भगवान शिव ने कामदेव को अपने ताप से दहिनेत्र में जलाया था

भगवान शिव ने कामदेव को अपने ताप से दहिनेत्र में जलाया था 

भगवान शिव ने कामदेव को अपने ताप से दहिनेत्र में जलाया था। यह घटना पुराणों में विवरणित है और महाशिवरात्रि के उत्सव के दौरान यह कथा सामान्यतः बताई जाती है।

Lord Shiva burnt Kamadeva in his right eye with his heat

कथानुसार, देवताओं ने देवराज इंद्र के प्रमुखत्व में कामदेव को शिव पर प्रेम भाव से चाण्डावतन वन में भेजा। कामदेव की मूर्ति पर शिव ध्यान में थे और वहां उन्होंने ताप सृष्टि की आग उग्र कर दी। शिव ने अपनी तेज दहिनेत्र में धारण की और कामदेव को जला दिया।इस हादसे के पश्चात्, रतिदेवी रति, कामदेव की पत्नी, शिव के सामीप गई और उन्हें प्रार्थना करते हुए कहा कि कृपया अपने पति को जीवित करें और उन्हें माफ करें। भगवान शिव ने रति की प्रार्थना को स्वीकार किया और उन्होंने कामदेव को जीवित कर दिया।
इस प्रकार, भगवान शिव ने कामदेव की दहिनेत्र में जलाने के बाद उन्हें पुनर्जीवित किया। यह कथा शिव भक्तों के बीच प्रसिद्ध हुई है और इसे बहुतायत संस्कृति और साहित्य में प्रप्रस्तुत किया गया है। भगवान शिव की इस कथा के माध्यम से उनकी शक्ति, ताप, और दया का प्रदर्शन हुआ है। यह घटना शिव भक्तों के लिए उपयोगी उदाहरण है, जो उन्हें भगवान शिव की पूजा और सेवा में अधिक आत्मनिष्ठा के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करता है।

