देवयानी और शर्मिष्ठा का वनविहार, राजा ययाति का आगमन | devayani aura sharmishtha ka vanavihar, raja yayati ka aagaman

देवयानी और शर्मिष्ठा का वनविहार, राजा ययाति का आगमन, देवयानी के साथ संवाद एवं विवाह

इस दिलचस्प कथा में देवयानी और शर्मिष्ठा के वनविहार, राजा ययाति का आगमन, और देवयानी का विवाह के निर्णय की कहानी है, जो न केवल प्रेम और निष्ठा को दर्शाती है, बल्कि ब्राह्मण-क्षत्रिय संबंधों के धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को भी उजागर करती है।

वनविहार में देवयानी और शर्मिष्ठा

शौनक जी के अनुसार, एक दिन देवयानी, अपनी सखियों और एक हजार दासियों के साथ, अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक वन में विचर रही थी। उनके साथ शर्मिष्ठा भी थी, जो असुरों के राजा वृषपर्वा की पुत्री थी। देवयानी और शर्मिष्ठा वासंतिक पुष्पों के मकरंद का पान करतीं, विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों का आनंद लेतीं और समय-समय पर फल खातीं। उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

राजा ययाति का आगमन

उसी दौरान, राजा ययाति शिकार करने के बाद अत्यधिक थककर उसी स्थान पर आए। उन्हें प्यास लग रही थी, और वे जल पीने के लिए देवयानी और शर्मिष्ठा के पास पहुंचे। राजा ययाति ने देवयानी को देखा, जो अपनी सखियों के बीच बहुत ही सुंदर लग रही थी, और उसकी ओर आकर्षित हुए। राजा ने देवयानी और शर्मिष्ठा से परिचय पूछा, और देवयानी ने उन्हें बताया कि वह असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री हैं, और शर्मिष्ठा उनकी सखी और दासी हैं।

देवयानी और ययाति के संवाद

राजा ययाति ने देवयानी से पूछा कि शर्मिष्ठा, जो असुरों के राजा की पुत्री है, आपकी सखी और दासी कैसे बनी? देवयानी ने कहा कि यह सब दैव के विधान के अनुसार हुआ है, और इसे भाग्य मानकर संतुष्ट होना चाहिए। ययाति ने अपनी पहचान बताई और कहा कि वह राजा नहुष का पुत्र हैं। देवयानी ने ययाति से पूछा कि वह जल या शिकार के लिए आए हैं, तो राजा ने उत्तर दिया कि वह शिकार कर रहे थे, और अब प्यास के कारण यहाँ आए हैं।

देवयानी का विवाह प्रस्ताव

इसके बाद देवयानी ने राजा ययाति से विवाह का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि वह अपने पिताजी से विवाह की स्वीकृति लेकर, राजा ययाति से विवाह करेंगी। राजा ययाति ने पहले अपनी असमर्थता व्यक्त की, लेकिन देवयानी ने उन्हें अपने हाथ का वरण करने के लिए राजी किया। देवयानी ने ययाति से कहा कि वह उन्हें ही अपना पति मानती हैं, क्योंकि ययाति ने सबसे पहले उनका हाथ पकड़ा था।

शुक्राचार्य की स्वीकृति और विवाह

देवयानी ने अपने पिताजी, शुक्राचार्य को संदेश भेजकर राजा ययाति से विवाह की अनुमति ली। शुक्राचार्य ने राजा ययाति को आशीर्वाद दिया और उन्हें देवयानी को अपनी पत्नी बनाने की अनुमति दी। ययाति ने शुक्राचार्य से एक वरदान माँगा कि इस विवाह में किसी भी प्रकार का वर्णसंकरजनित अधर्म न हो। शुक्राचार्य ने उनकी चिंता को दूर किया और उन्हें पूर्ण आशीर्वाद दिया कि वह देवयानी से सुखमय जीवन बिताएँगे।

विवाह की सम्पन्नता

अंततः राजा ययाति और देवयानी का विवाह हुआ, और इसके साथ ही शर्मिष्ठा को भी राजा ययाति ने आदरपूर्वक स्वीकार किया, परंतु शुक्राचार्य की सलाह अनुसार, उसने कभी शर्मिष्ठा को अपनी सेज पर स्थान नहीं दिया। इसके बाद, राजा ययाति अपनी राजधानी लौट गए, और जीवन के नए अध्याय की शुरुआत हुई।

निष्कर्ष

यह कथा न केवल विवाह और रिश्तों की धार्मिक जटिलताओं को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे व्यक्ति अपने भाग्य और सामाजिक स्थिति के अनुसार अपने निर्णय लेते हैं। देवयानी का समर्पण, ययाति की सोच और शुक्राचार्य की समझदारी ने इस विवाह को एक महाकाव्य बना दिया।

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