पार्थिव लिंगों की पूजा: करोड़ों यज्ञों का फल एवं शिवलिंग की संख्या | paarthiv lingon kee pooja: karodon yagyon ka phal evan shivaling kee sankhya
पार्थिव लिंगों की पूजा: करोड़ों यज्ञों का फल एवं शिवलिंग की संख्या
पार्थिव लिंगों की पूजा का महत्त्व
सूत जी बोले— हे महर्षियो! पार्थिव लिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली होती है। विशेष रूप से कलियुग में शिवलिंग पूजन मनुष्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ साधना मानी गई है। यह पूजा भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली होती है और शास्त्रों में इसे निश्चित रूप से श्रेष्ठ माना गया है।
शिवलिंग तीन प्रकार के होते हैं— उत्तम, मध्यम और अधम।
चार अंगुल ऊंचे वेदी सहित सुंदर शिवलिंग को 'उत्तम शिवलिंग' कहा जाता है।
उत्तम से आधे आकार के शिवलिंग को ‘मध्यम’ और
मध्यम से आधे आकार के शिवलिंग को 'अधम' कहा जाता है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को वैदिक विधि से श्रद्धापूर्वक शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
पार्थिव लिंगों की संख्या
ऋषियों ने पूछा— हे सूत जी! शिवजी के पार्थिव लिंग की कुल कितनी संख्या होती है?
सूत जी बोले— हे ऋषियो! पार्थिव लिंगों की संख्या मनोकामना पर निर्भर करती है। विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति हेतु पार्थिव लिंगों की पूजा की जाती है:
बुद्धि प्राप्ति के लिए— 1000 पार्थिव शिवलिंग
धन प्राप्ति के लिए— 1500 पार्थिव शिवलिंग
वस्त्र प्राप्ति के लिए— 500 पार्थिव शिवलिंग
भूमि प्राप्ति के लिए— 1000 पार्थिव शिवलिंग
दयाभाव प्राप्ति के लिए— 3000 पार्थिव शिवलिंग
तीर्थ यात्रा की इच्छा हेतु— 2000 पार्थिव शिवलिंग
मोक्ष प्राप्ति के लिए— 1 करोड़ पार्थिव शिवलिंग
पार्थिव लिंगों की पूजा के लाभ
पार्थिव लिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों के समान फलदायक होती है और उपासक को भोग तथा मोक्ष प्रदान करती है। इसके समान कोई अन्य साधना नहीं मानी गई है।
शिवलिंग की नियमित पूजा करने से मनुष्य सभी विपत्तियों से मुक्त हो जाता है।
यह भवसागर से तरने का सबसे सरल उपाय है।
हर रोज वेदोक्त विधि से लिंग का पूजन करना चाहिए।
भगवान शंकर का नैवेद्य सहित पूजन करना चाहिए।
शिव पूजा की विधि
भगवान शंकर की आठ मूर्तियाँ हैं— पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा और यजमान। इनके अतिरिक्त शिव, भव, रुद्र, उग्र, भीम, ईश्वर, महादेव और पशुपति नामों का भी पूजन करना चाहिए।
पूजा सामग्री:
अक्षत, चंदन, बेलपत्र लेकर भक्तिपूर्वक शिवजी का पूजन करें।
शिवजी के परिवार— ईशान, नंदी, चण्ड, महाकाल, भृंगी, वृष, स्कंद, कपर्दीश्वर, शुक्र और सोम का पूजन करें।
शिव के वीरभद्र और कीर्तिमुख के पूजन के पश्चात ग्यारह रुद्रों की पूजा करें।
पंचाक्षर मंत्र का जाप करें और शतरुद्रिय तथा शिवपंचांग का पाठ करें।
अंत में शिवलिंग की परिक्रमा कर विसर्जन करें।
पूजन में दिशा का ध्यान
उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही सभी देवकार्यों को करना चाहिए।
पूजन करते समय भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए।
जहां शिवलिंग स्थापित हो वहां पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में न बैठें, क्योंकि:
पूर्व दिशा शिवजी के सामने पड़ती है, और इष्टदेव का सामना नहीं रोकना चाहिए।
उत्तर दिशा में देवी उमा विराजमान हैं।
पश्चिम दिशा में शिवजी का पीछे का भाग होता है, जिससे पीछे से पूजा नहीं की जा सकती।
इसलिए दक्षिण दिशा में उत्तराभिमुख होकर बैठना चाहिए।
विशेष नियम
शिव उपासकों को भस्म से त्रिपुण्ड लगाकर, रुद्राक्ष की माला धारण कर, बेलपत्र आदि से भगवान का पूजन करना चाहिए।
यदि भस्म उपलब्ध न हो तो मिट्टी से ही त्रिपुण्ड बनाकर पूजन करना चाहिए।
निष्कर्ष
पार्थिव शिवलिंग की पूजा अत्यंत पुण्यदायी और फलदायी होती है। यह न केवल जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करती है, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का भी मार्ग प्रशस्त करती है। अतः सभी भक्तों को श्रद्धापूर्वक शिवलिंग का पूजन करना चाहिए और अपने जीवन को कल्याणकारी बनाना चाहिए।
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