मासिक कालाष्टमी क्या है

मासिक कालाष्टमी क्या  है  what is monthly kalashtami

मासिक कालाष्टमी, हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला एक त्योहार है। यह प्रत्येक माह के कालाष्टमी को संदर्भित करता है।
हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, जो कि हिंदू पंचांग में उल्लिखित होती है, मासिक कालाष्टमी के रूप में मानी जाती है। यह त्योहार भगवान शिव को समर्पित होता है।
लोग इस दिन भगवान शिव की पूजा, अर्चना, व्रत, और ध्यान करते हैं। शिवलिंग की पूजा की जाती है, और भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की जाती है।
मासिक कालाष्टमी शिवरात्रि के रूप में भी मनाई जाती है और इसे भगवान शिव के अवतरण की उत्सव रूप माना जाता है। यह त्योहार भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और लोग इसे धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

जानिए 04 जनवरी 2024 को मासिक कालाष्टमी के बारे में कालाष्टमी भगवान शिव को समर्पित है। यह प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 

मासिक कालाष्टमी महत्व और व्रत अनुष्ठान

मासिक कालाष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव को समर्पित होता है। मासिक कालाष्टमी को शिवरात्रि के रूप में भी माना जाता है। इस दिन भक्त भगवान शिव की पूजा, अर्चना, व्रत, और ध्यान करते हैं।
मासिक कालाष्टमी का व्रत अनुष्ठान करने से मान्यता है कि इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और वह अपने भक्तों की मांग पूरी करते हैं। विशेष रूप से शिवरात्रि के दिन या अन्य माहों की कालाष्टमी पर व्रत रखने से माना जाता है कि यह संसारिक संकटों को दूर करता है और मानवता को शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
व्रत के दौरान व्रती लोग उपवास करते हैं और शिवलिंग की पूजा करते हैं। वे पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, बेलपत्र, बिल्वपत्र, श्रृंगार के अनुसार पूजा करते हैं। ध्यान और मंत्रजाप करने के साथ ही व्रती भक्तगण भगवान शिव को अर्पित होते हैं।
इस त्योहार को मान्यता से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और लोग इसे भक्ति और समर्पण के साथ मनाते हैं।

आम कालाष्टमी पूजा की विधि के तत्व 

कालाष्टमी पूजा को ध्यान से और नियमित तरीके से अनुसरण करना चाहिए। यहां कुछ आम कालाष्टमी पूजा की विधि के तत्व हैं:
  • सामग्री:
  • पूजन सामग्री: शिवलिंग, बिल्वपत्र, धूप, दीप, पुष्प, जल, नैवेद्य (फल या मिठाई), गंगाजल या स्थानीय पानी, कांच का कटोरा, रोली, चावल, सिंदूर, गंगाजल, गुड़, दही, दूध, घी, शक्कर, एलायची, धातु कलश, पूजा के उपकरण।
  • कपूर और अगरबत्ती: शुभता और शुद्धि के लिए।
  • पूजा की किताब: अनुष्ठान की सहायता के लिए।
पूजा की विधि:
  • स्नान: शुद्धि के लिए उपयुक्त है।
  • पूजा स्थल की सजावट: पूजा स्थल को सजाने के बाद, शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए।
  • संकल्प: मन में पूजा का उद्देश्य और संकल्प लेना।
  • पूजा अर्चना: मंत्रों का पाठ, शिवलिंग की अर्चना, बिल्वपत्र की अर्चना, प्रार्थना।
  • आरती: शिवलिंग की आरती करना।
  • प्रसाद भोग: भोग लगाना और फिर इसे प्रसाद के रूप में साझा करना।
  • ध्यान और ध्यानावस्था: ध्यान में ध्यान देना और शिव के गुणों को याद करना।
  • कथा और स्तोत्र पाठ: शिव की कथाएं और स्तोत्र पाठ करना।
  • समापन: आरती करना और पूजा का समापन करना।
यह सामान्यत: पूजा की कई स्थापनाएं और अनुष्ठानों को सम्मिलित करती है। पूर्व से योजना बनाना और पंडित या पूजारी की सलाह लेना बेहतर हो सकता है।

कालाष्टमी  की कथा  

कालाष्टमी कथा में विशेष रूप से भगवान शिव और माँ काली की महिमा और उनके बारे में वर्णन होता है। यह कथा उनके अद्भुत लीलाओं और कृपाओं को बताती है जो उन्होंने अपने भक्तों पर दिखाए।
कालाष्टमी कथा में, एक बार भगवान शिव ने अपनी पत्नी माँ पार्वती से कहा कि वह और वही शक्ति हैं, जो समस्त सृष्टि को चालित करती हैं। इस पर माँ पार्वती ने अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने का निर्णय किया।
माँ पार्वती ने अपनी शक्ति को दिखाने के लिए एक विशेष स्वरूप में प्रकट होकर मानव रूप धारण किया। उन्होंने अपने भक्तों की रक्षा के लिए काली रूप में प्रकट होकर असुरों का संहार किया और उन्हें परास्त किया।
कालाष्टमी कथा में इस बात को जोर दिया जाता है कि माँ काली हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और बुराई को नष्ट करती हैं। इसीलिए भक्तों को उनकी शक्ति और कृपा में विश्वास रखना चाहिए।
कालाष्टमी कथा को सुनकर भक्तों को शिव और शक्ति के अद्भुत सम्बंध का अनुभव होता है और वे उनकी पूजा और समर्पण में विश्वास और समर्थ होते हैं।

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