श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग अड़तीसवाँ अध्याय
महादानों में परिगणित गोसहस्त्र दान की विधि
सनत्कुमार उवाच
गोसहस्त्रप्रदानं च वदामि शृणु सुव्रत।
गवां सहस्त्रमादाय सवत्सं सगुणं शुभम् ॥ १
तास्त्वभ्यर्च्य यथाशास्त्रमष्टौ सम्यक्प्रयत्नतः ।
तासां शृङ्गाणि हेम्नाथ प्रतिनिष्केण बन्धयेत् ॥ २
खुरांश्च रजतेनैव बन्धयेत्कण्ठदेशतः ।
प्रतिनिष्केण कर्तव्यं कर्णे वज्रं च शोभनम् ॥ ३
सनत्कुमार बोले- हे सुव्रत । अब मैं गोसहस्रदानकी विधि बताता हूँ; इसे सुनिये। उत्तम लक्षणोंसे युक्त, मंगलमयी तथा बछड़ोंसहित एक हजार गायें लाकर उनकी पूजा करके उनमेंसे आठ गायोंकी शास्त्रविधिसे प्रयत्नपूर्वक सम्यक् पूजा करे। तत्पश्चात् उनकी सौंगोंमें एक निष्क सुवर्ण बाँध दे और खुरोंमें भी एक-एक निष्क सुवर्ण बाँध दे। उनके कण्ठमें एक निष्क सुवर्णका कण्ठाभूषण पहनाये तथा कानोंको सुन्दर हीरेसे अलंकृत करे ॥ १-३॥
शिवाय दद्याद्विप्रेभ्यो दक्षिणां च पृथक्पृथक्।
दशनिष्कं तदर्थं वा तस्यार्धार्धमथापि वा ।। ४
यथाविभवविस्तारं निष्कमात्रमथापि वा।
वस्त्रयुग्मं च दातव्यं पृथग्विप्रेषु शोभनम् ॥ ५
तत्पश्चात् इन्हें शिवको अर्पण कर दे। ब्राह्मणोंको पृथक् पृथक् दस निष्क अथवा उसका आधा अथवा उसके आधेका आधा अथवा एक निष्क सुवर्ण अपने सामर्थ्यके अनुसार दक्षिणा देनी चाहिये और प्रत्येक ब्राह्मणको एक जोड़ा सुन्दर वस्त्र प्रदान करना चाहिये। दत्तचित्त होकर आराधना करके उन्हें उत्तम गौएँ प्रदान करनी चाहिये ॥ ४-५॥
गावश्चाराध्य यत्नेन दातव्याः सुमनोरमाः ।
एवं दत्त्वा विधानेन शिवमभ्यर्च्य शङ्करम् ॥ ६
जपेदग्रे यथान्यायं गवां स्तवमनुत्तमम् ।
गावो ममाग्रतो नित्यं गावो नः पृष्ठतस्तथा ॥ ७
हृदये मे सदा गावो गवां मध्ये वसाम्यहम्।
इति कृत्वा द्विजाग्रयेभ्यो दत्त्वा गत्वा प्रदक्षिणम् ॥ ८
तद्रोमवर्षसंख्यानि स्वर्गलोके महीयते ॥ ९
इस प्रकार विधानपूर्वक दान करके कल्याणकारी भगवान् शिवका अर्चनकर गौओंके आगे इस उत्तम स्तवनका सम्यक् प्रकारसे पाठ करना चाहिये- 'गावो ममाग्रतो नित्यं गावो नः पृष्ठतस्तथा। हृदये मे सदा गावो गवां मध्ये वसाम्यहम्।।' अर्थात् गायें नित्य मेरे आगे रहें, गायें हमारे पीछेकी ओर रहें, गायें सदा मेरे हृदयमें रहें और मैं गायोंके मध्य निवास करूँ-ऐसा पाठ करके श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको गायें प्रदानकर उनकी प्रदक्षिणा करे। इस प्रकारसे दान करनेवाला मनुष्य उन गायोंके शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है॥ ६-९॥
॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे गोसहस्त्रप्रदानं नामाष्टत्रिंशोऽध्यायः ॥ ३८ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तरभागमें 'गौसहस्रप्रदान' नामक अड़तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३८ ॥
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