राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित

राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित Ram Raksha Stotra with meaning

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥

यह श्लोक बताता है कि जगत् को एक मात्र मंत्र, राम नाम से ही संरक्षित किया जा सकता है। जो व्यक्ति राम नाम को अपने कंठ (गले) पर धारण करता है, उसके हाथों में सभी सिद्धियाँ होती हैं।

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥

यह श्लोक बताता है कि जो व्यक्ति रामकवच नामक यह मंत्र स्मरण करता है, वह सभी स्थानों पर अव्याहत बुद्धि वाला होता है और जीत और मंगल को प्राप्त करता है। रामकवच एक श्रीराम की रक्षा मंत्र है जो उनकी सुरक्षा और रक्षा में मदद करता है।

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥

यह श्लोक रामरक्षास्तोत्र के समर्थन में है। इसका अर्थ है कि जैसे भगवान श्रीराम ने स्वप्न में एक व्यक्ति को रामरक्षा स्तोत्र की रक्षा के लिए आदेश दिया था, उसी प्रकार जाग्रत अवस्था में भी बुधकौशिक ने उसे लिखने का आदेश पाया था। यह दिखाता है कि भगवान की अनुग्रह से यह स्तोत्र जगरूकता का संकेत है और उसे लिखने के लिए प्रेरित किया गया था।

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"श्रीराम हमारे प्रभु हैं, जो कल्पवृक्षों की तरह आरामदायक हैं, समस्त पदार्थों के विराम स्थान हैं, तथा त्रिलोकों में अभिराम (मनमोहक) हैं।"

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के स्वरूप का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"वे दोनों युवक हैं, सुंदर और रूपसम्पन्न, महाबलशाली, पुण्डरीक जैसे बड़े आंखों वाले, जो सदा चीर वस्त्र, कृष्ण वस्त्र और जीना पहने हुए हैं।"

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण के बारे में है। इसका अर्थ है:
"ये दोनों फल और मूल से जीवन यापन करने वाले हैं, जिनके दाँत सदा संयमित रहते हैं, तपस्वी हैं, ब्रह्मचारी हैं और दशरथ के पुत्र हैं।"

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के गुणों का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"ये दोनों सब प्राणियों की शरण हैं, सब धनुषों में श्रेष्ठ हैं, रक्षा के कुल के विनाशकारी हैं, हे रघुत्तम! इन दोनों को हमें बचाएं।"

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम और लक्ष्मण की स्तुति करता है। इसका अर्थ है:
"जो धनुष को सजाकर धारण किये हुए हैं, जो अपने छाती को आकर्षक बाणों से स्पर्श करते हैं, जो आशु-शीघ्र स्पर्श के साथ तीर और खड़ाग से संयोग करते हैं, मेरी रक्षा के लिए हमेशा सदैव राम और लक्ष्मण मेरे सामने पथ पर चलते रहें।"

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण की रक्षा के लिए है। इसका अर्थ है:
"जो कवच से संयुक्त है, खड़ाग (तलवार) और धनुष-बाण धारण करने वाला युवक है, वे राम और उनके साथ लक्ष्मण मेरे मनोरथों को बहुत अच्छे तरीके से जानते हैं और मुझे सुरक्षित रखते हैं।"

रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के गुणों का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"राम दाशरथ का पुत्र है, शूरवीर है, लक्ष्मण का साथी है, बलवान है, काकुत्स्थ है (दाशरथ के वंशज), संपूर्ण पुरुष है, कौसल्या का पुत्र है, और रघुकुल के उत्तम हैं।"

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥

यह श्लोक भगवान श्रीराम के गुणों का वर्णन करता है। इसका अर्थ है:
"वह वेदांत के ज्ञाता हैं, यज्ञों के ईश्वर हैं, पुराणों में उत्तम पुरुष हैं, जानकी का प्रिय हैं, श्रीमान हैं, अप्रमेय पराक्रम हैं।"

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥

यह श्लोक किसी श्रीराम स्तुति या रामरक्षा मंत्र के जाप के पुण्य को बताता है। जो भक्त इन मंत्रों को नित्यता से जपते हैं और श्रद्धा भाव से करते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

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