पद्मावती के स्वयंवर की कहानी: बृहद्रथ के चिंतन और भगवान विष्णु के वरदान की ओर | Story of Padmavati's Swayamvar: Towards the contemplation of Brihadratha and the boon of Lord Vishnu

पद्मावती के स्वयंवर की कहानी: बृहद्रथ के चिंतन और भगवान विष्णु के वरदान की ओर

प्रस्तावना:

हिन्दू धर्म में अनेक ऐसी कथाएँ हैं जो हमें सच्चे प्रेम, कर्तव्य और भगवान के प्रति श्रद्धा का आदर्श प्रस्तुत करती हैं। इन कथाओं में सबसे प्रमुख हैं भगवान विष्णु और उनकी आराध्य देवी लक्ष्मी से संबंधित कथाएँ। एक ऐसी ही गाथा है जो पद्मावती के स्वयंवर से जुड़ी हुई है। यह कथा न केवल एक राजकुमारी के सुंदरता और सौंदर्य का बखान करती है, बल्कि यह भगवान विष्णु की महिमा और उनके द्वारा वरदान देने की शक्ति को भी दर्शाती है।

कथा का प्रारंभ:

शूक उवाच के अनुसार, बहुत समय बाद बृहद्रथ राजा ने अपनी पुत्री पद्मावती को यौवनावस्था में देखा और उसे देखते हुए वे पाप की शंका से चिंतित हो गए। राजा ने अपनी रानी कौमुदी से पूछा कि अपनी पुत्री के विवाह के लिए किस योग्य राजा को चुनें। रानी ने उन्हें भगवान विष्णु का वचन सुनाया, जिसके अनुसार पद्मावती का विवाह भगवान विष्णु से होगा। रानी ने यह भी बताया कि विष्णु भगवान का विवाह पद्मावती से तय है और इसमें कोई संदेह नहीं है।

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राजा बृहद्रथ का निर्णय:

राजा बृहद्रथ ने सोचा कि भगवान विष्णु स्वयंवर में पद्मावती को स्वीकार करेंगे, लेकिन वह यह भी जानते थे कि ऐसा कोई भाग्य उनके साथ नहीं है कि वे भगवान विष्णु को स्वयंवर में दामाद के रूप में देख सकें। इसके बावजूद, राजा ने सिंहल देश में एक भव्य स्वयंवर आयोजन का निर्णय लिया और सभी योग्य राजाओं को आमंत्रित किया। राजाओं के आने से पहले, राजा ने अच्छे स्थानों पर व्यवस्था करवाई, ताकि वे भव्य रूप से स्वागत किए जा सकें।

स्वयंवर में पद्मावती का प्रवेश:

पद्मावती का रूप अत्यंत आकर्षक था। वे एक सुंदर राजकुमारी की तरह, सजे-धजे और विभिन्न आभूषणों से विभूषित होकर स्वयंवर स्थल में प्रवेश करती हैं। उनका रूप इतना मोहक था कि उसे देखकर सभी राजा कामदेव के वश में हो जाते हैं। पद्मावती की उपस्थिति से उन सभी का ध्यान भंग हो जाता है और वे स्वयं को स्त्री रूप में बदलकर पद्मावती के पीछे चलने लगते हैं। इस दृश्य को देखकर पद्मावती दुःखी हो जाती हैं, क्योंकि वह यह समझती हैं कि सभी राजाओं का ऐसा रूप बदलना उनके लिए सही नहीं है।

पद्मावती का विलाप और शिवजी का ध्यान:

पद्मावती ने यह सब देखा और उसने अपना शोक प्रकट किया। उसने अपने आभूषण उतारकर अपनी उंगली से पृथ्वी को कुरेदा और फिर महादेव शिवजी का ध्यान करना शुरू किया। वह जानती थी कि यदि भगवान विष्णु से विवाह करना है, तो उन्हें भगवान शिव के वरदान की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

यह कथा हमें भगवान विष्णु के ऊपर अडिग विश्वास और श्रद्धा रखने की प्रेरणा देती है। जैसे पद्मावती ने भगवान विष्णु के प्रति विश्वास बनाए रखा और शिवजी का ध्यान किया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए। इस कथा से यह भी सिखने को मिलता है कि जीवन में जो भी कार्य हम करते हैं, उसमें ईश्वर की कृपा और उनके वरदान का होना अत्यंत आवश्यक है।

समाप्ति:

इस गाथा के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सत्य, श्रद्धा और ईश्वर की अनुकम्पा से ही जीवन के प्रत्येक कठिन रास्ते को पार किया जा सकता है। हमें हमेशा अपने विश्वास को मजबूत बनाकर, सही मार्ग पर चलना चाहिए, ताकि अंततः भगवान का आशीर्वाद हमारे साथ हो।

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