मत्स्य पुराण एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय
राजा पुरूरवा के पूर्वजन्म का वृत्तान्त
मनुरुवाच
चरितं बुधपुत्रस्य जनार्दन मया श्रुतम्।
श्रुतः श्राद्धविधिः पुण्यः सर्वपापप्रणाशनः ॥ १
धेन्वाः प्रसूयमानायाः फलं दानस्य मे श्रुतम् ।
कृष्णाजिनप्रदानं च वृषोत्सर्गस्तथैव च ॥ २
श्रुत्वा रूपं नरेन्द्रस्य बुधपुत्रस्य केशव।
कौतूहलं समुत्पन्नं तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः ॥ ३
केन कर्मविपाकेन स तु राजा पुरूरवाः।
अवाप तादृशं रूपं सौभाग्यमपि चोत्तमम् ॥ ४
देवांस्त्रिभुवनश्रेष्ठान् गन्धर्वांश्च मनोरमान्।
उर्वशी संगता त्यक्त्वा सर्वभावेन तं नृपम् ॥ ५
मनुने पूछा- जनार्दन। मैंने आपके मुखसे बुधपुत्र राजा पुरूरवाका जीवन चरित्र तो सुना और समस्त पापोंका विनाश करनेवाली पुण्यमयी श्राद्धविधिका भी श्रवण किया तथा ब्यायी हुई गौके दानका, काले मृगचर्मके दानका एवं वृषोत्सर्गका भी फल सुन लिया, परंतु केशव । बुधपुत्र नरेश्वर पुरूरवाके रूपको सुनकर मुझे महान् कौतूहल उत्पन्न हो गया है, इसीलिये पूछ रहा हूँ। अब आप मुझे यह बतलाइये कि किस कर्मके परिणामस्वरूप राजा पुरूरवाको वैसा सुन्दर रूप और उत्तम सौभाग्य प्राप्त हुआ था? (जिसपर मोहित होकर अप्सराओंमें श्रेष्ठ) उर्वशी त्रिलोकीमें श्रेष्ठ देवताओं और सौन्दर्यशाली गन्धर्वोका त्याग करके सब प्रकारसे राजा पुरूरवाकी सङ्गिनी बनी थी॥ १-५॥
शृणु कर्मविपाकेन येन राजा पुरूरवाः।
अवाप तादृशं रूपं सौभाग्यमपि चोत्तमम् ॥ ६
अतीते जन्मनि पुरा योऽयं राजा पुरूरवाः।
पुरूरवा इति ख्यातो मद्रदेशाधिपो हि सः ॥ ७
चाक्षुषस्यान्वये राजा चाक्षुषस्यान्तरे मनोः ।
स वै नृपगुणैर्युक्तः केवलं रूपवर्जितः ॥ ८
मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन् ! राजा पुरूरवाको जिस कर्मके फलस्वरूप वैसे सुन्दर रूप और उत्तम सौभाग्यकी प्राप्ति हुई थी, वह बतला रहा हूँ, सुनो। यह राजा पुरूरवा पूर्वजन्ममें भी पुरूरवा नामसे ही विख्यात था। यह चाक्षुष मन्वन्तरमें चाक्षुष मनुके वंशमें उत्पन्न होकर मद्र देश (पंजाबका पश्चिमोत्तर भाग) का अधिपति था (जहाँका राजा शल्य तथा पाण्डुपत्नी माद्री थी)। उस समय इसमें राजाओंके सभी गुण तो विद्यमान थे, पर वह केवल रूपरहित अर्थात् कुरूप था। (मत्स्यभगवान्द्वारा आगे कहे जानेवाले प्रसङ्गको ऋषियोंके पूछनेपर सूतजीने वर्णन किया है, अतः इसके आगे पुनः वही प्रसङ्ग चलाया गया है।) ॥ ६-८॥
ऋषय ऊचुः
पुरूरवा मद्रपतिः कर्मणा केन पार्थिवः।
बभूव कर्मणा केन रूपवांश्चैव सूतज ॥ ९
ऋषियोंने पूछा- सूतनन्दन। राजा पुरूरवा किस कर्मके फलस्वरूप मद्र देशका स्वामी हुआ तथा किस कर्म के परिणाम स्वरूप परम सौन्दर्यशाली हुआ ? यह बतलाइये ॥ ९॥
सूत उवाच
द्विजग्रामे द्विजश्रेष्ठो नाम्ना चासीत् पुरूरवाः ।
नद्याः कूले महाराजः पूर्वजन्मनि पार्थिवः ॥ १०
स तु मद्रपती राजा यस्तु नाम्ना पुरूरवाः ।
तस्मिञ्जन्मन्यसौ विप्रो द्वादश्यां तु सदानघ ॥ ११
उपोष्य पूजयामास राज्यकामो जनार्दनम्।
चकार सोपवासश्च स्त्रानमभ्यङ्गपूर्वकम् ॥ १२
उपवासफलात् प्राप्तं राज्यं मद्रेष्वकण्टकम्।
उपोषितस्तथाभ्यङ्गाद् रूपहीनो व्यजायत । १३
उपोषितैर्नरैस्तस्मात् खानमभ्यङ्गपूर्वकम् ।
वर्जनीयं प्रयत्नेन रूपनं तत्परं नृप ॥ १४
