पाठ राम रक्षा स्तोत्र का अर्थ सहित

पाठ राम रक्षा स्तोत्र का अर्थ सहित Recitation of Ram Raksha Stotra with meaning

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के रूप का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"जो भी मनुष्य दिव्य नामों से भगवान श्रीराम को जो स्तुति करते हैं, वे न संसारी होते हैं और न ही उनके दुःखों में व्यस्त रहते हैं।"

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के सिफारिशों का सजीव वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"मैं श्रीराम को नमन करता हूं, जो लक्ष्मण के पूर्वज, रघुवंश का श्रेष्ठ, सीता के पति, सुंदर, काकुत्स्थ (दाशरथ के पुत्र), करुणा के समुद्र, गुणों का भंडार, ब्राह्मणों का प्रिय, धार्मिक, राजाओं का राजा, सत्य के प्रतीक, दशरथ के पुत्र, श्यामल (काले रंग के), शांत स्वरूप, लोकों को प्रिय और रावण का वध करने वाले राघव को, रघुकुल का तिलक, मैं नमन करता हूं।"

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम को समर्पित है। इसका अर्थ है:
"मैं भगवान श्रीराम को नमस्कार करता हूं, जो राम, रामभद्र, रामचंद्र, वेदों के ज्ञान के धारक, रघुनाथ, सबके नाथ, सीता के पति हैं।"

श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के विभिन्न नामों का उच्चारण करता है। यहां 'राम' के विभिन्न स्वरूपों और गुणों का संक्षेपण किया गया है। यह नामों का उच्चारण उनके विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है।
- श्रीराम: श्रीराम, जो महान और श्रेष्ठ हैं।
- रघुनंदनराम: रघुवंश के लोगों के श्रेष्ठ और प्रिय राम।
- भरताग्रज राम: भरत के बड़े भाई राम।
- रणकर्कश राम: योद्धा राम, जो युद्ध में अद्वितीय और शक्तिशाली हैं।
- शरणं भव राम: राम, हे भवसागर में शरण लेने योग्य हैं।

श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥

यह श्लोक श्रीराम चंद्र के चरणों को स्मरण, गुणगान, नमन, और शरणागति का वर्णन करता है। यह एक प्रार्थनात्मक श्लोक है जो भक्ति और श्रद्धा को दर्शाता है।
- मनसा स्मरामि: मैं मन से उनके चरणों को स्मरण करता हूँ।
- वचसा गृणामि: मैं वचन से उनके चरणों की स्तुति करता हूँ।
- शिरसा नमामि: मैं शिर से उनके चरणों को नमन करता हूँ।
- शरणं प्रपद्ये: मैं उनके चरणों की शरण में आत्मसमर्पण करता हूँ।

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी,
रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं,
जाने नैव जाने न जाने ॥30॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के महानता को दर्शाता है। इसमें कहा गया है:
"मेरी माँ भी राम हैं, मेरे पिता भी रामचंद्र हैं, मेरे स्वामी भी राम हैं, मेरे सखा भी रामचंद्र हैं। मेरे सबकुछ भी रामचंद्र ही हैं, मेरे अलावा कोई और नहीं हैं, मैं जानता हूँ और नहीं जानता हूँ, और इस सिद्धांत को ही जानता हूँ।"

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