शिवलिंग का रहस्य एवं महत्व
शिव पुराण में भगवान शिव के लिंग स्वरूप का रहस्य एवं महत्व विस्तार से वर्णित किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार, शिवलिंग न केवल शिवजी का प्रतीक है, बल्कि सृष्टि, पालन और संहार की अनंत शक्ति का प्रतीक भी है। शिवलिंग की स्थापना और पूजा करने से भक्त को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
शिवलिंग की महिमा
सूत जी शौनक जी से कहते हैं कि श्रवण, कीर्तन और मनन जैसे साधनों को अपनाना प्रत्येक के लिए संभव नहीं होता। इसके लिए योग्य गुरु और आचार्य की आवश्यकता होती है। गुरुमुख से सुनी गई वाणी मन की शंकाओं को दूर करती है और शिव तत्व को आत्मसात करने में सहायता करती है। जब भक्त शिव तत्व को समझता है, तब वह कीर्तन और भक्ति में लीन हो पाता है। यदि कोई व्यक्ति इन साधनों को अपनाने में असमर्थ हो, तो उसे शिवलिंग अथवा शिवमूर्ति की स्थापना कर नियमित रूप से उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे वह इस संसार रूपी सागर से पार हो सकता है।
शिवलिंग की स्थापना और पूजा
भक्त को अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार धन एकत्र कर शिवलिंग या शिवमूर्ति की स्थापना करनी चाहिए और श्रद्धा-भक्ति के साथ उनकी पूजा करनी चाहिए। शिव पूजा के लिए मठ, तीर्थ, गोपुर और मंडप की स्थापना की जाती है, साथ ही उत्सवों का आयोजन भी किया जाता है। भगवान शिव को पुष्प, धूप, वस्त्र, गंध, दीप और विविध प्रकार के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
शिवलिंग का दार्शनिक और आध्यात्मिक स्वरूप
भगवान शिव ब्रह्म स्वरूप हैं और निष्कल (कला रहित) एवं सकल (कला सहित) दोनों रूपों में पूजनीय हैं। वेदों में शिवलिंग की पूजा का विधान भी बताया गया है। शिव पुराण के अनुसार, लिंग रूप में भगवान शिव का पूजन करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा
सनत्कुमार जी ने नंदिकेश्वर से लिंग और मूर्ति की उत्पत्ति के विषय में पूछा, तब नंदिकेश्वर ने बताया कि प्राचीन काल में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव एक विशाल अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिसका न आदि था और न अंत। जब ब्रह्मा और विष्णु इस स्तंभ का रहस्य जानने में असमर्थ रहे, तब उन्होंने भगवान शिव की स्तुति की और शिवजी ने प्रकट होकर उन्हें ज्ञान प्रदान किया। तभी से शिवलिंग की पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
शिवलिंग और मूर्ति पूजा का महत्व
इस घटना के बाद से ही महादेव की लिंग और मूर्ति दोनों रूपों में पूजा की जाने लगी। अन्य देवताओं की मूर्ति पूजा का विधान तो पहले से था, लेकिन भगवान शिव की पूजा लिंग और मूर्ति दोनों रूपों में की जाने लगी। शिवलिंग की पूजा करने से साधक को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यह पूजा व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाती है।
निष्कर्ष
शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग केवल एक पत्थर का टुकड़ा नहीं, बल्कि भगवान शिव का दिव्य स्वरूप है। इसकी पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। शिवलिंग की स्थापना और उसकी उपासना से साधक अपनी आत्मा को शुद्ध कर शिवत्व की प्राप्ति कर सकता है।
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