लिंग स्थापना से शिव प्राप्ति: आध्यात्मिक महत्व और विधि | ling sthaapana se shiv praapti: aadhyaatmik mahatv aur vidhi

लिंग स्थापना से शिव प्राप्ति: आध्यात्मिक महत्व और विधि

हिंदू धर्म में लिंग पूजा का महत्व अत्यधिक है, और इसके बारे में विस्तृत जानकारी हमें शास्त्रों और पुराणों से मिलती है। मुनिवर उपमन्यु ने श्री कृष्ण से शिव पूजा और लिंग स्थापना की सर्वोत्तम विधि के बारे में बताया, जो इस त्रिलोक में निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी के लिए अत्यधिक लाभकारी है। इस विधि को अपनाकर कोई भी प्राणी अपने जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

लिंग स्थापना की पूजा विधि:

लिंग स्थापना की पूजा विशेष प्रकार से की जाती है, जो पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। इसकी विधि निम्नलिखित है:

  1. शिवलिंग का पूजन:

    • सबसे पहले भगवान शिव को श्वेत चंदन के जल से स्नान कराना चाहिए। इसके बाद श्वेत कमल से उनकी पूजा करनी चाहिए और हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करना चाहिए।
    • भगवान शिव को कमल के आसन पर विराजमान करें और एक धातु का शिवलिंग स्थापित करें।
    • शिवलिंग के आस-पास बेल पत्रों से पूजा करें और भगवान शिव तथा देवी पार्वती का सम्मान करें।
  2. आसपास की सामग्री:

    • शिवलिंग के दाईं ओर अगर (अंगरू) रखें, पश्चिम में मैनसिल, उत्तर में चंदन और पूर्व में हरिताल लगाएं।
    • फिर भगवान शिव के चारों ओर गूगल और अगर की धूप अर्पित करें। उन्हें नए वस्त्र पहनाएं और खीर का नैवेद्य अर्पित करें।
    • घी का दीपक जलाएं और मंत्रोच्चारण करते हुए शिवलिंग की परिक्रमा करें। इस दौरान हाथ जोड़कर भगवान से क्षमा याचना करें।
  3. लाभ:

    • इस प्रकार की विधिपूर्वक पूजा करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
    • लिंग स्थापना से हर प्रकार की सिद्धियां तुरंत प्राप्त होती हैं, और इस विधि का पालन करने से जीवन में शांति, सुख, और सफलता का वास होता है।

लिंग स्थापना और शिव की प्राप्ति:

मुनिवर उपमन्यु ने श्री कृष्ण से कहा कि जितनी भी सिद्धियां हैं, वे सभी शिवलिंग की स्थापना से तत्काल प्राप्त हो जाती हैं। क्योंकि संसार में जो कुछ भी है, वह लिंग के रूप में प्रतिष्ठित है। शिवलिंग के पूजन से ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र जैसे देवताओं की प्रतिष्ठा भी होती है, और ये देवता अपने पदों पर स्थिर रह पाते हैं।

शिवलिंग, तीन गुणों के उत्पन्न होने का कारण है और वह आदि और अंत से रहित है। संसार का मूल प्रकृति है, और इसी से जगत की उत्पत्ति होती है। भगवान शिव और देवी पार्वती की आज्ञा के बिना इस संसार में कुछ भी संभव नहीं है।

प्रलय के समय शिवलिंग का प्रकट होना:

शिवलिंग के महत्व को समझाने के लिए मुनिवर उपमन्यु ने एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख किया। जब त्रिलोकी में प्रलय आया था, तब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेष शय्या पर सो रहे थे। उनके नाभि कमल से ब्रह्माजी का जन्म हुआ, और भगवान शिव की माया से मोहित होकर ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु से पूछा, "तुम कौन हो?" इस प्रश्न ने दोनों देवताओं के बीच विवाद और युद्ध को जन्म दिया।

तब भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए और उन्होंने दोनों देवताओं के बीच युद्ध को रोकने के लिए एक दिव्य अग्नि के रूप में लिंग प्रकट किया। ब्रह्मा और विष्णु ने लाख कोशिशों के बावजूद लिंग के आदि-अंत का पता नहीं लगाया और अंततः वे दोनों हाथ जोड़कर शिवलिंग की पूजा करने लगे।

निष्कर्ष:

लिंग स्थापना का महत्त्व अत्यधिक है। यह न केवल एक पूजा विधि है, बल्कि यह शिव की शक्ति और सौम्यता का प्रतीक है। लिंग पूजा से व्यक्ति को न केवल सिद्धियां प्राप्त होती हैं, बल्कि मोक्ष भी मिलता है। यह विधि हमें यह सिखाती है कि यदि हम सही विधि और श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करते हैं, तो जीवन में हर तरह की समृद्धि और शांति प्राप्त की जा सकती है।

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