एतद् वः कथितं सर्वं यद् वृत्तं पूर्वजन्मनि ।
मद्रेश्वरानुचरितं शृणु तस्य महीपतेः ॥ १५
तस्य राजगुणैः सर्वैः समुपेतस्य भूपतेः ।
जनानुरागो नैवासीद् रूपहीनस्य तस्य वै॥ १६
रूपकामः स मद्रेशस्तपसे कृतनिश्चयः ।
राज्यं मन्त्रिगतं कृत्वा जगाम हिमपर्वतम् ॥ १७
व्यवसायद्वितीयस्तु पद्भयामेव महायशाः ।
द्रष्टुं स तीर्थसदनं विषयान्ते स्वके नदीम्।
ऐरावतीति विख्यातां ददर्शातिमनोरमाम् ॥ १८
तुहिनगिरिभवां महौघवेगां तुहिनगभस्तिसमानशीतलोदाम् ।
तुहिनसदृशहैमवर्णपुर्जा तुहिनयशाः सरितं ददर्श राजा ॥ १९
सूतजी कहते हैं- ऋषियो। पूर्वजन्ममें यह राजा पुरूरवा किसी नदीके तटवर्ती ब्राह्मणोंके एक गाँवमें श्रेष्ठ ब्राह्मण था। उस समय भी इसका नाम पुरूरवा ही था।अनघ ! वह मद्र देशका स्वामी जो राजा पुरूरवाके नामसे विख्यात था, उस जन्ममें ब्राह्मणरूपसे राज्यप्राप्तिको कामनासे युक्त होकर सदा द्वादशी तिथिको उपवास कर भगवान् विष्णुका पूजन किया करता था। एक बार उसने व्रतोपवास करके शरीरमें तेल लगाकर स्नान कर लिया जिस कारण उसे उपवासके फलस्वरूप मद्र देशका निष्कण्टक राज्य तो प्राप्त हुआ, परंतु उपवासी होकर शरीरमें तेल लगानेके कारण वह कुरूप होकर पैदा हुआ। इसलिये व्रतोपवासी मनुष्यको प्रयत्नपूर्वक शरीरमें तेल लगाकर स्रान करना छोड़ देना चाहिये; क्योंकि यह सुन्दरताका विनाशक है। इस प्रकार उसके पूर्वजन्मका जो वृत्तान्त था, वह सब मैंने आप लोगोंको बतला दिया। अब उस भूपालके मद्रेश्वर हो जानेके बादका चरित्र सुनिये। यद्यपि राजा पुरूरवा सभी राज्यगुणोंसे सम्पन्न था, किंतु रूपहीन होनेके कारण उसके प्रति प्रजाओंका अनुराग नहीं ही था। अतः मद्र- उपवासके फलस्वरूप मद्र देशका निष्कण्टक राज्य तो प्राप्त हुआ, परंतु उपवासी होकर शरीरमें तेल लगानेके कारण वह कुरूप होकर पैदा हुआ।
इसलिये व्रतोपवासी मनुष्यको प्रयत्नपूर्वक शरीरमें तेल लगाकर स्रान करना छोड़ देना चाहिये; क्योंकि यह सुन्दरताका विनाशक है। इस प्रकार उसके पूर्वजन्मका जो वृत्तान्त था, वह सब मैंने आप लोगोंको बतला दिया। अब उस भूपालके मद्रेश्वर हो जानेके बादका चरित्र सुनिये। यद्यपि राजा पुरूरवा सभी राज्यगुणोंसे सम्पन्न था, किंतु रूपहीन होनेके कारण उसके प्रति प्रजाओंका अनुराग नहीं ही था। अतः मद्र- नरेशने रूपप्राप्तिकी कामनासे तपस्याका निश्चय करके राज्य- भार मन्त्रीको सौंपकर हिमालय पर्वतकी ओर प्रस्थान किया। उस समय तपरूप व्यवसाय ही उसका सहायक था। वह महायशस्वी नरेश तीर्थस्थानोंका दर्शन करनेकी लालसासे पैदल ही चल रहा था। आगे बढ़नेपर उसने अपने देशकी सीमापर ऐरावती (रावी) नामसे विख्यात अत्यन्त मनोहारिणी नदीको देखा। वह नदी हिमालय पर्वतसे निकली हुई थी, अथाह जलके कारण गम्भीर वेगसे प्रवाहित हो रही थी, उसका जल चन्द्रमाके समान शीतल था और वह बर्फकी राशि-सरीखी उज्ज्वल प्रतीत हो रही थी। बर्फसदृश निर्मल यशवाले राजा पुरूरवाने उस नदीको देखा ॥१०-१९ ॥
इति श्रीमात्स्ये महापुराणे मद्रेश्वरस्य तपोवनागमनं नाम पञ्चदशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११५ ॥
इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणमें तपोवनागमन नामक एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ ।॥ ११५ ॥
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