कल्कि पुराण: धर्म और अधर्म के युद्ध की कथा | Kalki Purana: The story of the war between Dharma and Adharma
कल्कि पुराण: धर्म और अधर्म के युद्ध की कथा
परिचय:
मरु और देवापि की सहायता से धर्म की पुनर्स्थापना
मरु और देवापि, सूर्यवंश और चंद्रवंश के शेष बचे राजा, भगवान कल्कि के निर्देश पर अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार होते हैं। रथ, सेना और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित ये दोनों राजाओं ने भगवान कल्कि के नेतृत्व में धर्म की रक्षा के लिए यात्रा आरंभ की।
धर्म का परिचय और कल्कि जी का संवाद
धर्म, अपने परिवार और अनुयायियों के साथ कल्कि जी के पास आते हैं और अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन करते हैं। धर्म बताते हैं कि कलियुग के प्रभाव से वे पराजित हो चुके हैं। भगवान कल्कि उन्हें सत्ययुग के आगमन की घोषणा करते हैं और उनके भय को समाप्त करते हैं।
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \छठा अध्याय |
कलि और कल्कि के मध्य युद्ध
कल्कि भगवान के नेतृत्व में धर्म और उनके अनुयायियों ने कलि और उसके सहायकों का सामना किया। यह युद्ध केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का भी प्रतीक है।
युद्ध का विवरण:
- धर्म के अनुचर जैसे ऋत, अभय, सुख ने अधर्म के अनुचरों जैसे लोभ, क्रोध, भय को पराजित किया।
- मरु और देवापि ने खश, कम्बोज, और अन्य अनार्य जातियों से लड़ाई लड़ी।
- कोक और विकोक जैसे दैत्यों का सामना स्वयं भगवान कल्कि ने किया। ये दोनों अत्यंत बलशाली और देवताओं के लिए भी भय का कारण थे।
युद्ध का परिणाम और धर्म की पुनर्स्थापना
कल्कि जी ने अधर्म का नाश कर सत्य और धर्म की पुनर्स्थापना की। सत्ययुग का आरंभ हुआ, और धर्म के सभी अनुचर निडर होकर पृथ्वी पर विचरण करने लगे।
आध्यात्मिक संदेश:
यह कथा हमें यह सिखाती है:
- धर्म और अधर्म का संघर्ष अनंत है।
- सत्य और धर्म का अंततः विजय सुनिश्चित है।
- बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, ईश्वर की कृपा से उसे हराया जा सकता है।
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