त्रेतायुग में भगवान राम के अयोध्या लौटने पर हुआ था भव्य स्वागत भरत को हृदय से लगाया

त्रेतायुग में भगवान राम के अयोध्या लौटने पर

हुआ था भव्य स्वागत भरत को हृदय से लगाया

अयोध्या वापसी(return to ayodhya)

राम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किये । वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।

त्रेतायुग में भगवान राम के अयोध्या लौटने पर हुआ था भव्य स्वागत 

जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास बिताने के बाद अपनी अवध पुरी पधारे तो अयोधवासियों का मन हर्षित हो गया था। अपने आराध्या करुणा के सागर श्री राम के अयोध्या आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने उस मार्ग पर पुष्प बिछा दिए थे, दीपों की पंक्तियां जगह-जगह लगा दी थी। उस समय अयोध्या नगरी संपूर्ण सृष्टि में दैदीप्यमान हो गई थी। घर आगमन की खुशी में अयोध्यावासी मंगल गीत गा रहे थें। देवता गण पु्ष्प वर्षा कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों स्वर्ग भी अयोध्या नगरी के आगे फीका पड़ गया हो। वो क्षण देखने योग्य था, ये सारी वातें दिव्य ग्रंथ रामचरितमानस में वर्णित हैं। आइये जानते हैं वो दोहे जिसमें भगवान राम के स्वागत से जुड़ी बातें बताई गई हैं।

भगवान राम ने अपने प्रिय भाई भरत को हृदय से लगाया

भगवान राम जब वनवास के लिए अयोध्या से गए थे। तब उनके प्रिय भाई भरत ने प्रण लिया था और श्री राम से कहा था कि आपका भाई भरत आज से ये प्रण लेता है कि जब तक आपका चौदह वर्ष का वनवास रहेगा तब तक में आपके कुशल मंगल रहने के लिए चौदह वर्षों तक अयोध्या स्थित नंदीग्राम में रह कर तप करूंगा और कहा कि  यदि भ्राता श्री आप चौदह वर्ष के वनवास को पूर्ण करने के अंतिम दिन अयोध्या नहीं आए तो आपका ये भाई भरत अपने प्राण त्याग देगा। श्री राम ने अपने प्रिय भाई भरत को हृदय से लगाया और कहा कि भरत में वचन देता हूं कि चौदह वर्ष का वनवास पिता के द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार पूर्ण करने के बाद अयोध्या आऊंगा। जब भगवान राम चौदह पर्व का वनवास पूर्ण करने के बाद अयोध्या आ रहे थे। तो सबसे पहले अपने भाई भरत से अयोध्या स्थित नंदीग्राम में मिले और प्रिय भाई भरत को प्रेम पूर्वक हृदय से लगाया और यह क्षण भरत मिलाप कहलाया। 
दोहा इस प्रकार से
सुमन बृष्टि नभ संकुल भवन चले सुखकंद।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नगर नारि नर बृंद॥
भावार्थ: 
आनन्दकन्द श्री रामजी अपने महल की और प्रसधान करने के लिए चले, आकाश फूलों की वृष्टि छा गई। सभी अयोध्यावासी अटारियों पर चढ़कर अपने प्रभु श्री राम के दर्शन कर रहे हैं॥
चौपाई 
कंचन कलस बिचित्र सँवारे। सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे॥
बंदनवार पताका केतू। सबन्हि बनाए मंगल हेतू॥
भावार्थ:
उस क्षण अयोध्यावासियों ने सोने के कलशों को मणि-रत्नादि से भर लिया और कलश को सजाकर सभी नगर वासियों ने अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया। सब लोगों ने मंगल के लिए बंदनवार, ध्वजा और पताकाएं लगाईं हुई थीं।
 

भगवान राम के अयोध्या आगमन पर महादेव ने की स्तुति

शास्त्रों में कहा जाता है कि राम शिव को जपते हैं और शिव राम को दोनों में कोई भी भेद नहीं है। जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काल समाप्त करने के बाद अयोध्या आए तब शिव जी ने प्रसन्न हो कर उनके स्वागत में यह स्तुति गाई थी। यह स्तुति रामचरितमानस में भी वर्णित है।
भगवान राम  स्तुति इस प्रकार
जय राम रमारमनं समनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनं।।
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो।।
भावार्थ:-
हे राम! हे रमारमण (लक्ष्मीकांत)! हे जन्म-मरण के संताप का नाश करने वाले! आपकी जय हो, आवागमन के भय से व्याकुल इस सेवक की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे देवताओं के स्वामी! हे रमापति! हे विभो! मैं शरणागत आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करे- शिवजी द्वारा राम की स्तुति

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