भगवान लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ था भाई के लिये बलिदान की भावना सदाचार का आदर्श (पांचजन्य शंख)

भगवान लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ था

भाई के लिये बलिदान की भावना सदाचार का आदर्श (पांचजन्य शंख)

लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ

अपने बाल्यकाल से श्रीराम की परछाई बने रहने की परीक्षा तब सामने आयी जब श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ । यद्यपि भगवान लक्ष्मण को वनवास नहीं हुआ था परंतु वे फिर भी वन को साथ गए थे । इसके अतिरिक्त दुर्वाशा ऋषि के आगमन पर श्री राम के वचन बंधन के कारण लक्ष्मण जी को मृत्यु दण्ड मिला तब राजदरबार में हनुमान जी के परामर्श पर श्री राम ने मृत्युदण्ड के स्थान पर लक्ष्मण जी का त्याग किया । परंतु लक्ष्मण जी ने बड़े भाई के वचन का मान रखने के लिए सरयू नदी में जलसमाधि ले ली थी । वाल्मीकि रामायण के अनुसार दानव कबंध से युद्ध के अवसर पर लक्ष्मण राम से कहते हैं, "हे राम! इस कबंध दानव का वध करने के लिये आप मेरी बलि दे दीजिये। मेरी बलि के फलस्वरूप आप सीता तथा अयोध्या के राज्य को प्राप्त करने के पश्चात् आप मुझे स्मरण करने की कृपा बनाये रखना।"

भाई के लिये बलिदान की भावना सदाचार का आदर्श

सीता की खोज करते समय जब मार्ग में सीता के आभूषण मिलते हैं तो राम लक्ष्मण से पूछते हैं "हे लक्ष्मण! क्या तुम इन आभूषणों को पहचानते हो?" लक्ष्मण ने उत्तर में कहा "मैं न तो बाहों में बंधने वाले केयूर को पहचानता हूँ और न ही कानों के कुण्डल को।मैं तो प्रतिदिन माता सीता के चरण स्पर्श करता था। अतः उनके पैरों के नूपुर को अवश्य ही पहचानता हूँ।" सीता के पैरों के सिवा किसी अन्य अंग पर दृष्टि न डालने सदाचार का आदर्श है।
बड़े भाई के लिये चौदह वर्षों तक पत्नी से अलग रहना वैराग्य का आदर्श उदाहरण है। यद्यपि भगवान लक्ष्मण को अत्यधिक भ्राताप्रेमी होने का आरोप लगाया जाता है परंतु भगवान लक्ष्मण धर्मयोगी और निष्पक्ष थे । और इसका प्रमाण उनके जीवनकाल के कई घटनाओं को तर्कपूर्ण विचार करने से ज्ञात होता है । जैसे माता सीता के अग्निपरीक्षा के समय श्री राम पर उनका क्रोध और विद्रोह करना उनके निष्पक्षता को प्रमाणित करता है । अपनी पत्नी उर्मिला को वन के कष्टों से दूर रख राजकुमारी की तरह अयोद्धा में छोड़ना, 14 वर्ष के वनवास काल में ब्रम्हचर्य का पालन करना उनकी सच्चे प्रेम की निशानी है । अपनी माताओं के सेवा हेतु पत्नी उर्मिला को अयोद्धा में छोड़ना मातृप्रेम को दर्शाता है । मेघनाथ (इंद्रजीत) जैसे योद्धा जिसने स्वयं लक्ष्मण सहित राम और हनुमान को भी युद्ध में पराजित किया था, उस योद्धा से दो बार पराजित होने के बाद भी युद्ध करना और विजय प्राप्त करना भगवान लक्ष्मण की निडरता, सामर्थता और श्रेष्ठ युद्धकौशल को इंगित करता है ।

लक्ष्मण - शेषनाग के अवतार

भगवान राम के प्रति लक्ष्मण की अटूट भक्ति और निस्वार्थ सेवा ने उन्हें नाग देवता शेषनाग का सांसारिक अवतार माने जाने का सम्मान दिलाया, जो भगवान विष्णु के लिए ब्रह्मांडीय बिस्तर के रूप में कार्य करते हैं। यह जुड़ाव लक्ष्मण की अपने बड़े भाई राम के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण को रेखांकित करता है।
शेषनाग - शाश्वत सर्प
शेषनाग, जिन्हें अनंत शेष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। नाग देवता के रूप में, वह कालातीतता और अंतहीनता का प्रतीक है, जो दिव्य समर्थन के रूप में कार्य करता है जिस पर भगवान विष्णु ब्रह्मांड महासागर में विश्राम करते हैं।
शत्रुघ्न
रामायण के एक अन्य प्रमुख पात्र शत्रुघ्न, भगवान राम के कोई छोटे भाई नहीं थे। उनकी अटूट भक्ति और धार्मिकता ने उन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान दिलाया:
शत्रुघ्न - पांचजन्य शंख का अवतार
शत्रुघ्न का चरित्र अक्सर पांचजन्य नामक दिव्य शंख से जुड़ा होता है। आइए इस संबंध का पता लगाएं:
पांचजन्य शंख - धार्मिकता का प्रतीक
पांचजन्य शंख हिंदू धर्म में धार्मिकता और धर्म का प्रतीक है। भरत के इन मूल्यों का अवतार इस पवित्र शंख के प्रतीकवाद के साथ संरेखित होता है, जो उनके पुण्य चरित्र को मजबूत करता है।
शत्रुघ्न राम के भाई -  राजा दशरथ के सबसे छोटे पुत्र थे, उनकी माता आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेशत्रुघ्न, रामायण के अनुसा

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