चैत्र नवरात्रि का इतिहास: कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत | Chaitra Navratri ka itihaas: kaise huee is parv kee shuruaat
चैत्र नवरात्रि का इतिहास: कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत?
चैत्र नवरात्रि, हिन्दू धर्म के पावन महीने ‘चैत्र’ में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है। इस नवरात्रि का आयोजन मां दुर्गा की पूजा और अर्चना के साथ किया जाता है, जिससे माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है। यह नवरात्रि चैत्र मास के प्रथम दिन से शुरू होती है और नौ दिनों तक चलती है। चैत्र नवरात्रि का आरंभ आम तौर पर पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। लोग इस उत्सव के दौरान अपने घरों को सजाते हैं, मंदिरों में दीपों का प्रकाश करते हैं, और मां दुर्गा के मंदिरों में भक्ति भाव से जाते हैं। चैत्र नवरात्रि के दिनों में, लोग मां दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके भवनों को सजाते हैं। नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्रि का इतिहास: कैसे हुई इस पर्व की शुरुआत?
चूंकि चैत्र नवरात्रि का त्योहार वसंत ऋतु में मनाया जाता है, इसलिए इसे वसंत नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, भक्त पारंपरिक तरीकों या शास्त्रों में बताए अनुसार कई प्रसाद और अनुष्ठानों के साथ देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। नौ दिनों में से प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक विशेष रूप को समर्पित है। नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
पूजा के अलावा, कई भक्त मांसाहारी खाद्य पदार्थों, प्याज, लहसुन और शराब का सेवन न करके उपवास रखते हैं और सात्विक भोजन करते हैं। चैत्र नवरात्रि राम नवमी के साथ समाप्त होती है, जिसे वह दिन माना जाता है जब भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम ने अयोध्या में राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। चैत्र नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है। यह भी माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि के दिनों में पूजा और उपवास करने से भक्तों को सुखी, सफल और समृद्ध जीवन के लिए देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद मिलती है।
नवरात्रि की शुरुआत कैसे हुई थी?
मां दुर्गा को शक्ति का रूप कहा जाता है। नवरात्रि में सभी भक्त आध्यात्मिक शक्ति, सुख, समृद्धि की कामना करने के लिए इनकी उपासना करते हैं और व्रत रखते हैं। जिस राजा के द्वारा नवरात्रि की शुरुआत की गई थी, उन्होंने देवी दुर्गा से आध्यात्मिक बल और विजय की कामना के लिए व्रत और उनकी उपासना की थी। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में उल्लेख मिलता है कि किष्किंधा के पास ऋष्यमूक पर्वत पर लंका की चढ़ाई करने से पहले प्रभु राम ने माता दुर्गा की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने भगवान राम को देवी दुर्गा के स्वरूप चंडी देवी की पूजा करने की सलाह दी और ब्रह्मा जी की सलाह पाकर भगवान राम ने प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक चंडी देवी की उपासना और पाठ किया था।
ब्रह्मा जी ने चंडी पूजा पाठ के साथ ही राम जी को बताया कि आपकी पूजा तभी सफल होगी जब आप चंडी पूजा और हवन के बाद 108 नीलकमल भी अर्पित करेंगे। नीलकमल दुर्लभ माने जाते हैं। राम जी ने अपनी सेना की मदद से 108 नीलकमल ढूंढ लिए। लेकिन जब रावण को यह पता चला कि राम चंडी देवी की पूजा कर रहे हैं और नीलकमल ढूंढ रहे हैं, तो उसने अपनी मायावी शक्ति से एक नीलकमल गायब कर दिया। चंडी पूजा के अंत में जब भगवान राम ने वे नीलकमल चढ़ाए तो उनमें एक कमल कम निकला। यह देखकर वह चिंतित हुए और अंत में उन्होंने कमल की जगह अपनी एक आंख माता चंडी पर अर्पित करने का फैसला लिया। अपनी आंख अर्पित करने के लिए जैसे ही उन्होंने तीर उठाया तभी माता चंडी प्रकट हुईं और माता चंडी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया।
निष्कर्ष
चैत्र नवरात्रि का यह पावन पर्व न केवल देवी दुर्गा की शक्ति और उपासना का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मसंयम, भक्ति और श्रद्धा का भी प्रतीक है। इस दौरान की जाने वाली पूजा-अर्चना, उपवास और साधना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्तों को देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय और शक्ति की उपासना का संदेश देता है।
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