देवयानी और शर्मिष्ठा का संवाद: ययाति का शाप और वृद्धावस्था | devayaanee aur sharmishtha ka sanvaad: yayaati ka shaap aur vrddhaavastha

देवयानी और शर्मिष्ठा का संवाद: ययाति का शाप और वृद्धावस्था

यह कथा ययाति के जीवन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना का वर्णन करती है, जो उनके और उनके परिवार के बीच हुई भावनात्मक संघर्ष और धार्मिक मान्यताओं को उजागर करती है। जब देवयानी ने शर्मिष्ठा के पुत्र होने की खबर सुनी, तो वह दुखी और नाराज हो गई। उसने शर्मिष्ठा से इस बारे में पूछा और खुद को उसकी बातों से आहत पाया।

देवयानी और शर्मिष्ठा का संवाद

देवयानी शर्मिष्ठा से कहती है, "सुंदर भौंहों वाली शर्मिष्ठा! तुमने क्या पाप कर डाला है?" शर्मिष्ठा ने उत्तर दिया कि उसने एक महान ऋषि से धर्मानुसार संतान प्राप्त की है। देवयानी ने इसके बाद शर्मिष्ठा से पूछा कि उसने उस ऋषि का नाम और गोत्र क्या सुना है, जिससे वह प्रसन्न हुई।

शर्मिष्ठा ने बताया कि वह ऋषि अत्यंत तेजस्वी और ज्ञान में निपुण थे, जिनके तप के कारण वह प्रभावित हुई। देवयानी ने फिर इस पर विश्वास करते हुए बात की और यह समझने की कोशिश की कि उसे कोई भ्रम नहीं था। इसके बाद, देवयानी महल लौट आई, लेकिन उसे ययाति और शर्मिष्ठा के पुत्रों के बारे में चिंता थी।

देवयानी का रुख और ययाति का निर्णय

जब देवयानी ययाति के साथ वन में आई, तो उसने वहाँ कुछ सुंदर बालकों को देखा जो उसे देवताओं के समान लगे। उन बच्चों से पूछा कि वे कौन हैं और उनके पिताजी का नाम क्या है। बच्चों ने ययाति और शर्मिष्ठा के संबंध का खुलासा करते हुए कहा कि वे शर्मिष्ठा के पुत्र हैं। यह सुनकर देवयानी को गहरा आघात लगा, और वह शर्मिष्ठा से गुस्से में बोल पड़ी, "तुमने मुझसे कैसे ऐसा व्यवहार किया?" शर्मिष्ठा ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया कि उसने कोई गलत कार्य नहीं किया, क्योंकि वह न्याय और धर्म का पालन करती है।

देवयानी का शोक और शुक्राचार्य का शाप

देवयानी ने शर्मिष्ठा से नाराज होकर शुक्राचार्य के पास जाने का निर्णय लिया। जब वह शुक्राचार्य के पास पहुंची, तो उसने अपनी दुखभरी कहानी सुनाई। देवयानी ने बताया कि शर्मिष्ठा ने उसका अपमान किया और ययाति ने भी उसका साथ दिया। शुक्राचार्य ने ययाति को शाप दिया कि वह जल्द ही वृद्ध हो जाएगा, क्योंकि उसने धर्म से भटककर अधर्म का पालन किया था।

ययाति ने अपनी वृद्धावस्था से मुक्ति पाने की प्रार्थना की, और शुक्राचार्य ने उसे एक विशेष वरदान दिया। उन्होंने कहा कि वह किसी अन्य व्यक्ति से अपनी जवानी ले सकता है, लेकिन इसके बदले वह अपने बेटे को जवानी देकर उसे राजा बना सकता है।

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि ययाति ने धर्म और आचारों का उल्लंघन किया था, जिससे उसे वृद्धावस्था का शाप मिला। शुक्राचार्य की कृपा से उसे जवानी वापस पाने का अवसर मिला, लेकिन उसने अपने पुत्रों को इसका हिस्सा दिया, जिससे एक नया दृष्टिकोण और धर्म की ओर लौटने की कथा का निर्माण हुआ।

निष्कर्ष

यह कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म, आचार, और सत्य का पालन जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। जब कोई व्यक्ति अधर्म के मार्ग पर चलता है, तो उसे निश्चित रूप से उसका परिणाम भुगतना पड़ता है। ययाति की कथा यह भी बताती है कि भगवान या गुरु की कृपा से जीवन में सुधार और पुनः सुधार की संभावना बनी रहती है, बशर्ते वह सही दिशा में प्रयास करें।

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