कल्कि दूत एवं पद्मावती का संवाद: श्री विष्णु की पूजा विधि | Dialogue between Kalki messenger and Padmavati: Method of worship of Shri Vishnu

कल्कि दूत एवं पद्मावती का संवाद: श्री विष्णु की पूजा विधि

पद्मावती और शुक के बीच हुआ संवाद एक अद्भुत कथा है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह कहानी न केवल भगवान विष्णु की महिमा को उजागर करती है, बल्कि भक्तों के लिए पूजा की विधि को जानने का एक मार्गदर्शन भी प्रदान करती है।

विष्णु पूजा की विधि

पद्मावती ने शुक से कहा कि, भगवान विष्णु की पूजा में उनकी शारीरिक संरचना से लेकर उनके केशों तक ध्यान करना आवश्यक है। पूजा का आरंभ मुख्य रूप से भगवान विष्णु के चरणों से लेकर उनके सिर तक ध्यान करने से किया जाता है। इसके बाद, पूजा करने वाले व्यक्ति को उनका सम्मान करते हुए, दंडवत प्रणाम करना चाहिए। इसके पश्चात, पाद्य, अर्घ्य और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और भगवान विष्णु के प्रति आस्था और समर्पण के साथ नृत्य, गीत और संकीर्तन करना चाहिए। इस विधि से पूजा करने से न केवल इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि निष्काम भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

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वृत्तांत और आभूषणों का वर्णन

पद्मावती ने शुक को यह भी बताया कि भगवान विष्णु की पूजा करने से और उनके चरणों की अर्चना करने से जीवन के सभी दुखों का निवारण होता है। शुक ने अपनी वाणी में भगवान विष्णु की भक्ति के लक्षणों का वर्णन करते हुए यह कहा कि उसने देखा है कि लक्ष्मी के पति, भगवान विष्णु, अद्वितीय और दिव्य रूप में प्रकट होते हैं, जो संसार के समस्त कर्मों से मुक्त कर देने की शक्ति रखते हैं।

कल्कि अवतार और शुक का मिलन

पद्मावती ने शुक से पूछा कि वह किस स्थान से आए हैं और उनकी यात्रा में क्या अद्भुत घटनाएं घटीं। शुक ने उत्तर में बताया कि भगवान विष्णु के रूप में कल्कि ने शम्भल नामक ग्राम में जन्म लिया और वहाँ परशुराम जी से वेदों का अध्ययन किया। इसके बाद, वह अपनी यात्रा पर निकले और समुद्र के पार जाकर एक अद्भुत नगरी में पहुंचे। यह नगरी विभिन्न प्रकार के पक्षियों, तालाबों, और महलों से सज्जित थी, जो भगवान विष्णु की भव्यता को प्रदर्शित करती थी।

समाप्ति

कल्कि भगवान के अवतार, उनकी भक्ति, और भगवान विष्णु के स्वरूप के बारे में यह कथा न केवल भक्तों को पूजा के महत्व को समझने का अवसर देती है, बल्कि भगवान विष्णु की अनंत महिमा की ओर मार्गदर्शन भी करती है। यह कहानी एक प्रेरणा है, जो हमें ईश्वर की भक्ति में समर्पण और श्रद्धा की आवश्यकता को समझाती है।

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