लिंग पुराण : सूक्ष्म तिल पर्वत दान की विधि | Linga Purana: Method of donating subtle molehills

श्री लिङ्ग महा पुराण उत्तरभाग इकतीसवाँ अध्याय 

सूक्ष्म तिल पर्वत दान की विधि

सनत्कुमार उवाच

अथान्यं पर्वतं सूक्ष्ममल्पद्रव्यं महाफलम्। 
द्रव्यमात्रोपसंयुक्ते काले मध्यं विधीयते ॥ १

सनत्कुमार बोले-अब एक अन्य सूक्ष्म तिलपर्वतके दानके विषयमें बताता हूँ, जो व्ययमें अल्प द्रव्यवाला, किंतु महान् फल प्रदान करनेवाला है। जब भी व्यक्ति द्रव्यसे सम्पन्न हो जाय, तब इस पवित्र कृत्यको करे ॥ १॥

गोमयालिप्तभूमौ तु हाम्बराणि प्रकीर्य च। 
तन्मध्ये निक्षिपेद्धीमांस्तिलभारत्रयं शुभम् ॥ २

बुद्धिमान् पुरुषको गोमयसे विधिवत् लीपी गयी भूमिपर वस्त्र बिछाकर उसके मध्यमें तीन भार विशुद्ध तिल स्थापित करना चाहिये ॥ २॥

पद्ममष्टदलं कुर्यात्कर्णिकाकेसरान्वितम्। 
दशनिष्केण तत्कार्यं तदर्धार्थेन वा पुनः ॥ ३

तिलमध्ये न्यसेत्पद्यं पद्ममध्ये महेश्वरम्। 
आराध्य विधिवद्देवं वामादीनि प्रपूजयेत् ॥ ४

शक्तिरूपं सुवर्णेन त्रिनिष्केण तु कारयेत्। 
न्यासं तु परितः कुर्याद्विघ्नेशान् परिभागतः ।। ५

पूर्वोक्तहेममानेन विघ्नेशानपि कारयेत्। 
तानभ्यच्यं विधानेन गन्धपुष्पादिभिः क्रमात् ॥ ६ 

तदनन्तर कर्णिका तथा केसरसे युक्त सुवर्णका अष्टदल कमल बनाना चाहिये। इसे दस निष्क अथवा उसके आधे अथवा उसके भी आधे प्रमाणवाले सुवर्णसे निर्मित करना चाहिये। इस [अष्टदल] कमलको तिलके मध्य रखना चाहिये और कमलके बीच शिवजीकी विधिवत् आराधना करके उनकी वामदेव आदि मूर्तियोंकी पूजा करनी चाहिये। तीन निष्क सुवर्णके द्वारा शक्तिकी प्रतिमा बनानी चाहिये। इसी प्रकार आठों दिशाओंमें अष्ट विनायकोंकी स्थापना करनी चाहिये। पूर्वमें कहे गये तीन निष्क सुवर्णसे विघ्नेश्वरोंकी भी प्रतिमा बनानी चाहिये। विधिपूर्वक गन्ध, पुष्प आदिके द्वारा क्रमसे उनकी पूजा करके दानादि शेष क्रियाएँ पूर्वोक्त क्रमसे करें ॥ ३-६ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे सूक्ष्मपर्वतदानविधानवर्णनं नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥ ३१ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तरभागमें 'सूक्ष्मपर्वतदानविधानवर्णन' नामक इकतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३१॥

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