श्री कल्कि अवतार: विषकन्या सुलोचना और धर्म की पुनःस्थापना | Shri Kalki Avatar: Vishkanya Sulochana and Restoration of Dharma
श्री कल्कि अवतार: विषकन्या सुलोचना और धर्म की पुनःस्थापना
सूत जी के वचन:
विषकन्या से भेंट और उसका उद्धार
भगवान कल्कि अपनी सेना के साथ काञ्चनी पुरी (कांचीपुर) पहुँचे। यह नगरी सांपों और विषकन्याओं से घिरी हुई थी। वहाँ पहुँचकर भगवान ने देखा कि नगर में मानव नहीं, बल्कि नाग-कन्याएँ निवास करती थीं। जब कल्कि जी ने प्रवेश का प्रयास किया, तो उन्हें आकाशवाणी हुई कि विषकन्याओं की दृष्टि मात्र से उनकी सेना नष्ट हो जाएगी।
कल्कि जी अकेले ही तलवार लेकर वहाँ गए और सुलोचना नामक एक विषकन्या से भेंट हुई। सुलोचना ने बताया कि वह गन्धर्व चित्रग्रीव की पत्नी थी, लेकिन एक मुनि के शाप के कारण वह विष दृष्टि वाली बन गई थी। भगवान कल्कि के दर्शन मात्र से उसका शाप समाप्त हो गया, और वह अमृत दृष्टि वाली बन गई। सुलोचना ने भगवान का आभार व्यक्त किया और अपने पति के पास स्वर्ग लौट गई।
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \चौदहवाँ अध्याय |
कल्कि जी का पराक्रम और धर्म की स्थापना
इसके बाद भगवान कल्कि ने विभिन्न राज्यों पर विजय प्राप्त की और धर्म की स्थापना की। उन्होंने:
- महामति को काञ्चनी पुरी का राजा बनाया।
- मथुरा में सूर्यकेतु को राज्य सौंपा।
- देवापि को पाँच राज्यों का अधिपति बनाया।
- अपने गोत्रजों को अन्य राज्यों का शासक बनाया।
सत्ययुग की पुनःस्थापना
भगवान कल्कि के प्रयासों से पृथ्वी पर सत्ययुग का आगमन हुआ। ब्राह्मण वेदों का पाठ करने लगे, क्षत्रिय यज्ञ और धर्म कार्यों में लग गए, वैश्य व्यापार में धर्म का पालन करने लगे, और शूद्र ब्राह्मणों की सेवा करने लगे। पृथ्वी से अधर्म, रोग और दुष्टता का नाश हो गया।
भगवान कल्कि का उद्देश्य
भगवान कल्कि का उद्देश्य केवल शत्रुओं का नाश करना नहीं था, बल्कि धर्म और सदाचार की पुनःस्थापना करना भी था। उनकी जीवन लीला हमें यह संदेश देती है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक प्रयास करना हमारा कर्तव्य है।
निष्कर्ष
भगवान कल्कि की कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर समय-समय पर धरती पर धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। उनकी लीलाएँ न केवल प्रेरणादायक हैं, बल्कि जीवन में धर्म और सत्य का पालन करने की सीख भी देती हैं।
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