होलाष्टक क्या है और होलाष्टक में क्या करें
होलाष्टक क्या है?
होलाष्टक आठ दिन का पर्व है। अष्टमी तिथि से शुरू होने के कारण इसे होलाष्टक कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। होली के आगमन की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है, यानी कि होली के आठ दिन पहले से होलाष्टक मनाया जाता है। इस काल का विशेष महत्व होता है, और इसी अवधि में होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से, होलाष्टक को अशुभ माना गया है।
होलाष्टक में क्या करें?
होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने की मनाही होती है, लेकिन इन दिनों में अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना, व्रत-उपवास एवं धर्म-कर्म के कार्य किए जा सकते हैं। वस्त्र, अनाज और अपनी इच्छा व सामर्थ्य के अनुसार धन का दान जरुरतमंदों को देना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
होलाष्टक का महत्व
ज्योतिषीय शास्त्रों के अनुसार, होली से पूर्व होलाष्टक का विशेष महत्व होता है। इसे नवनेष्ट यज्ञ की शुरुआत का कारक भी माना जाता है। इस दौरान नए फलों, अन्न, चने, गन्ने आदि का प्रयोग प्रारंभ कर दिया जाता है। इस वर्ष जिन लड़कियों की शादी हुई हो, उन्हें अपने ससुराल में पहली होली नहीं देखनी चाहिए।
होलाष्टक की कथा
एक दूसरी कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद्भक्ति से हटाने और स्वयं को भगवान के रूप में पूजवाने के लिए अनेक यातनाएँ दीं। जब वह किसी भी उपाय से सफल नहीं हुआ, तो उसने होली से आठ दिन पहले प्रह्लाद को मारने के प्रयास शुरू कर दिए। लगातार आठ दिनों तक भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और अंततः होलिका के अंत के साथ यह अत्याचार समाप्त हुआ। इस कारण, भक्तजन इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं और इन दिनों में शुभ कार्यों से परहेज करने की परंपरा है। उनका विश्वास है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
टिप्पणियाँ