कामदेव की कथा एक प्रसिद्ध पुराणिक कथा है, 

जो कामदेव के प्रतिष्ठान प्रशंसा करती है और उनके प्रमुख कार्यों और महत्व को वर्णित करती है। यह कथा अन्य पुराणों और तांत्रिक साहित्य के साथ जुड़ी हो सकती है, जिसमें कामदेव के जीवन के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की गई है। निम्नलिखित एक संक्षेप में उसका वर्णन किया गया है:
कामदेव की कथा के अनुसार, एक समय कामदेव ने अपनी पत्नी रति के साथ देवराज इंद्र के पास जाकर कहा, "हे महाराज! मैं भगवान शिव की तपस्या और ध्यान में लगे हुए हूँ। शिव की ध्यान में वे इतने लीन हो गए हैं कि वे अब दुनिया के सारे सुखों का त्याग कर चुके हैं। मेरी योग्यता परमेश्वर को उनके ध्यान से बाहर निकालने का आदेश देने के लिए है।"इंद्र ने इस बात को नहीं माना और कहा, "अरे कामदेव! तुम अपनी इस कठिनाई में स्वयं ही ज़िंदारहो। शिव के साम्राज्य की रक्षा मुझे और मेरी सेना को सौंप दो।"इस पर कामदेव ने एक अत्याधुनिकआस्त्र उठाया और उससे एक विशेष बाण तैयार किया। यह विशेष बाण रति के साथ चाण्डावतन वन में गया और वहां भगवान शिव के आग्रह पर उसे छोड़ दिया। बाण शिव को छूकर उन्हें प्रेमास्पद बना दिया। इससे शिव के ताप से प्रभावित होकर उन्होंने अपने ध्यान से बाहर निकलते हुए अपनी आंखें खोलीं।इस घटना से भगवान शिव बहुत रोषित हुए और उन्होंने कामदेव को अपनी त्रिशूल से चोट पहुंचाई, जिससे कामदेव की मृत्यु हो गई। रति और अन्य देवीदेवताएं दुखी हो गईं और उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि कृपया कामदेव को जीवित करें और उन्हें माफ़ करें।
इस पर भगवान शिव ने अपनी कृपा की और कामदेव को जीवित कर दिया। यह घटना भगवान शिव की करुणाऔर प्रेम का प्रतीक मानी जाती है और कामदेव के बलिदान को सम्मानित करती है।
  1. भगवान शिव का भावी स्वरूप कामदेव (कामदेवता) कहलाता है।
  2. कामदेव को देवताओं का देवता माना जाता है, जिसे प्रेम और काम का देवता भी कहा जाता है।
  3. कामदेव की पत्नी रति है, जो प्रेम और सुंदरता की देवी कही जाती है।
  4. कामदेव की उत्पत्ति मानसपुत्र ब्रह्मा के वचन से हुई है।
  5. कामदेव का वाहन मदन मखरी (पर्रोट) है।
  6. कामदेव के पास अनन्य शक्तियाँ होती हैं, जिनमें से प्रमुख हैं रति, प्रीति, प्रामोद, विस्मय, हंस, विकृति, विद्युत, उद्गार, विवासना, विमोहन, मधुरता, वशिकरण, आकर्षण, रमण, चण्ड, चञ्चलता, संकोच, दुःख, आनंद, वेग, ताप, धर्म, क्षमा, सत्य, विजय, और प्रशांति।
  7. कामदेव का वास्तविक स्वरूप दिव्य और अदृश्य होता है, और उनका दर्शन केवल ध्यान और साधना के माध्यम से ही प्राप्त होता है।
  8. कामदेव का जन्मस्थान प्राचीन भारतीय पौराणिक साहित्य में मथुरा के पास मांथर नगर माना जाता है।
  9. कामदेव की उपास कामदेव की उपासना माघ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, फाल्गुन मास की पूर्णिमा, और कार्तिक मास की अमावस्या पर विशेष रूप से की जाती है।
  10. कामदेव के प्रतिमा और विग्रह मंदिरों में पूजे जाते हैं, जहां उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और मन्त्रों की अर्चना की जाती है।
  11. कामदेव शक्तिशाली विद्युत कुंडलिनी शक्ति के स्वामी माने जाते हैं।
  12. कामदेव को विवाह, प्रेम और सुंदरता का प्रमुख प्रतीक माना जाता है।
  13. कामदेव का वर्णन मुख्य रूप से कामदेव और रति संहिता, भागवत पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण, वायु पुराण, और कामसूत्र में मिलता है।
  14. कामदेव को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे कि आनंद, मन्मथ, मदन, देवराज, पुष्पात्मज, पुष्पबाण, अनंग, काम, मनोहारी, रंगीला, विश्वरूप, और कामपाल।
  15. कामदेव का पूजन भारत के विभिन्न भागों में विशेष रूप से मनाया जाता है, जैसे कि होली (फागुन पूर्णिमा) और वसंत पंचमी।
  16. कामदेव की प्रधान शक्तियाँ मानसी, रति, पूष्पवती, विश्वजननी, रतिप्रिया, प्रीतिवती, कंचनकामिनी, मदनमोहिनी, रमणप्रिया, रंगरागिनी, मधुरा, मनोहारिणी, आनंदप्रदा, वासन्तिका, रमणी, कामिनी, कामिता, रमारमाणी, श्रीप्रिया, विश्वरूपा, रंगिनी, मनोहरी, मदनरूपा, मदनार्चिता, और रंगवती हैं।
  17. कामदेव के बाण प्रभावशाली होते हैं और उनका लक्ष्य प्रेम, अनुभव, और सुंदरता को प्रकट करना होता है।
  18. कामदेव और रति की प्रमुख कथाएं उपासना और अनुष्ठानों के माध्यम से प्रचारित होती हैं, जिनमें से प्रमुख हैं कामदेव और रति का मोहिनी व्रत, कामगीता, और रतिसप्तमी।
  19. कामदेव के जीवन की कई कथाएं और अनेक रूप उपनिषदों और पुराणों में प्रस्तुत हैं, जो उनकी महत्त्वपूर्णता और प्रभाव को दर्शाती हैं।
  20. कामदेव की उपासना से प्राप्त फल में सुख, प्रेम, समृद्धि, सुंदरता, सम्पत्ति, और परम आनंद शामिल हो सकते हैं।

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