब उसे सच्ची भक्ति का अनुभव होता है। इसके साथ ही वे कहते हैं कि भक्त का आहार भी शुद्ध और सात्विक होना चाहिए, जो शरीर को स्वस्थ और ताजगी प्रदान करे।

राजा शशिध्वज के अनुसार, भक्ति मार्ग में तीन प्रकार के आहार होते हैं:

  1. सात्विक आहार: यह आहार जीवन को शुद्ध करता है और भक्त को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है।
  2. राजस आहार: यह आहार इन्द्रियों को उत्तेजित करता है और जीवन में भोग-विलास की इच्छा उत्पन्न करता है।
  3. तामस आहार: यह आहार शरीर को कष्ट पहुँचाता है और जीवन को अव्यवस्थित करता है।

नारद जी से भक्ति का मार्ग

नारद जी ने महर्षि सनक को भक्ति के लक्षण और उसके अनुसरण की विधि बताई। वे कहते हैं कि भक्ति का मूल आधार है - भगवान की सेवा, उनके गुणों का गान, और उनका ध्यान। भक्त का जीवन इसी ध्यान में रमता है, वह भगवान के नाम के कीर्तन में लीन हो जाता है और संसार से परे, आत्मिक सुख की प्राप्ति करता है।

उपसंहार

राजा शशिध्वज की यह कथा न केवल भक्ति की शक्ति को उजागर करती है, बल्कि हमें यह भी सिखाती है कि भगवान की भक्ति सच्चे हृदय से की जाती है, और यह भक्ति हर प्रकार के आहार और वाणी से परे, एक शुद्ध और निर्बाध मार्ग है। उनके जीवन के अनुभव हमें यह समझाते हैं कि भक्ति ही वह रास्ता है जो हमें संसार से मोक्ष की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान नारायण की भक्ति न केवल आत्मा के लिए शांति का स्रोत है, बल्कि यह हमें जीवन में हर तरह के सुख और मोक्ष की ओर भी ले जाती है। हमें राजा शशिध्वज की तरह, भगवान की भक्ति को अपने जीवन में समर्पित करना चाहिए, ताकि हम भी संसार की माया से मुक्त हो सकें और परमात्मा के समीप पहुँच सकें।

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